Original Firoz Shakir Photo by His Grand daugheter Marziya.Youngest Photographer at only 5 years old. मैं किसी व्यक्ति विशेष के बार में...
Original Firoz Shakir Photo by His Grand daugheter Marziya.Youngest Photographer at only 5 years old. |
इनसे मेरी मुलाक़ात वैसे तो अंतरजाल पे २००५ से होती थी लेकिन मुंबई में उनसे मिलना २००६ में हुआ | पहली बार जब मिला तो इतना समझ में आया की एक नेक दिल इंसान से मुलाक़ात हुयी थी | फिर कुछ और मिलने जुलने के के सिल सिले चले और एक ऐसे इंसान से रूबरू हुआ जिसके सीने में कोई दर्द छुपा हो लेकिन वो अपने चेहरे पे मुस्कराहट लाते हुए अपने ग़म को भुलाता जीने की कोशिश कर रहा हो | उनके दिल का दर्द तो मैं कभी नहीं जान सका लेकिन आज भी उसका मुस्कराता चेहरा नज़रों में घूमता रहता है और दिल उस शख्स को करीब से जानने का हर समय उत्सुक रहता है | जिसका मौक़ा शायद मुझे अब ना मिल सके लेकिन इस महान इंसान को भुलाना भी अब मेरे वश में नहीं |
जनाब फ़िरोज़ शाकिर बहुत से कलाओं के मालिक हैं जिनकी कविताओं में वास्तविकता और दर्द छुपा होता है, जिनकी फोटोग्राफी किसी भी बंधन से आज़ाद नज़र आती है | जिनका जीने का अंदाज़ दुनिया से जुदा हैं उनमे एक दिलकश मनमौजी और सभी बन्धनों से आज़ाद व्यक्ति के दर्शन होते हैं |
खुद दुनिया के बनावटीपन अलग करते इस महान व्यक्ति के इतने अंदाज़ तस्वीरों में मिलेंगे की आप ताज्जुब से देखते ही रह जायेंगे |फिल्म जगत हो , सड़कों के ग़रीब हों, हिजड़े हों ,मंदिर मस्जिद या कोई पर्व फ़िरोज़ शाकिर साहब का कैमरा किसी को नहीं बक्शता |
अपने पुत्र का विवाह जनाब फ़िरोज़ शाकिर साहब ने जौनपुर के एक अच्छे घराने में किया और जैसे ही उनकी पौत्री मरजिया का जन्म हुआ तो ऐसा लगा मानो उनको जीने का मकसद मिल गया | आज मरजिया 6 साल हो चुकी है और फोटोग्राफी के हुनर अपने दादा फ़िरोज़ शाकिर साहब से सीख रही है | आज कल अक्सर वो अपनी दूसरी पौत्री नरजिस के साथ भी दिख जाया करते हैं | उन्हें, आज जिस शब्द से बहुत अधिक प्रेम दिखाई देता है वो है दादा ,परिवार और अपने विचार और इज्ज़त भरी खुशहाल ज़िन्दगी जो उन्हें मिली लेकिन शायद उस समय या उस अंदाज़ में नहीं मिली जब और जैसे वो चाहते थे ऐसा मुझे अक्सर महसूस होता है |
ऐसे ही मिलते जुलते एक दुसरे को जानते समझते एक दिन किसी विषय पे मेरा मतभेद हो गया जनाब फ़िरोज़ शाकिर साहब से और मुझे बहुत दुखी कर गया | जीवन में मिलना बिछड़ना तो लगा रहता है लेकिन फ़िरोज़ शाकिर जैसे इंसान से बिछड़ने का दुःख शायद शब्दों में नहीं समझाया जा सकता | यह दूरी उस समय हुयी जब मैं उन्हें समझने की कोशिश कर रहा था | लेकिन फ़िरोज़ साहब एक महान व्यक्ति है किसी से शिकवा भी अधिक दिन तक नहीं रख पाते और फिर उनसे मेरी मुहब्बत भी कम नहीं थी इसलिए एक दुसरे के लिए इज्ज़त बनी रही और आज भी कभी कभी बातचीत हो जाया करती है |
आज बैठा बैठा अचानक उनकी कुछ तस्वीरों पे निगाह पड़ी उनकी याद आयी और दिल ने चाहा अपने विचारों पे कलम चला दूँ | और क्यूँ न चलाऊं आखिर ग़मों को सीने में छुपा के जीने की कला मैंने फ़िरोज़ शाकिर से ही सीखी है और उनका मैं आभारी हूँ की यह कला उन्होंने मुझे जाने या अनजाने में ही सिखा दी |
अपनी पौत्री narjis के साथ आजादी दिवस मनाते हुए | |
राजेश खन्ना के घर अपनी पौत्री के साथ |
राजेश खन्ना के साथ उनकी पौत्री मरजिया | |
एक महान कलाकार फ़िरोज़ शाकिर अपने दिलकश अंदाज़ में | |
इंसान वही होता है जिससे एक बार मिल ले तो बार बार मिलने का जी चाहता हो और फ़िरोज़ शाकिर में वो बात है
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