भारतीय समाज पोर्न की आजादी के लिये अभी तैयार नही है | -एस एम मासूम पॉर्न पर प्रतिबंध हो या नहीं ये आज कल एक बडा बहस का मुद्दा ह...
भारतीय समाज पोर्न की आजादी के लिये अभी तैयार नही है | -एस एम मासूम
पॉर्न पर प्रतिबंध हो या नहीं ये आज कल एक बडा बहस का मुद्दा है | हमारे देश में यौन संबंध और इससे जुड़े विचार हमेशा से साहित्य और कला के साथ-साथ चले हैं. खजुराहो या कामसूत्र हमारे भारत की ही देन है लेकिन ये भी सत्य है की पॉर्न देखना हमारे देश मे सामाजिक रूप से गलत माना जाता है| ये एक ऐसा देश है जहा सेक्स के विषय पे बात करना बुरा माना जाता है ऐसे मे पॉर्न छुपा के बंद कमरो मे देखा जाता है और जब जब इसे बंद करने की बात आती है तो लोग दलील देने लगते है कि अकेले में पॉर्न देखना गलत कैसे हो सकता है| इसे निजी स्वतंत्रता का मामला बताया जाता है और ये भी कहा जाता है और संविधान के अनुच्छेद- 21 के हवाले से व्यक्तिगत आजादी पर रोक को गलत बताया जाता है |
लेकिन हम भूल जाते है कि हमारा देश ,हमारा समाज अभी पॉर्न देखने जैसी आजादी के लायक नही | जहा खुल के लोग सेक्स के विषय पे आपस मे बात ना कर सकते हो या महिला और पुरुष को इतनी आजादी ना हो कि वो आपस से जब चाहे. जहा चाहे, जिससे चाहे आपसी सहमती से सेक्स कर सके वहा पोर्न तो लोग आजादी से देख लेगे लेकिन उत्तेजित होने के बाद अपनी इस सेक्स की भूख या जिज्ञयासा को कहा शांत करने जायेगे ? ऐसे हालात मे पॉर्न देखकर यौन कुंठा से ग्रसित इन्सान बलात्कार भी कर सकता है |
समाज के लिये हर वो चीज बुरी हुआ करती है जिसके नतीजे मे लोग मानसिक रोगी बन जाये या जुर्म करने लगे | अकेले में पॉर्न देखना बिलकुल गलत नही हो सकता है लेकिन पोर्न देखने के बाद इस सेक्स की भूख को शांत करने का इन्तेजाम ऐसे देश मे करना जहा शादी के पहले सेक्स को समाज स्वीकार ना करता हो और शादी ३०-३५ वर्ष के बाद की जाती हो आसान नही|
यदि भारतवर्ष से इस नये प्रकार के दारीनदगी के साथ हो रहे बलात्कार को रोकना है तो या तो ऐसा समाज बना दो जहां स्त्री पुरुष इतने आजाद हो कि अपनी मर्जी से किसी से भी सेक्स कर सके , आजादी से एक दुसरे से पूछ सके , उनकी सहमती या असहमती को स्वीकार सके औरअगर ऐसा समाज नही बना सकते तो भारतीय समाज पोर्न की आजादी के लिये अभी तैयार नही है |
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