होशियार कहीं यह हमदर्द आपके लिए सिरदर्द न बन जाएँ | हमारे समाज में यह दस्तूर आम है की कहीं कोई बीमार हुआ और उसकी खबर आपके चाहने वालों आप हम...
होशियार कहीं यह हमदर्द आपके लिए सिरदर्द न बन जाएँ |
हमारे समाज में यह दस्तूर आम है की कहीं कोई बीमार हुआ और उसकी खबर आपके चाहने वालों आप हमदर्दों तक गयी तो हाल चाल पूछने के फ़ोन आना शुरू हो जाता है | देखने में यह अच्छा तरीक़ा है और भाई यही अच्छे समाज की पहचान भी है | अब बीमारी दुख्खी में इंसान एक दूसरे के काम नहीं आएगा तो कब आएगा ?
लेकिन आज के दौर में यह रिवाज बन गया है की हाल चाल बीमार का पूछ लिया जाय लेकिन अगर वही बीमार की मदद मांग ले तो लोग इधर उधर के बहाने बनाने लगते हैं सही मायने में मदद को बहुत कम लोग आगे आते हैं | यह बीमार का हाल चाल पूछना बस एक औपचारिकता बन के रह गया है |
यहाँ तक तो फिर भी ठीक है चलिए मदद नहीं की लेकिन खैरियत तो पूछी | लेकिन जो बीमार का हाल चाल लेने आ रहे हैं उस सभी का मानसिक स्तर एक जैसा नहीं होता सोंच एक जैसी नहीं होती | चलिए आने वाले ने पूछ लिया क्या हुआ है डॉक्टर ने क्या बताया ? अपना ख्याल रखिये | कोई ज़रूरत हो तो बताइये तक तो मामला सही है |
लेकिन अधिकतर आने वाले लोग बीमारी सुन के च च च करने वाले लोग जिस प्रकार से हमदर्दी जताते हैं मश्विरे देते हैं वो ऐसी परेशानी पैदा करता है जिसका अंदाजा बीमार भी नहीं लगा पाता और अगर बीमार की बीमारी ऐसी है की वो बात चीत कर सकता है तब तो बीमार की बिमारी का बढ़ जाना तय ही समझिये |
यह च च च करने वाले लोग बीमारी पूछ के कहेंगे अरे किसी और डॉक्टर से भी पूछ लो , डॉक्टर सही है ना भाई ख्याल ठीक से रखो | नतीजा यह की बीमार लो लगने लगेगा की जैसे उसका इलाज सहो डॉक्टर से नहीं हो रहा है | कुछ लोग ऐसी भी होते हैं जिनकी सलाह डॉक्टर बदलने तक नहीं रहती बल्कि वो बताएंगे की अरे देखो कहीं कोई बड़ी बिमारी न हो हमारे दोस्त को सहेली को ऐस यही हुआ था बिचारि मर गयी | कुछ कहेंगे की अरे तुम तो क़िस्मत वाले हो अरे ऐसी बीमारी में तो लोग बेहोश भी हो जाते हैं , आँखों से धुंधला दीखता है , चक्केर आते हैं | बस वो साहब गए की मरीज़ लगाने की कहीं उसे चक्केर तो नहीं आ रहे बेहोश तो नहीं हो रहा वगैरह और होता भी यही है की मरीज़ को लगने लगता है उसे कोई बड़ी खतराक बिमारी है , वो बेहोश हो रहा है , डॉक्टर बदलो , किसी और को दिखाओ वगैरह | और यही सब सोंच सोंच के अक्सर ग़लत फैसला ले लेता है और जो इलाज हो रहा था वो भी नहीं हो पाता |
बीमार पे मनोवैज्ञानिक तौर पे इन सभी बातों का असर पड़ता है | ऐसे मश्विरा देने वाले हमदर्द जो न तो बीमारी के जानकार होते हैं न डॉक्टर यक़ीनन सरदर्द बन जाते हैं |
इसलिए हमें आपको भी यह ख्याल रखना चाहिए की जब भी किसी बीमार से बात करें सब भरोसा दिलाएं उसे की वो जल्द स्वस्थ हो जायगा और जब तक आप डॉक्टर या विशेषज्ञ न हो बोमरियों के अपने हमदर्दी जताने वाले मश्विरे दे के बीमार को और बीमार न करें |
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