धर्म और राजनीति
आज हमारे चर्चित ब्लॉगर मित्र पवन विजय जी का सुन्दर लेख धर्म और राजनीति को पढ़ रहा था की मन हुआ कुछ इस विषय पे मैं भी कह दूँ | मैं खुद इस बात को मानता हूँ की कोई भी व्यक्ति धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता हाँ वो जिस संगठन से जुड़ा हुआ है उस से निरपेक्षता की बात अवश्य कर सकता है | ‘धारयति इति धर्मः’ जो धारण करने योग्य है वही धर्म है । अब सवाल यह उठता है की किसी भी धर्म में क्या धारण करने योग्य है ? क्या उस संगठन के नाम को धारण करना पर्याप्त होगा जिसे हमने धर्म का नाम दे रखा है या उस धर्म के महापुरषों द्वारा जीने के सलीक़े को अपना के उनके नक़्शे कदम पे चलना धर्म कहलायगा ?
पवन जी ने बताया एक बार विश्वामित्र घूमते हुए अकाल क्षेत्र में पहुँच गये। उन्होंने एक व्याध के घर भिक्षा मांगी तो उन्हें कुत्ते की हड्डी कि भिक्षा मिली । भूख से व्याकुल होकर जैसे ही वह उसे खाने को उद्यत हुए व्याध ने जब पूछा कि आपने तो एक संत का धर्म भ्रष्ट कर दिया। विश्वामित्र बोले संत का धर्म उसका कर्तव्य है । इस समय मेरा धर्म कहता है कि शरीर की रक्षा सर्वोपरी है क्योंकि शरीर से ही धर्म पालन होगा अतः वह खाद्य सिर्फ देह के पालन करने के लिए था यदि मैं स्वाद के लिए उसे खाता तो धर्म भ्रष्ट होता।
बहुत ही सुन्दर उदाहरण है और यही सच्चा धर्म भी है और चलिए इसे मैं हिन्दू धर्म के उपदेश के नाम से समझ लूँ तो फिर एक नज़र मेरी पडी इस्लाम के एक क़ानून पे जहां मुसलमान के लिए या यह कह लें जो इस्लाम धर्म का पालन करता है उसके लिए सुवर खाना मना है पाप है लेकिन इसके साथ यह भी कहा गया है कहा गया है की यदि किसी कारणवश आप किसी अकाल क्षेत्र में पहुँच गये हैं और जान जाने की भूख के कारन नौबत आ पड़ी है तो आप सुवर का मांस उतना खा सकते हैं जितना खाने के बाद आप सही साधन भूख मिटाने का तलाश सके और ध्यान रहे यह सुवर स्वाद ले के ना खाया जाय |
ध्यान से देखने की बात है की एक उदाहरण हिन्दू धर्म के नाम से जाना गया दूसरा इस्लाम के नाम से लेकिन धर्म का सन्देश एक ही है | इससे बात साफ़ हो जाती है की मानव धर्म है अपनी जान की रक्षा करना क्यों की जान रहेगी शरीर रहेगा तो आप मानव जाति की सुख और समृद्धि के लिए काम कर सकेंगे और यही सच्चा धर्म कहलायगा |
मैं भी इस बात को मानता हूँ की धर्म का इस्तेमाल राजनीति में आवश्यक है लेकिन राजनीति में धर्म का इस्तेमाल केवल वो कर सकता है जिसे धर्म का सही अर्थ विश्वामित्र की तरह मालूम हो और सत्ता जिसके हाथ में आ जाय वो न्यायप्रिय हो समस्त मानव जाति की सुख और समृद्धि के प्रति समर्पित हो | आज राजनीति में धर्म के केवल नाम का उसके संदेशों और महापुरुषों के चरित्र को बुलाते हुए ,इस्तेमाल हो रहा है |
यही कारण है की यह राजनैतिक धर्म अपने राज्य का विस्तार तो कर पा रहे हैं जाती के विकास और उसकी सुख समृद्धि के लिए कुछ कर सकने में नाकाम है और धर्म के नाम पे समाज में अशांति, ज़ुल्म, अत्याचार और दुःख के सिवा कुछ दे सकने में भी नाकाम है |
धर्म का कोई भी नाम दिया गया हो लेकिन धर्म का सही सन्देश यही है क़ि हर वयक्ति को दुआ करनी चाहिए (असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय )असत्य से सत्य, अन्धकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर मेरी गति हो ।
एस एम मासूम
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