महिलाओं के पहनावे को लेकर ना जाने कितनी तरह की विचारधाराओं ने जन्म ले लिया है | पश्चिमी सभ्यता ,हिन्दुस्तान की सभ्यता और संस्कृति ,इस्ला...
महिलाओं के पहनावे को लेकर ना जाने कितनी तरह की विचारधाराओं ने जन्म ले लिया है | पश्चिमी सभ्यता ,हिन्दुस्तान की सभ्यता और संस्कृति ,इस्लाम का पर्दा ,गाँव की माहिलाओं का घूँघट ,ईसाई नन का पर्दा और कहीं कहीं न्यूडिस्ट कालोनी का प्रचलन इत्यादि |घ्यान से देखा तो पाया कि मूलतः दो तरह की विचारधाराएं हैं |एक वो जो महिलाओं के शरीर प्रदर्शन के खिलाफ है और इसका सम्बन्ध धार्मिक तौर तरीकों से अधिक है |इसे पुरुषवादी सोंच का नतीजा कहना उस समय तक उचित नहीं होगा जब तक यह ना मान लिया जाए की धर्म खुद पुरुषवादी सोंच का ही नतीजा हैं क्यूंकि महिलाओं की आजादी पे अंकुश लगाने वाले कानून इन्ही धार्मिक किताबों में मजूद हैं |
दुसरी सोंच यह है कि सुन्दरता को क्यूँ छुपाया जाए ? नग्न रहना चूँकि अभी तक जंगली जानवरों का तरीका समझा जाता है इसलिए ऐसा पहनावा पहनो जिसमे बहुत कुछ दिख भी जाए और सभ्य कहलाने वाले इंसानों की तरह बहुत कुछ छुपा भी रहे | यह और बात हैं कि इंसान में छुपा यह जंगली जानवर अक्सर डिस्को, क्लब,और समुद्रों के किनारे बाहर आ ही जाता है |लगता तो ऐसा है कि पुरुष को महिला शरीर को देखना और महिला को अपने शरीर का प्रदर्शन करते हुए मर्दों को रिझाना ,लुभाना अच्छा लगता है | यदि ऐसा है भी तो यह तो कुदरती है और इंसानों क्या जानवरों में भी यह पाया जाता है बस अंतर इतना है कि जानवरों के पास शादी जैसे रीतिरिवाज नहीं होते बल्कि ताक़त की दम पे या अपनी ख़ुशी और पसंद से शारीरिक सम्बन्ध बना लिए जाते हैं और इंसानों में एक कानून हुआ करता है |यही कानून इंसानों को सभ्य बनाते हैं |स्त्री और पुरुष का आपस में आकर्षण सेहतमंद इंसान की निशानी है लेकिन धार्मिक और सामाजिक कानून इस आकर्षण के नतीजे में अनैतिक संबंधों को पनपने के पहले ही उसपे अंकुश लगाते हैं |इन्ही अंकुश के कारण ही एक सभ्य समाज बनता है और जहां कानून तोड़ने की संभावनाएं हुआ करती हैं वहाँ इसी सभ्य इंसान को जंगली बनने में समय नहीं लगता |यह सच है कि जिसे कानून तोड़ते हुए जंगली जानवरों की तरह इधर उधर किसी भी महिला या पुरुष को शिकार बनाना होगा उसपे परदे में होने या अर्धनग्न होने का कोई ख़ास असर नहीं पड़ता | लेकिन वहशी जानवर की हद तक इंसान को पहुंचाने में महिलाओं के शारीरिक प्रदर्शन और उन्मुक्त समाज का असर अवश्य पड़ता है क्यूँ कि इंसान दरिंदा अचानक नहीं धीरे धीरे बनता है |
जब यह बात खुली किताब की तरह है की मर्द को महिलाओं का नग्न अर्धनग्न शरीर देखना पसंद आता है और इस शौक का अंत शारीरिक संबंधों पे जा कर होता है तो ऐसे पहनावे के लिए महिलाओं को उकसाना क्या पुरुषवादी सोंच का नतीजा नहीं ? औरतों के परदे में रहते तो मर्द का यह शौक़ पूरा होना संभव नहीं फिर पर्दा कैसे पुरुषवादी सोंच का नतोजा हो सकता है? पश्चिमी सभ्यता की ही यह देन है की हर तरफ आज औरत का शोषण आजादी के नाम पे किया जा रहा है| यह पुरुष बहुत अच्छे से जानता है कि औरत की कमजोरी उसका अपनी सुन्दरता की तारीफ सुनना है और इसी का फायदा लेते हुए उसके वस्त्र खेल के मैदान से लेकर दफ्तरों और इश्तेहारों तक में यह मर्द उतारता चला जाता है| मुझे यह बात पहले कभी समझ में नहीं आती थी की खेल के मैदान में जब भी महिला जाती है तो कम से कम वस्त्रों में ही क्यूँ जाती है ? जबकि इसकी आवश्यकता होती नहीं है | लेकिन जब से पुरुषों के क्रिकेट के खेल में महिलाओं का नाच देखा बात समझ आ गयी भाई खेल के मज़े में कम वस्त्रों के तडके से और भी अधिक मज़ा आता है |अभी एक लेख सामने आया जिसमे हमारे ब्लॉगर भाई कह रहे हैं “जब कोई महिला खिलाडी अपना और अपने परिवार के साथ अपने देश का भी नाम रोशन करती है तो उस महिला के कम वस्त्र पहनने पे एतराज़ करना उचित नहीं | अब आप ही बताएं इस पुरुषवादी सोंच का क्या किया जाए जो बस अर्धनग्न महिलाओं को निहारने के नए नए बहाने तलाशता फिरता है | देश के लिए बहुत से लोगों ने काम किया, किसी ने विज्ञान में किया किसी ने जंग में किया , किसी ने इतिहास में किया तो क्या इसका मतलब है इन सभी को आजादी मिल जानी चाहिए की जो चाहो करो तुम्हे कोई रोके टोकेगा नहीं|
ध्यान से देखने से आपको मिलेगा कि इश्वर ने केवल इंसानों को पैदा ही नहीं किया बल्कि उनको जीवन कैसे गुज़ारा जाय यह भी सिखाया और महिलाओं तथा पुरुष का आपसी सम्बन्ध कैसा हो और कैसे वस्त्रों में एक दुसरे का सामना किया जाए इत्यादि के कानून भी दिए जिनपे चलता हुआ इंसान सभ्य कहलाता है और जानवरों से अलग नज़र आता है | महिलाओं को आजादी के नाम पे कपड़ों से आज़ाद करने की रणनीति हकीकत में पुरुषवादी सोंच का नतीजा है जो महिलाओं को हर दिन पुरुषों के ऐश ओ आराम की चीज़ बनाते हुए उन्हें गुलामी की ओर ले जा रही है |