कल किताबों में एक १५० साल पुरानी अनामी डायरी मिली जिसके लेखक ने बखूबी एक ऐसे शख्स की डायरी के कुछ पन्नो का ज़िक्र किया जो अपने दिल की बात ...
कल किताबों में एक १५० साल पुरानी अनामी डायरी मिली जिसके लेखक ने बखूबी एक ऐसे शख्स की डायरी के कुछ पन्नो का ज़िक्र किया जो अपने दिल की बात किसी से कह ना सका |
एक शख्स ऐसा था जिसने अपने जीवन में बहुत सी ऊँचाइयाँ ,इज्ज़त और शोहरत देखी की अचानक कुछ कारणवश उसका सब कुछ खो गया | उसने सब्र किया लेकिन समाज ने उसे जीने नहीं दिया और उसका अंत बुरा हुआ क्यूँ की वो इंसान बेईज्ज़ती सहन नहीं कर सका |
एक शख्स था जिसका जन्म एक ऊंचे घराने में हुआ, इज्ज़त, शोहरत और दौलत की कामी नहीं थी | लोगों में अच्छा ना था और उसके परिवार वाले रिश्तेदारों और समाज के अन्य लोगों की मदद किया करते थे | अचानक उसकी रोज़ी में कमी आ गयी और मजबूर हो के उसे ऐसे इलाकों में रहना पड़ा जहां इज्ज़त और ज़िल्लत का फर्क लोग नहीं जानते थे| वो शख्स वहाँ रह के लोगों से कम मिलता जुलता था लेकिन ऐसा अधिक दिन नहीं चला लोग आने जाने लगे |
कुछ दिन बाद वहाँ के लोगों को समझ में आ गया की ये शख्स उन जैसा नहीं है और कभी बड़ी इज्ज़त और शोहरत का मालिक था | अब लोग उसे इर्ष्या वश हर बात में नीचा दिखाने की कोशिश करने लगे ,उसके बारे में अफवाहें फैलाने लगे | वो जवाब नहीं देता था लेकिन उसे महसूस होने लगा की यहाँ उनकी इमेज खराब होती जा रही है | ये सब देख उसे दुःख होता गुस्सा भी आता लेकिन मजबूरी ये की उसे समझ में नहीं आता कहाँ जाए ऐसी हालत में जब की धन की कमी है | रिश्तेदारों से बात की तो उसे महसूस हुआ वो भी धीरे धीरे उससे दूर होने लगे हैं |
कुछ दिन उसने सब्र किया लेकिन इंसान था फिर वो भी भड़कने लगा, लोगों को जवाब देने लगा और एक दिन ऐसा आया की उसे खुद लगने लगा उसके पास ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा की वो अब उन जैसा होने से खुद को बचा सके |
ऐसी ही उसके जीवन का अंत हो गया लेकिन उसने अपनी डायरी में अल्लाह से माफी मांगते हुए लिखा वो एक इंसान था इतना सब्र वो नहीं कर सका , गुस्सा और दर्द उसका मानसिक संतुलन बार बार खो देता था |
इस डायरी के पन्ने मेरे दिल पे नक्श हो गए और मैं सोंचने लगा इंसान के अच्छे और बुरे बंनने में समाज का , किसी इंसान की मजबूरियों का भी बहुत बड़ा हाथ हुआ करता है जिसका इन्साफ शायद सिर्फ अल्लाह ही कर सकता है |
एक शख्स ऐसा था जिसने अपने जीवन में बहुत सी ऊँचाइयाँ ,इज्ज़त और शोहरत देखी की अचानक कुछ कारणवश उसका सब कुछ खो गया | उसने सब्र किया लेकिन समाज ने उसे जीने नहीं दिया और उसका अंत बुरा हुआ क्यूँ की वो इंसान बेईज्ज़ती सहन नहीं कर सका |
एक शख्स था जिसका जन्म एक ऊंचे घराने में हुआ, इज्ज़त, शोहरत और दौलत की कामी नहीं थी | लोगों में अच्छा ना था और उसके परिवार वाले रिश्तेदारों और समाज के अन्य लोगों की मदद किया करते थे | अचानक उसकी रोज़ी में कमी आ गयी और मजबूर हो के उसे ऐसे इलाकों में रहना पड़ा जहां इज्ज़त और ज़िल्लत का फर्क लोग नहीं जानते थे| वो शख्स वहाँ रह के लोगों से कम मिलता जुलता था लेकिन ऐसा अधिक दिन नहीं चला लोग आने जाने लगे |
कुछ दिन बाद वहाँ के लोगों को समझ में आ गया की ये शख्स उन जैसा नहीं है और कभी बड़ी इज्ज़त और शोहरत का मालिक था | अब लोग उसे इर्ष्या वश हर बात में नीचा दिखाने की कोशिश करने लगे ,उसके बारे में अफवाहें फैलाने लगे | वो जवाब नहीं देता था लेकिन उसे महसूस होने लगा की यहाँ उनकी इमेज खराब होती जा रही है | ये सब देख उसे दुःख होता गुस्सा भी आता लेकिन मजबूरी ये की उसे समझ में नहीं आता कहाँ जाए ऐसी हालत में जब की धन की कमी है | रिश्तेदारों से बात की तो उसे महसूस हुआ वो भी धीरे धीरे उससे दूर होने लगे हैं |
कुछ दिन उसने सब्र किया लेकिन इंसान था फिर वो भी भड़कने लगा, लोगों को जवाब देने लगा और एक दिन ऐसा आया की उसे खुद लगने लगा उसके पास ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा की वो अब उन जैसा होने से खुद को बचा सके |
ऐसी ही उसके जीवन का अंत हो गया लेकिन उसने अपनी डायरी में अल्लाह से माफी मांगते हुए लिखा वो एक इंसान था इतना सब्र वो नहीं कर सका , गुस्सा और दर्द उसका मानसिक संतुलन बार बार खो देता था |
इस डायरी के पन्ने मेरे दिल पे नक्श हो गए और मैं सोंचने लगा इंसान के अच्छे और बुरे बंनने में समाज का , किसी इंसान की मजबूरियों का भी बहुत बड़ा हाथ हुआ करता है जिसका इन्साफ शायद सिर्फ अल्लाह ही कर सकता है |
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