आज हिंदी ब्लॉगजगत के बहुत से ब्लॉगर फेस बुक पे ही अपने स्टेटस अपडेट किया करते है क्यूँ बड़े बड़े लेख लिखने और फिर उनपे लोगो की प्रतिक्रि...
हमारे अपने मित्रों से मिलने के दो अवसर बहुत आम हैं | एक तो यह की वो हमारे घर आये या हम उसके घर जायें | विचारों का आपस में आदान प्रदान हो , सहमती असहमति हो | इससे अपना पन बढ़ता है | यह इसी प्रकार है जैसे कोई ब्लॉगर आपके ब्लॉग पे आया और अपनी प्रतिक्रिया आपके लेख पे दी और बात आगे बढ़ाये|
दूसरा तरीका यह हुआ करता ही राह चलते, शादी या किसी मीटिंग में दोस्त से मुलाक़ात हो जाए | इसकी तुलना facebook पे आते जाते यहाँ वहाँ like या छोटी टिपण्णी करते मित्रों से की जा सकती है जिसमे दोस्त की मौजूदगी का अहसाह तो किया जा सकता है लेकिन वो ब्लॉगजगत वाली बात नहीं आती |
चलो एक कोशिश करते हैं फेस बुक के अपने मित्रों के स्टेटस को यहाँ ब्लॉग से पेश करने की जिस से लोगों को ब्लॉग और फेस बुक दोनों का मज़ा यही आने लगे | इसके लिए मुझे ही फेस बुकिया बनना पड़ेगा लेकिन भले काम की शुरुआत के लिए किसी न किसी को क़ुरबानी तो देनी ही पड़ती है | जो मेरे मित्र ब्लॉगजगत के लोग नहीं हैं उसके स्टेटस पेश न कर सकने के लिए माफ़ी चाहूँगा | वो अगर चाहें तो मुझसे जुड़ सकते हैं |
https://www.facebook.com/smma59
आज के कुछ ऐसे स्टेटस जो सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं और इस समाज की समस्याओं को पेश करते हैं आपके सामने हैं |
आज की कुछ राजनैतिक पार्टियाँ मानव रक्त पीने वाली राक्षस हैं क्यूँ की जब जब नरसंहार हुआ, दंगे हुए, बेगुनाहों की जान गयी, हैवानियत का खुला नाच हुआ तो इलज़ाम राजनैतिक पार्टियों ने एक दुसरे पे ही लगाया |
इन हैवानियत की ज़िम्मेदार कौन सी पार्टी है यह बहस का मुद्दा है लेकिन इसकी ज़िम्मेदार कोई न कोई राजनीतक अवश्य पार्टी है यह बहस का मुद्दा नहीं बल्कि तय है |
आज हमारे एक मित्र ने पुछा मासूम साहब पता नहीं लग पा रहा की आप किस राजनैतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं ? मैंने कहाँ मैं तो इंसानियत और अमन की आवाज़ बुलंद करता हूँ ,हर आम हिन्दुस्तानी की तरह मैं भी धर्म के नाम पे नफरत की राजीनीति पसंद नहीं करता, हिन्दुस्तान में भ्रष्टाचार जो रिवाज बनता जा रहा है उसे परेशान हूँ ,देश की तरक्की चाहता हूँ इसलिए अभी तक तो NOTA वाला हूँ लेकिन तलाश ज़ारी है सही राजनेता या पार्टी की और यह ज़ारी रहेगी १२ मई तक | संभव है कोई मिल जाए सही नेता | वरना तो है NOTA का SOTA.
--S.M.MAsum
इन हैवानियत की ज़िम्मेदार कौन सी पार्टी है यह बहस का मुद्दा है लेकिन इसकी ज़िम्मेदार कोई न कोई राजनीतक अवश्य पार्टी है यह बहस का मुद्दा नहीं बल्कि तय है |
आज हमारे एक मित्र ने पुछा मासूम साहब पता नहीं लग पा रहा की आप किस राजनैतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं ? मैंने कहाँ मैं तो इंसानियत और अमन की आवाज़ बुलंद करता हूँ ,हर आम हिन्दुस्तानी की तरह मैं भी धर्म के नाम पे नफरत की राजीनीति पसंद नहीं करता, हिन्दुस्तान में भ्रष्टाचार जो रिवाज बनता जा रहा है उसे परेशान हूँ ,देश की तरक्की चाहता हूँ इसलिए अभी तक तो NOTA वाला हूँ लेकिन तलाश ज़ारी है सही राजनेता या पार्टी की और यह ज़ारी रहेगी १२ मई तक | संभव है कोई मिल जाए सही नेता | वरना तो है NOTA का SOTA.
--S.M.MAsum
रसना पर अंकुश नही, करते व्यर्थ प्रलाप!
बिन सोचे ही बोलते, आसन श्री श्री आप!
आसन श्री श्री आप, जीभ को तनिक सम्भालों!
सुधरे ससुरी जीभ, आसन कोई निकालो!
कहता हूँ बेबाक, कसौटी स्वयं की कसना!!
आसन ढूँढों नेक, रहे यह नियंत्रित रसना!!
बिन सोचे ही बोलते, आसन श्री श्री आप!
आसन श्री श्री आप, जीभ को तनिक सम्भालों!
सुधरे ससुरी जीभ, आसन कोई निकालो!
कहता हूँ बेबाक, कसौटी स्वयं की कसना!!
आसन ढूँढों नेक, रहे यह नियंत्रित रसना!!
जब से होश संभाला है तब से नाम के आगे डॉक्टर लगा ही पाया है ! बोलने मे भी कोई मिस्टर दराल कहे तो बड़ा अज़ीब सा लगता है ! लेकिन फ़ेसबुक ने जिद पकड़ी हुई थी कि नाम मे डॉक्टर शब्द लगने की अनुमति नहीं है ! यह हमे स्वीकार्य नहीं लग रहा था ! लेकिन अथक प्रयास के बाद हमने फ़ेसबुक से अपना अधिकार प्राप्त कर ही लिया ! आखिर टेक्नोलॉजी मे भी लूपहोल्स तो होते ही हैं !---Dr. T daral
अपने चरमराते इन्फ्रास्त्रक्चर से जूझते शहर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है. एक आम शहरी २४ घंटे में तकरीबन १८ से १९ घंटे हांफ हांफ कर काम करता है और इसका उसे अनुकूल परिणाम भी नही मिलता . पारिवारिक सदस्यों से अंतर्क्रिया न होने के फलस्वरूप पारिवारिक विघटन जैसी समस्याए अपने चरम बिंदु पर पहुच चुकी है. -- Dr pawan vijay
तोता चाहे जितना भी इंसानों की नक़ल कर ले, लेकिन बिल्ली के सामने 'टाएँ-टाएँ' ही करता है... ऐसे ही लालची लोग जिस लालच में शराफत का चोला ओढ़ते हैं, उसे खोने के डर में उस चोले को उतार कर अपने असली रंग में आ जाते हैं!!! ..shahnawaz siddiqee
समाज के दबे कुचले मरियल लोगों की अभी लोकतंत्र में बड़ी आस्था है। सुबह सबेरे वोट देने के लिए लाइन लगा लेते हैं। ये अच्छी बात है। --------Satyendra Pratap Singh
बचपन में खेला जाने वाला खेल शिद्दत के साथ याद आ रहा है...
हम तुम्हारी ऊंच पे रोटियां पकाएंगे, हम तुम्हारी नीच पे रोटियां पकाएंगे...
(कृप्या इसे ऊंचाईृ-निचाई से जोड़ कर पढ़ें, जाति जैसा कोई अर्थ इसमें ना ढू्ंढे...एक बात और मुझे हिंदी अच्छी तरह आती है) --खुशदीप सहगल
बीजेपी के बैनर तले मोदी गिरोह ठीक उसी जगह रैली करने की इजाजत मांग रहा था जहां आखिरी रैली आज से दो दशक पहले किया था. विवेक भाई (Vivek Shankar) बता रहे हैं कि उस रैली में वे खुद मौजूद थे और अपनी आंख से देखा था कि हिन्दूवादी दल ने कैसे दंगे का माहौल बना दिया था. ईंट पत्थर ही नहीं गोलियां भी चली थी.
उस दंगाई रैली के बाद बीजेपी को फिर कभी बेनिया मैदान की याद न आई. अब याद आई जब बनारस में मोदी की जीत के लिए गुजरात के विकास का कद बौना नजर आने लगा. मुस्लिम बहुल इलाके में रैली करके मोदी गिरोह कौन सी सद्भावना फैलाता इसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. ऐसे माहौल में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए जिला प्रशासन दंगों की राजनीति करने की इजाजत नहीं दी तो कौन से लोकतंत्र की हत्या कर दी? ---
दिनेशराय द्विवेदी
जिंदगी तू परेशान,हैरान और उदास मत हो । ये जिंदगी तुझमे खुशियों के रंग भरने के वास्ते ही ये मेरी मोहब्बत है दोस्त है । मोहब्बत भी ऐसी कि मेरा ख्याल ना मेरी जिंदगी का सवाल ,उसे तो बस फिक्र सताती है मेरे दोस्त की । जिंदगी तू पूछती है मेरी मोहब्बत और दोस्त के दास्ताँ और मोहब्बत को हर पल मेरे दोस्त का ख्याल । दोस्त - सुन ,जिंदगी और मोहब्बत की बात ,दोनों तुम बिन अधूरे और तुम तो तुम हो ही । जिंदगी फिक्रमंद ,मोहब्बत बैचैन और दोस्त तू जानें कहाँ ,किस मस्ती में ? बताना दोस्त ,मोहब्बत ने पूछा है तेरा हाल । जिंदगी रही तो मोहब्बत और दोस्त दोनों से मिलूँगा । जानती हो ना मैं हर रिश्ता निभाता हुँ । -------------- अरविन्द विद्रोही
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