आम इंसान ऐसा मानता है कि जो धर्म को आधार बना के इंसानों से रिश्ते जोड़ने या तोड़ने को गलत समझता है वो धर्मनिरपेक्ष है या जो राजनितिक पार्...
आम इंसान ऐसा मानता है कि जो धर्म को आधार बना के इंसानों से रिश्ते जोड़ने या तोड़ने को गलत समझता है वो धर्मनिरपेक्ष है या जो राजनितिक पार्टी धर्म को आधार बना के देश के नागरिकों में भेद भाव ना करे वही पार्टी धर्मनिरपेक्ष है | ऐसी सोंच रखने वाला यकीनन समाज का भला कर सकता है क्यूंकि हमारी पहली पहचान तो हमारा इंसान होना है |
हमारे भारतवर्ष में जहां जनता के वोट से ही प्रधानमन्त्री पद की उम्मीदवारी तक पहुंचा जा सकता है वहाँ पार्टियों द्वारा यह एलान करते रहना की हमारी पार्टी ही केवल धर्मनिरपेक्ष पार्टी है अधिकतर झूट के सिवाए कुछ नहीं होता जिसे मैं इसे छद्म धर्मनिरपेक्षता मानता हूँ | यही वजह है की धर्मनिरपेक्ष और कट्टरवाद शब्दों ने अधिकतर देश को नुकसान ही पहुँचाया है |
धर्मनिरपेक्ष का मतलब हुआ करता है अपने धर्म का ठीक से पालन करना और दूसरों के धर्म की इज्ज़त करते हुए इंसानों के बीच रहना और कट्टरवाद का मतलब होता है अपने धर्म का ठीक से पालन करना | यहाँ यह अवश्य कहूँगा की ऐसा कोई धर्म नहीं जो इंसानियत ना सिखाता हो और जब हर इंसान अपने धर्म का पालन करेगा तो धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों के इस्तेमाल से समाज में बेवकूफ बनने की प्रथा का अंत हो जायेगा |
कुछ लोगों को लगता है कि यदि हम अपने धर्म का पालन सख्ती से ना करें और एक ऐसे इंसान की छवि बन जायें जो दूसरों के धार्मिक विश्वासों से प्रेरित नज़र आये तो हम सही मायने में धर्मनिरपेक्ष कहलायेंगे | ऐसे लोगों को दो चेहरे वाला इंसान कहा जाता है क्यूँ की यह हकीकत में तो होते अपने ही धर्म पे हैं बस कोशिश करते हैं खुद को दूसरों जैसा दिखाने की और जब अकेले में होते हैं तो दूसरों के धार्मिक विश्वासों और तरीकों का मज़ाक उड़ाते हैं | इनमे से कुछ वो हुआ करते हैं जिन्हें मौकापरस्त कहा जा सकता है क्यूँ की यह खुद को आप जैसा बनाके आप को खुश करने की कोशिश किया करते हैं और मतलब निकल जाने पे गायब हो जाते हैं |
आज आवश्यकता है सही मायने में धर्मनिरपेक्षता को समझने की या इस शब्द के इस्तेमाल से बचने की | वैसे भी इस शब्द का इस्तेमाल १८४६ से पहले नहीं किया गया |
मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) का मशहूर कथन याद आ गया कि "ऐ लोगों दुनिया के सारे इंसान तुम्हारी भाई हैं कुछ तुम्हारे धर्म भाई हैं और कुछ इंसानियत के रिश्ते से भाई है | आपस में भाईचारा कायम रखो | यदि ऐसे कथन का इस्तेमाल किया जाए तो धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों के इस्तेमाल की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |
हमारे भारतवर्ष में जहां जनता के वोट से ही प्रधानमन्त्री पद की उम्मीदवारी तक पहुंचा जा सकता है वहाँ पार्टियों द्वारा यह एलान करते रहना की हमारी पार्टी ही केवल धर्मनिरपेक्ष पार्टी है अधिकतर झूट के सिवाए कुछ नहीं होता जिसे मैं इसे छद्म धर्मनिरपेक्षता मानता हूँ | यही वजह है की धर्मनिरपेक्ष और कट्टरवाद शब्दों ने अधिकतर देश को नुकसान ही पहुँचाया है |
धर्मनिरपेक्ष का मतलब हुआ करता है अपने धर्म का ठीक से पालन करना और दूसरों के धर्म की इज्ज़त करते हुए इंसानों के बीच रहना और कट्टरवाद का मतलब होता है अपने धर्म का ठीक से पालन करना | यहाँ यह अवश्य कहूँगा की ऐसा कोई धर्म नहीं जो इंसानियत ना सिखाता हो और जब हर इंसान अपने धर्म का पालन करेगा तो धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों के इस्तेमाल से समाज में बेवकूफ बनने की प्रथा का अंत हो जायेगा |
कुछ लोगों को लगता है कि यदि हम अपने धर्म का पालन सख्ती से ना करें और एक ऐसे इंसान की छवि बन जायें जो दूसरों के धार्मिक विश्वासों से प्रेरित नज़र आये तो हम सही मायने में धर्मनिरपेक्ष कहलायेंगे | ऐसे लोगों को दो चेहरे वाला इंसान कहा जाता है क्यूँ की यह हकीकत में तो होते अपने ही धर्म पे हैं बस कोशिश करते हैं खुद को दूसरों जैसा दिखाने की और जब अकेले में होते हैं तो दूसरों के धार्मिक विश्वासों और तरीकों का मज़ाक उड़ाते हैं | इनमे से कुछ वो हुआ करते हैं जिन्हें मौकापरस्त कहा जा सकता है क्यूँ की यह खुद को आप जैसा बनाके आप को खुश करने की कोशिश किया करते हैं और मतलब निकल जाने पे गायब हो जाते हैं |
आज आवश्यकता है सही मायने में धर्मनिरपेक्षता को समझने की या इस शब्द के इस्तेमाल से बचने की | वैसे भी इस शब्द का इस्तेमाल १८४६ से पहले नहीं किया गया |
मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) का मशहूर कथन याद आ गया कि "ऐ लोगों दुनिया के सारे इंसान तुम्हारी भाई हैं कुछ तुम्हारे धर्म भाई हैं और कुछ इंसानियत के रिश्ते से भाई है | आपस में भाईचारा कायम रखो | यदि ऐसे कथन का इस्तेमाल किया जाए तो धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों के इस्तेमाल की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |
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