आज कल शादियों में जाइये तो एक चर्चा बहुत आम हुआ करती है भाई सोने के १२ सेट दिए और कार की चाभी सलाम कराई में मिल गयी | जी हाँ य उस धर्म के...
आज कल शादियों में जाइये तो एक चर्चा बहुत आम हुआ करती है भाई सोने के १२ सेट दिए और कार की चाभी सलाम कराई में मिल गयी | जी हाँ य उस धर्म के मानने वालों का हाल है जहां दहेज़ प्रथा का कोई वजूद नहीं है | बल्कि दहेज़ लड़का देता है या कह लेकिन की शादी के पहले लड़के को ही उसके लिए घर, और दुसरे सामान लाने पड़ते हैं फिर निकाह संभव होता है | हैरत की बात यह भी है कि बात-बात पर फ़तवे जारी करने मज़हब के ठेकेदारों को समाज में फैल रहीं दहेज जैसी बुराइयां दिखाई नहीं देतीं| बल्कि इन मुल्लाओं को भी लड़के के लिए सोना चांदी उगलने वाली लड़कियां तलाश करते देखा गया है |
कल एक साछात्कार ईरानी -हिन्दुस्तानी खानाबदोश काबिले से ले रहा था जो खुद को इरान से आया कहते हैं और आज भी वहाँ की तहजीब और दस्तूर उनके परिवारों में देखा जा सकता है | उन्होंने गर्व से बताया हमारे यहाँ लड़के वाले ही रिश्ता ले के जाते हैं और केवल लड़की को निकाह करके ले आते हैं | लड़की वाले को कोई भी खर्च नहीं उठाना पड़ता | सब कुछ लड़के वाले की ज़िम्मेदारी हुआ करती है | सुन के अच्छा लगा और हक भी यही है की एक तो लग्की की परवरिश की, पढाया लिखाया , तमीज तहजीब सिखाई और दे दी आपको और उसपे से दहेज़ भी देना हो तो इस से बड़ा ज़ुल्म और क्या हो सकता है ?
दहेज़ के खिलाफ हिन्दुस्तान में पे ना जाने कब से विरोध प्रदर्शन हो रहा है, NGO बने, संस्थाएं बनी लेकिन सब हवा के साथ बह जाया करती है क्यूँ की शायद इंसान धन की लालच नहीं छोड़ पाटा और वो लोग भी दहेज़ लेते देखे गए हैं जो किसी न किसी संस्था से इसका विरोध किया करते थे | दहेज़ उत्पीडन, दहेज़ के लिए बीवी , बहु पे ज़ुल्म इस दहेज़ प्रथा का वीभत्स रूप है |
हम जिस समाज में रह रहे हैं वहाँ बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया का उसूल चलता है और किताबों में सदाचार, इमानदारी के बातें लिखी, सुनी और पढाई जाती है | इसी लिए हम इन किताबी बातों को सुन के वाह वाह तो कर लेते हैं, इन दहेज़ विरोधी संस्थाओं की तारीफ भी कर लेते हैं लेकिन जब समय आता है तो केवल रुपैया ही दिखता है बाकी सब भुला दिया जाता है | हमारा तो यह हाल है की आज एक तरफ धन रख दें और दूसरी तरफ सारे धर्म के उसूल तो भी हम धन की तरफ ही दौड़ते नज़र आते हैं | ऐसे में इस धन विरोधी अभियान को कभी कामयाबी मिल सकेगी मुझे तो नहीं लगता | बस यही कह सकता हूँ उम्मीद पे दुनिया कायम है और कोशिश सामाजिक बुराइयों को ख़त्म करने की करना इंसानियत का तकाज़ा है जो मुझे और आप को करते रहना है |
कल एक साछात्कार ईरानी -हिन्दुस्तानी खानाबदोश काबिले से ले रहा था जो खुद को इरान से आया कहते हैं और आज भी वहाँ की तहजीब और दस्तूर उनके परिवारों में देखा जा सकता है | उन्होंने गर्व से बताया हमारे यहाँ लड़के वाले ही रिश्ता ले के जाते हैं और केवल लड़की को निकाह करके ले आते हैं | लड़की वाले को कोई भी खर्च नहीं उठाना पड़ता | सब कुछ लड़के वाले की ज़िम्मेदारी हुआ करती है | सुन के अच्छा लगा और हक भी यही है की एक तो लग्की की परवरिश की, पढाया लिखाया , तमीज तहजीब सिखाई और दे दी आपको और उसपे से दहेज़ भी देना हो तो इस से बड़ा ज़ुल्म और क्या हो सकता है ?
दहेज़ के खिलाफ हिन्दुस्तान में पे ना जाने कब से विरोध प्रदर्शन हो रहा है, NGO बने, संस्थाएं बनी लेकिन सब हवा के साथ बह जाया करती है क्यूँ की शायद इंसान धन की लालच नहीं छोड़ पाटा और वो लोग भी दहेज़ लेते देखे गए हैं जो किसी न किसी संस्था से इसका विरोध किया करते थे | दहेज़ उत्पीडन, दहेज़ के लिए बीवी , बहु पे ज़ुल्म इस दहेज़ प्रथा का वीभत्स रूप है |
हम जिस समाज में रह रहे हैं वहाँ बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया का उसूल चलता है और किताबों में सदाचार, इमानदारी के बातें लिखी, सुनी और पढाई जाती है | इसी लिए हम इन किताबी बातों को सुन के वाह वाह तो कर लेते हैं, इन दहेज़ विरोधी संस्थाओं की तारीफ भी कर लेते हैं लेकिन जब समय आता है तो केवल रुपैया ही दिखता है बाकी सब भुला दिया जाता है | हमारा तो यह हाल है की आज एक तरफ धन रख दें और दूसरी तरफ सारे धर्म के उसूल तो भी हम धन की तरफ ही दौड़ते नज़र आते हैं | ऐसे में इस धन विरोधी अभियान को कभी कामयाबी मिल सकेगी मुझे तो नहीं लगता | बस यही कह सकता हूँ उम्मीद पे दुनिया कायम है और कोशिश सामाजिक बुराइयों को ख़त्म करने की करना इंसानियत का तकाज़ा है जो मुझे और आप को करते रहना है |
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