सेक्स इंसान के जीवन की एक ऐसी आवश्यकता है जिस से बचने की कोशिश मानसिक बिमारियों को जन्म देती है | इंसान के जीवन में जवानी आते ही उसे सेक्स प...
जैसे इंसान को पैदा होते ही शरीर को ताक़त देने के लिए भूख लगती है और बच्चा दूध की तलाश करने लगता है वैसे ही जवानी के बाद इंसान को सेक्स की आवश्यकता महसूस होने लगती है और वो एक पार्टनर की तलाश करने लगता है | हमारे समाज में तो आज जवानो की इस शारीरिक आवश्यकताओं को सही समय पे पूरी करने के ज़रिये के बारे में कम ही सोंचा जाता है लेकिन इस भूख को बढाने के ज़रिये हर जगह देखे जा सकते हैं | अब यह महिलाओं के अर्धनग्न पहनावे हों या केवल धन कमाने के लिए पोर्न परोसता यह समाज हो सब मिल के जवानों की अपरिपक्व उम्र में ही उसे सेक्स की तरफ आकर्षित करते दिखाई देते हैं |
एक युवा में शारीरिक परिवर्तन के चलते अगर १५-१६ साल की आयु में सेक्स की चाह पैदा होती है लेकिन यह पोर्न और पश्चिमी समाज का खुला माहोल १२ साल की आयु में ही उसे सेक्स के बारे में सोंचने पे मजबूर कर देता है ऐसे में अपरिपक्व उम्र और कौतुहल नयी चीज़ को जानने का आज के युवाओं को गुनाह और जुर्म के दलदल में फंसा सकता है | आज बच्चों के हाथ में मोबाइल और उसमे पोर्न फिल्मो का खज़ाना उनके सेक्स के लिए पार्टनर की तलाश के लिए मजबूर करता है और यह तलाश अनजान जगहों पे नहीं बल्कि आस पास के मिलने जुलने वालों पे ही जा के ख़त्म हुआ करती है | अपरिपक्व उम्र में आपका बच्चा अगर इन सबसे बचा रहे वही बेहतर है और इसके लिए बच्चे को सही तरीके से सेक्स एजुकेशन की आवश्यकता है | इसमें अगर बलात्कार हो जाये तो इसका दोषी कौन ? समाज या वो नाबालिग बच्चा ?
सही यह है की समाज की स्वीकृति के साथ जिस समय नौजवानों को सेक्स की इच्छा पैदा हो या कह लें वो बालिग हो जाय और नौजवान मानसिक रूप से इस ज़िम्मेदारी को उठाने लायक हो चूका हो तो उन्हें सेक्स पार्टनर उपलब्ध करवाया जा सके | यकीनन समाज की स्वीकृति का मतलब है विवाह बंधन में बंधना | इसके लिए कौन सी उम्र तय की जाए या किस प्रकार से ऐसे विवाह की इजाज़त दी जाये यह नौजवानों की शारीरिक ज़रुरत पे निर्भर करेगा | इन्साफ की बात यही है की बालिग होने पे जिस उम्र में सेक्स की चाह पैदा हो नौजवानों में उन्हें उसी उम्र में पार्टनर मिलना चाहिए वरना अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध, अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार और मानसिक रोग वाले युवाओं वाले समाज के लिए तैयार रहना चाहिए |
इसका उपाय सोंचना आज इस समाज में रह रहे हर वर्ग और धर्म के लोगों का काम है क्यूँ की जब सामाजिक समस्याएँ पैदा होने लगे तो इसका हल कानून के पास कम और समाज के पास अधिक हुआ करता है | आज मुश्किल यह है की समाज ने खुद को नियति के सहारे छोड़ दिया है और कानून सख्त से सख्त बनाने की मांग की जा रही है ऐसे में किसी अच्छे नतीजे की उम्मीद करना मुर्खता ही कही जायगी |
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