हम अपने बच्चों को परवरिश मैं बहुत सी गलत बातों को अनदेखा कर देते हैं. जैसे बचपन मैं हम अपने बच्चों को कभी कभी यह तो कह्देते हैं, झूट बोलना...
हम अपने बच्चों को परवरिश मैं बहुत सी गलत बातों को अनदेखा कर देते हैं. जैसे बचपन मैं हम अपने बच्चों को कभी कभी यह तो कह्देते हैं, झूट बोलना गलत है, बड़ों कि इज्ज़त किया करो, चोरी करना सही नहीं, फरेब देना, मक्कारी एक बद किरदार इंसान कि पहचान है। लेकिन सिर्फ कह देते हैं , रोकते नहीं उसे इन कामों से, क्यूंकि हमें भी कहीं ना कहीं ऐसा लगने लगा है कि इमानदारी से और नेकी से ज़िन्दगी नहीं चलती आज के ज़माने मैं, जबकि यह सत्य नहीं है।
एक कहानी बचपन मैं सुनी थी जो याद आ रही हैं, चलिए आप सब को भी सुना देता हूँ। एक समय की बात है कि एक लड़का था जिसे यह नहीं पता था कि चोरी किसे कहते हैं। उसे तला हुआ अंडा बहुत पसंद था। एक दिन जब उसे तला अंडा खाने की इच्छा हुई तो उसने अपनी मां से कहा,मां अंडा तल कर दीजिए। उसकी मां ने उत्तर दिया इस समय अंडे समाप्त हो चुके हैं, बाद में तल दूंगी । मुर्ग़ी के पुन अंडा देने तक प्रतीक्षा करनी होगी। वह बच्चा दो दिन प्रतीक्षा नहीं करना चाह रहा था इसलिए घर से बाहर निकल गया। उसके पड़ोसी ने मुर्ग़ियां और मुर्ग़े पाल रखे थे। वह बच्चा वहां गया और उसकी जाली से हाथ डालकर उसने दो तीन अंडे चुरा लिए. दोपहर का समय था और मौसम गर्म था उसका पड़ोसी घर के कमरे में आराम कर रहा था इसलिए पड़ोसी के घर का कोई सदस्य उस बच्चे को अंडा चोरी करते नहीं देख पाया। बच्चा प्रसन्न होकर अपने घर लौट गया।
घर पहुंच कर उसने अंडे मां को दिए और उसे तलने के लिए अनुरोध किया। मां ने जब अंडे देखे तो पूछा कि ये अंडे कहां से लाए? बच्चे ने हंस कर उत्तर दिया कि पड़ोसी के यहाँ से लाया । मां ने बच्चे से यह कहने के बजाए कि यह बुरा कर्म है, यह चोरी है, अंडे ले जाकर वापस करो, कुछ क्षण सोच कर बच्चे से पूछा किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं? बच्चे ने उत्तर दिया नहीं। मां ने प्रेमभाव से कहा ठीक है अंडे तल दे रही हूं किन्तु यह याद रहे कि तुमने पड़ोसी के अंडे उठा कर भला कर्म नहीं किया है। बच्चा कि समझ मैं यह आ गया कि यह भला काम तो नहीं, लेकिन किया जा सकता है बस पड़ोसियों को उसके कर्म के बारे में ज्ञात नहीं होना चाहिए। दूसरी बार भी उसने यही किया और जब उसने अंडे मां के हवाले किए तो मां ने कोई विरोध नहीं जताया। केवल यह पूछा कि कहीं पड़ोसी ने तो नहीं देखा?
धीरे धीरे बच्चा बड़ा हो रहा था। कभी कभी इधर उधर से कुछ न कुछ चोरी करता रहता। कुछ वर्षों के पश्चात वह छोटा बच्चा युवा हो गया और फिर एक दिन बड़ी चोरी के अपराध में उसे पकड़ लिया गया। उसने इस बार एक घर से सोने के गहनों की चोरी की थी ।
न्यायधीश ने चोरी सिद्ध हो जाने के पश्चात क़ानून के अनुसार चोर को सजा का आदेश दिया। सजा सुनते ही चोर ने कहा कि कि मुझे मेरी मां से मिलने दिया जाए। न्यायधीश के आदेश पर चोर की मां को बुलाया गया। चोर ने कहा यदि दंडित करना है तो मेरी मां को दंडित किया जाए क्योंकि मां ने उस समय मुझे नहीं रोका जब मैं छोटी छोटी चोरियां किया करता था। उसने मुझे अंडे चोर से एक माहिर चोर बनाया है।
न्यायधीश चुप रहा। मां ने अपने अपराध को स्वीकार किया। न्यायधीश का मन उस बेचारे चोर के लिए पसीज गया और उसने उसे क्षमा कर दिया तथा चोर की मां को जेल में डालने का आदेश दिया।
इसलिए अपने बच्चों को हमेशा गलत कामों से रोकें वरना हो सकता है एक दिन आप का बच्चा भी परेशानी मैं पड़ने के बाद आप को ही दोषी ठहराए।
एक कहानी बचपन मैं सुनी थी जो याद आ रही हैं, चलिए आप सब को भी सुना देता हूँ। एक समय की बात है कि एक लड़का था जिसे यह नहीं पता था कि चोरी किसे कहते हैं। उसे तला हुआ अंडा बहुत पसंद था। एक दिन जब उसे तला अंडा खाने की इच्छा हुई तो उसने अपनी मां से कहा,मां अंडा तल कर दीजिए। उसकी मां ने उत्तर दिया इस समय अंडे समाप्त हो चुके हैं, बाद में तल दूंगी । मुर्ग़ी के पुन अंडा देने तक प्रतीक्षा करनी होगी। वह बच्चा दो दिन प्रतीक्षा नहीं करना चाह रहा था इसलिए घर से बाहर निकल गया। उसके पड़ोसी ने मुर्ग़ियां और मुर्ग़े पाल रखे थे। वह बच्चा वहां गया और उसकी जाली से हाथ डालकर उसने दो तीन अंडे चुरा लिए. दोपहर का समय था और मौसम गर्म था उसका पड़ोसी घर के कमरे में आराम कर रहा था इसलिए पड़ोसी के घर का कोई सदस्य उस बच्चे को अंडा चोरी करते नहीं देख पाया। बच्चा प्रसन्न होकर अपने घर लौट गया।
घर पहुंच कर उसने अंडे मां को दिए और उसे तलने के लिए अनुरोध किया। मां ने जब अंडे देखे तो पूछा कि ये अंडे कहां से लाए? बच्चे ने हंस कर उत्तर दिया कि पड़ोसी के यहाँ से लाया । मां ने बच्चे से यह कहने के बजाए कि यह बुरा कर्म है, यह चोरी है, अंडे ले जाकर वापस करो, कुछ क्षण सोच कर बच्चे से पूछा किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं? बच्चे ने उत्तर दिया नहीं। मां ने प्रेमभाव से कहा ठीक है अंडे तल दे रही हूं किन्तु यह याद रहे कि तुमने पड़ोसी के अंडे उठा कर भला कर्म नहीं किया है। बच्चा कि समझ मैं यह आ गया कि यह भला काम तो नहीं, लेकिन किया जा सकता है बस पड़ोसियों को उसके कर्म के बारे में ज्ञात नहीं होना चाहिए। दूसरी बार भी उसने यही किया और जब उसने अंडे मां के हवाले किए तो मां ने कोई विरोध नहीं जताया। केवल यह पूछा कि कहीं पड़ोसी ने तो नहीं देखा?
धीरे धीरे बच्चा बड़ा हो रहा था। कभी कभी इधर उधर से कुछ न कुछ चोरी करता रहता। कुछ वर्षों के पश्चात वह छोटा बच्चा युवा हो गया और फिर एक दिन बड़ी चोरी के अपराध में उसे पकड़ लिया गया। उसने इस बार एक घर से सोने के गहनों की चोरी की थी ।
न्यायधीश ने चोरी सिद्ध हो जाने के पश्चात क़ानून के अनुसार चोर को सजा का आदेश दिया। सजा सुनते ही चोर ने कहा कि कि मुझे मेरी मां से मिलने दिया जाए। न्यायधीश के आदेश पर चोर की मां को बुलाया गया। चोर ने कहा यदि दंडित करना है तो मेरी मां को दंडित किया जाए क्योंकि मां ने उस समय मुझे नहीं रोका जब मैं छोटी छोटी चोरियां किया करता था। उसने मुझे अंडे चोर से एक माहिर चोर बनाया है।
न्यायधीश चुप रहा। मां ने अपने अपराध को स्वीकार किया। न्यायधीश का मन उस बेचारे चोर के लिए पसीज गया और उसने उसे क्षमा कर दिया तथा चोर की मां को जेल में डालने का आदेश दिया।
इसलिए अपने बच्चों को हमेशा गलत कामों से रोकें वरना हो सकता है एक दिन आप का बच्चा भी परेशानी मैं पड़ने के बाद आप को ही दोषी ठहराए।