आज अनायास ही अटलबिहारी बाजपेयी जी की याद आ गयी | अटल बिहारी बाजपेयी मेरी नज़र में एक सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व के मालिक थे जिन्होंने अप...
आज अनायास ही अटलबिहारी बाजपेयी जी की याद आ गयी | अटल बिहारी बाजपेयी मेरी नज़र में एक सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व के मालिक थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा एक बार नहीं बार बार दुनिया को मनवाया | अटल बिहारी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर में हुआ था| कहते हैं ना कि मंजिल तक पहुंचने के लिए तमाम मुश्किल सफर से गुजरना पड़ता है कुछ ऐसा ही अटल जी के साथ था. एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था. वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना कॅरियर शुरू किया था|
अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे. 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे थे. 1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे. 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया| 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे. 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे. अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं..1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे|
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और भारत के प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए. 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली|
अटल बिहारी वाजपेयी मुसलमानों में भी काफी लोकप्रिय नेता के तौर पे जाने जाते थे जबकि वो खुद संघ के संस्थापक सदस्य थे | आज भी यदि भाजपा की कमांड अटल बिहारी वाजपेयी जी के हाथ में होती तो सारे मुसलमान भाजपा के ही साथ होते | यह करिश्मा केवल अटल बिहारी वाजपेयी जैसा सर्वगुण सम्पन्न नेता ही कर सकता है जिसमे लिखने की शैली कुशल हो, बोलने की शैली कुशल हो और बातों को गहराई से समझने की शक्ति हो |
आज अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वृद्ध अवस्था के कारण देश की राजनीती में नहीं हैं लेकिन उनकी कमी हमेशा महसूस होती रहेगी ख़ास कर के ऐसे समय में जब देश को एक बार फिर उनके जैसे नेता की ज़रुरत है |
अटल जी की एक कविता जो मुझे बहुत पसंद हैं पेश है |
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे. 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे थे. 1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे. 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया| 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे. 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे. अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं..1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे|
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और भारत के प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए. 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली|
अटल बिहारी वाजपेयी मुसलमानों में भी काफी लोकप्रिय नेता के तौर पे जाने जाते थे जबकि वो खुद संघ के संस्थापक सदस्य थे | आज भी यदि भाजपा की कमांड अटल बिहारी वाजपेयी जी के हाथ में होती तो सारे मुसलमान भाजपा के ही साथ होते | यह करिश्मा केवल अटल बिहारी वाजपेयी जैसा सर्वगुण सम्पन्न नेता ही कर सकता है जिसमे लिखने की शैली कुशल हो, बोलने की शैली कुशल हो और बातों को गहराई से समझने की शक्ति हो |
आज अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वृद्ध अवस्था के कारण देश की राजनीती में नहीं हैं लेकिन उनकी कमी हमेशा महसूस होती रहेगी ख़ास कर के ऐसे समय में जब देश को एक बार फिर उनके जैसे नेता की ज़रुरत है |
अटल जी की एक कविता जो मुझे बहुत पसंद हैं पेश है |
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
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