आज आपके सामने है मेरे घराने का इतिहास | जौनपुर में हमारा घराना पिछले सात सौ से अधिक वर्षों से रहता आया है |जौनपुर में सबसे पहले हमारे घ...
आज आपके सामने है मेरे घराने का इतिहास |
जौनपुर में हमारा घराना पिछले सात सौ से अधिक वर्षों से रहता आया है |जौनपुर में सबसे पहले हमारे घराने के आने वाले व्यक्ति थे सय्यद अली दावूद जिनकी शान में लाल दरवाज़ा मस्जिद और मदरसा बना और उन्ही के नाम पे इलाक़ा सय्यद अली पुर (सदल्लीपुर) जो शककरमण्डी के क़रीब है बसा है |
शायद ७०० वर्षों से जौनपुर की मिटटी और पानी से जुड़े रहने के कारण मुझे जौनपुर से प्रेम है क्यूंकि इसके कोने कोने में हमारे घराने वालों की यादें बसी हुयी है | यह घराना सादात हुसैन असगरी कहलाता है जिसका ज़िक्र मशहूर किताब तजल्ली ऐ नूर में भी मौजदूद है और हमारे इस घराने को खानदान ऐ ज़ुलक़द्र बहादुर के नाम से आज जाना जाता है और इस घराने ने ज्ञान और शिक्षा से जुड़ के हमेशा काम किया | मर्सिया के लिए मशहूर ,मेरे अनीस की शागिर्दी भी इसी घराने की शान है जो आज तक क़ायम है |
शर्क़ी क्वीन बीबी राजे ने हमारे इसी घराने के सय्यद अली दावूद की शान में लालदरवाजा मस्जिद और मदरसा बनवाया था | इस घराने ने जौनपुर के लिए हमेशा से काम किया जैसे मदरसा नासरिया ,कल्लू का इमामबाड़ा , पानदरीबा स्थितस्थित हसन मंज़िल, हाशिम मंज़िल ,ज़ुलक़द्र मंज़िल इत्यादि आज भी मौजूद है |
आज इस घराने के लोग जौनपुर में मुख्यतया पानदरीबा ,कजगाव में रहते है लेकिन इनकी शाखें मुफ़्ती मोहल्ला, सिपाह इत्यादी इलाक़ों में भी मौजूद है | जौनपुर में इस घराने के बुज़ुर्गों की २० से अधिक नस्लों की क़ब्रें अलग अलग इलाक़ों में आज भी मौजूद हैं जिनमे से बहुत पे हिन्दू और मुस्लिम दोनों अक़ीदत से फूल और चादर आज भी चढ़ाते है | सांप्रदायिक सौहाद्र के लिए यह घराना इतना मशहूर था की आज भी सद्दलली पुर स्थित इस घराने की क़ब्र की देख भाल हिन्दू ही किया करते है |
आज यह घराना बहुत अधिक बड़ा होहो चूका है और देश विदेश तक लोग फैल गए है बड़ी बड़ी शख्सियतों के रूप में ज्ञान शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाये हुए हैं और अपने वतनवतन जौनपुर का नाम रौशन कर रहे हैं |
मेरे पास अपने इस घराने के पास अपनी की सात नस्लों की तस्वीर मौजूद है जिसमे से पांच नस्लें आप इस तस्वीर में देख सकते हैं |
हमारा वतन जौनपुर हमारी पहचान है |
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