जानिये जोगीपुरा के बारे में । नजीबाबाद बिजनौर जिले के रेलवे स्टेशन से 11 किलोमीटर दूर एक जगह है जोगी रामपुर जहाँ मौला अली का रौज़ा बना हुआ है...
जानिये जोगीपुरा के बारे में ।
नजीबाबाद बिजनौर जिले के रेलवे स्टेशन से 11 किलोमीटर दूर एक जगह है जोगी रामपुर जहाँ मौला अली का रौज़ा बना हुआ है । यहाँ के लोग इससे जुड़े मोअजज़े के बारे में कुछ इस तरह बताते हैं ।
शाहजहाँ बादशाह के दौर में सय्यद अलाउदीन बुखारी उनके यहाँ दीवान थे और उनके देहांत के बाद सय्यद राजू दीवान रहे और अपने ज्ञान के दम पे शाहजहाँ के खास और भरोसेंसन्द दीवान हुए।
१६५७ सितम्बर के महीने में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ बीमार पड़ा तो ये मशहूर हो गया की शाहजहाँ का इन्तेकाल हो गया | बादशाहत इस से कमज़ोर होने लगी लेकिन उनका बेटा औरंगजेब जो सियासत में तेज़ था उसने अपने बड़े भाई जो वारिस था शाहजहाँ का उसे एक साल के अंदर ही इस दौड़ से अलग कर दिया और शाहजहाँ को किले में ही क़ैद करके बादशाह बन बैठा | तख़्त पे बैठते ही उसने शाहजहाँ के वफादार कमांडर और दीवान को जान से मार दिए जाने का हुक्म सुना दिया |
राजू दादा जिन्होंने ने औरंगजेब को पसंद नहीं किया था , औरंगजेब से बचने के लिए अपने वतन जोगी राम पूरा , बिजनौर वापस चले आये | वहां उन्होंने अपने गाँव वालों को बता दिया की औरंगजेब के फ़ौज से उनकी जान को खतरा है | राजू दादा की इमानदारी और गरीब परवर मिज़ाज ने उन्हें गाँव में अच्छी इज्ज़त दे रखी थी| गाँव वाले उनकी हिफाज़त करने लगे और बहुत ही सावधान रहते थे की कहीं औरंगजेब के लोग राजू दादा का कोई नुकसान ना कर दें |
राजू दादा अपने गाँव के पास वाले जंगल में छुपे रहते थे | राजू दादा मौला अली (अ.स ) के चाहने वाले थे और मौला अली (अ.स) को मदद के लिए नाद ऐ अली और या अली अद्रिकनी पढ़ के मदद के लिए बुलाना शुरू किया | एक दिन एक बूढ़े हिन्दू ब्राह्मण जो घास काट रहा था और इतना बूढा था की ठीक से देख भी नहीं सकता था ने एक आवाज़ सुनी और जब नज़र डाली तो उसे महसूस हुआ की कोई शख्स घोड़े पे सवार है और उस से कह रहा है कहा है राजू दादा जो मुझे बुलाया करता था ? जाओ उस से कह दो मैंने मिलने को बुलाया है | उस बूढ़े ने कहा मैं ठीक से देख नहीं सकता और कमज़ोर भी हूँ जंगल में कैसे जाऊं उन्हें बुलाने ?
अचानक उस बूढ़े को महसूस हुआ की उसे सब कुछ दिखाई देने लगा और उसके जिस्म में ताक़त भी आ गयी | फिर हजरत अली (अ.स ) ने कहा अब जाओ और राजू दादा से कहो मैं आया हूँ | जब राजू दादा ने उस किसान से सुना तो वो समझ गए की हजरतअली (अ.स)आये हैंऔर राजूदादा दौड़ के उस मुकाम की तरफ चले | गाँव वालों ने जब राजू दादा को दौड़ते देखा तो समझे औरंगजेब के सिपाही आये हैं और राजू दादा की मादा के लिए उनके पीछे भागने लगे | लेकिन वहाँ कोई नही मिला। राजू दादा थोड़ा दुखी हुए लेकिन फिर से मौला अली को बुलाने लगे । सातवें दिन मौला अली (अ.स० ) ने राजू दादा को ख्वाब में बशारत दी और कहा मत घबराओ औरंगजेब तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता तुम्हे उस से डरने की ज़रुरत नहीं है | राजू दादा ने मौला अली (अ.स ) से कहा की वो चाहते हैं की आप ऐसी कोई चीज़ दे जायें जिस से कौम शेफ़ायब हो ।
तो मौला मौला अली (अ.स ) के मुअज्ज़े से वहाँ एक पानी का चश्मा फूटा जो आज भी कुंवे की शक्ल में उस जगह मौजूद है जहां रौज़ा बना हुआ है। जहां मौला अली (अ.स) खड़े थे वहाँ की मिटटी में आज भी शेफा है ।
दूर दूर से लोग यहाँ मुरादे ले के आते हैं और उनकी मुरादे पूरी होती हैं । यहाँ आने वालों के लिए मुफ्त रहने के कमरे के साथ साथ एक दिन के खाने का इंतेज़ाम रहता है।
मौला अली के रौज़े के पहले यहाँ इमाम हुसैन का रौज़ा और फिर सय्यद राजू दादा का मकबरा बना हुआ है। और मौला अली के रौज़े के बाद एक मस्जिद ,जनाब के फातिमा स और मौला अब्बास अलमदार का रौज़ा भी मौजूद है ।
एस एम मासूम
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