माह ऐ रमज़ान खाने का महीना नहीं भूखे रहने का महीना है और यह बात हर मुसलमान जानता है | रोज़ेदार को इफ्तार करवाने का सवाब बहुत ह...
माह ऐ रमज़ान खाने का महीना नहीं भूखे रहने का महीना है और यह बात हर मुसलमान जानता है | रोज़ेदार को इफ्तार करवाने का सवाब बहुत है रोज़ेदार की इफ्तारी जब सवाब है तो हर कोई यक़ीनन एक से एक लज़ीज़ चीज़ों का इंतज़ाम भी करेगा और शायद इसी सोंच ने हमें हर रोज़ रमज़ान में फुल्की ,समोसा, फ्रूट सलाद , कीमा पूरी ,कबाब , बिरयानी और न जाने क्या क्या का इंतज़ाम करने के लिए बाज़ारों के चककर लगाने पे मजबूर कर दिया | यह बस हमारी एक सोंच है या मेहमान नवाज़ी की आदत वरना इसका रोज़े या माह ऐ रमज़ान से कुछ लेना देना नहीं सिवाय इसके की इफ्तार का इंतज़ाम रोज़ेदार के लिए करना सवाब है और यह उन खानो से भी किया जा सकता है जो हम हर रोज़ खाते हैं |
हम भूल जाते हैं की हम उस अली (अ .स) के चाहने वाले हैं जो दस्तरख्वान पे सिर्फ एक चीज़ से रोज़ा खोला करता था | हम उस इमाम जाफर ऐ सादिक़ (अ .स) के मांनने वाले हैं जिसने कहा की अगर कोई सेहरी में ठीक से खाय और इफ्तार सिर्फ पानी से करे तो उसकी आदत हमेशा रोज़ा रखने की पड़ जायगी |
इस बार तो लॉक डाउन है सोशल सिस्टैन्सिंग ज़रूरी है कोरोना जैसी महामारियों से बचने के लिए ऐसे में अगर कहीं बाजार रमज़ान को देखते हुए लग भी रही है तो हमें कोशश यही करनी चाहिए की बाज़ारों में न जाएँ घरो में ही रहे और जो राशन घरों में मौजूद है उसी से सेहरी और इफ्तार करें |
कम से कम अल्लाह को इस बार ही बता दे हर रोज़ेदार की ऐ खुदा हमने इस बार भूख और प्यास को सही माने में महसूस किया और अपने जिस्म के मोटापे को कम किया और इसी के साथ साथ हमने ग़रीबों का भी ख्याल किया और उनके यहां भी सेहरी इफ्तार और खाने का इंतज़ाम किया | क्यों की जिस्म की ज़कात यह रोज़ा है जो मुसलमान पे फ़र्ज़ है और ज़कात जिस्म का वज़न बढ़ा के नहीं घटा के दी जाती है |
यह हर रोज़ेदार मुसलमान से अनुरोध है की इफ्तार के लज़ीज़ आइटम सोशल मीडिया पे डाल के लोगों को यह पैगाम न दें की रोज़ा लज़ीज़ खाना खाने का महीना हैं बल्कि अपनी नफ़्स पे काबू करें अपने इमाम (अ .स) की पैरवी करते हुए दुनिया को बताय माह ऐ रमज़ान अपनी नफ़्स पे अपनी ख्वाहिशात पे काबू रखने का महीना है |
ग़रीबों की भूख को महसूस करने का महीना है |
..एस एम् मासूम
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