डार्विन ने स्पेंसर के नए वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल सबसे पहले 1869 में प्रकाशित किए गए ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज...
डार्विन ने स्पेंसर के नए वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल सबसे पहले 1869 में प्रकाशित किए गए ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ के पांचवें संस्करण में किया था लेकिन पूरी दुनिया में अपने स्वास्थ के प्रति जागरूक रहने वाले कम ही मिला करते हैं और इसके ही कारण हमारे शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली कमज़ोर हो जाती है |
पिछले ८-९ महीने से कोरोना ने लोगों की नीद उड़ा दी एक खौफ का माहौल है लोग यह ही समझ नहीं पा रहे की यह है कैसा वायरस की किसी को हर तरह के कोरोना से बचने के प्रयास करने के बावजूद हो जाता है और किसी को लापरवाही के बावजूद नहीं होता | कोई नहीं जानता यह वायरस किसको कहाँ अपनी चपेट में ले ले |
देखा यह गया है की अमीरों की कॉलोनी में यह तेज़ी से फैलता है जहां हर तरह की सुविधाएं हैं , पढ़े लिखे लोग हैं और कोरोना से बचने के सारे साधन भी मौजूद है और गरीबों के इलाक़े में इसकी रफ़्तार सुस्त हुआ करती है जहां ना मास्क है न सैनिटाइज़र और न ही सोशल डिस्टन्सिंग का कोई ख्याल |इसका नतीजा यह हुआ की ग़रीबों के बीच यह गलत धारणा बन गयी की कोरोना कुछ नहीं बस एक अफवाह है और इसका कारण वही की उनके इलाक़ों में इसकी रफ़्तार बहुत कम हुआ करती है |
जबकि सत्य यह है की कोरोना वायरस न अमीर देखता है न ग़रीब देखता वो तो जहाँ कोई मानव शरीर मिला की एक्टिव हो गया | इन सबका मुख्य कारण है शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली का मज़बूत या कमज़ोर होना | कोरोना सभी को होता है जो इस वायरस के संपर्क में आ जाता है बस जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है उसे यह निगल जाता है और जिसकी मज़बूत होती है उसे यह भी पता नहीं चलता की वो कब कोरोना से संक्रमित हुआ |हमारा शरीर वायरस और बक्टीरिया का घर है और यह हमारे शरीर की मज़बूत प्रतिरोधक क्षमता ही है जो हमको इतने वायरस और बैक्टीरिया के होते हुए भी बीमार नहीं होने देती | मज़बूत प्रतिरोधक क्षमता वाले शरीर ऐसे वायरस को मार दिया करते हैं या कमज़ोर बना देते हैं |
यह प्रतिरोधक प्रणाली किसी भी वयक्ति की बढाने के लिए लोग ना जाने क्या क्या प्रयास आज कल करते दिखाई देते हैं कोई विटामिन C खा रहा है तो कोई काढ़ा पी रहा है इत्यादि | सत्य यह है की हमारा शरीर धूप हवा , बारिश, मौसम का उतार चढ़ाव जितना झेलता है उतना ही मज़बूत होता जाता है और ग़रीब मज़दूर मेहनतकश तो दिन भर इन्ही सख्तियों से झूझता रहता है और यहां तक की उनके यहां बहुत अधिक साफ़ सफाई का भी ध्यान नहीं रखा जा सकता इसलिए प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत होती जाती है | शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जाती है | जिनको आराम में रहने की आदत है ऐरकण्डीशन में आराम में और बाहरी वातावरण के अनुकूल शरीर को ढलने की आदत ख़त्म हो चुकी है उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती जाती है और यही कारण है की उनको यह वायरस जल्द नुकसान पहुंचा देता है |
मानव शरीर मेहनत करने के लिए बना है अब आप खेतों में काम करके या मज़दूरी करके इसे स्वस्थ बनाएं या फिर योग और वर्जिश कर के लेकिन इसे आराम तलब आलसी न बनने दें और बच्चों को ख़ास कर के ऐरकण्डीशन की आदत ना पड़ने दें | बाहरी वातावरण के साथ उनका सामना होना और उसे सहन करना आवश्यक है | जिसक शरीर बदलते मौसम के अनुसार अपने को ढालने में सक्षम होगा , प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत होगी वही इस कोरोना वायरस के संक्रमण से और इसके नुकसान से बच सकेगा |
एस एम मासूम
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