आज हिन्दुस्तान का हर नागरिक विभिन्न प्रकार के मानसिक और शारीरिक आतंक का शिकार कभी ना कभी अवश्य होता है | जातिगत तनाव, सांप्रदायिक तनाव, ...
आज हिन्दुस्तान का हर नागरिक विभिन्न प्रकार के मानसिक और शारीरिक आतंक का शिकार
कभी ना कभी अवश्य होता है | जातिगत तनाव, सांप्रदायिक तनाव, लिंगभेद से उभरने वाले
तनाव, नस्ल व प्रजाति आधारित तनाव इत्यादि से रूबरू होता आम हिन्दुस्तानी छोटे
छोटे समूह में बंटता जा रहा है और अकेला पड़ता जा रहा है | इन मानसिक और शारीरिक
तनावों की ज़िम्मेदार हिन्दुस्तान की राजनीति है जिसकी शुरुआत ही हिन्दुस्तान और
पकिस्तान के बंटवारे और सांप्रदायिक तनाव से हुई | आज यह राजनीति के धुरंधर यह
जानते हैं की किस तरह से हिन्दुस्तान की जनता को कैसे धर्म के नाम पे बाँट के अपना
वोट बैंक बनाया जाये | अधिकतर दंगे इसे वोट बैंक की राजनीति के चलते ही हुआ करते
हैं | इसी प्रकार जातिगत तनाव की ज़िम्मेदार भी हमेशा से राजनीती रही है जिसमे
मुल्लाओं और पंडितों ने साथ दिया और समाज को उच्च जाती ,निम्न जाती में बाँट दिया |
इस्लाम में तो जातिवाद का कोई वजूद नहीं और मस्जिद में सारे एक साथ खड़े होकर नमाज़
अदा करते हैं | किसी को जाती के आधार पे किसी भी धार्मिक सभा या मस्जिद में ,हज में
जाने से नहीं रोका जाता लेकिन यहाँ भी शादियों के समय जातिवाद दिखाई देता है ,शेख
सय्यद ,पठान खुद को आला दर्जे की नस्ल मानते हैं लेकिन यह भी आपस में शादियाँ नहीं
करते जबकि इस्लाम में ऐसी कोई मनाही नहीं है | हाँ मुसलमानों में जाती पे आधारित
झगडे नहीं हुआ करते लेकिन इंसानों को बाँट के राज करने वालों ने मुसलमान को बांटने
का नया बहाना तलाश लिया और इन्हें फिरको में बाँट दिया और फिर उस की आड़ में इनके
बीच भी दंगे होने लगे | इनके मुल्ला अलग हो गए, इनकी मस्जिदें अलग हो गयीं | हिन्दू
जाती के नाम पे किसी को मंदिर जाने देता है किसी को रोकता है मुसलमान फिरके के नाम
पे अलग अलग मस्जिदें बना लेता है | इन इंसानों के आपसी बंटवारे का तरीका हिन्दू हो
या मुसलमान एक ही दिखाई देता है बस इसके कारण अलग नज़र आते हैं |आज के दौर में तो
हिन्दुस्तान की राजनीतज्ञों का दिल इन सभी बंटवारों से नहीं भरा तो अब राज्यों को
भी बांटने के लिए आवाज़ उठने लगी है |
हिन्दू धर्म में भी वासुधैव कुटुम्बकम्’ यानी सम्पूर्ण मानव जाति को एक परिवार की तरह देखने-मानने की अवधारणा ग्रंथों में मिलती है। लेकिन भौतिकता की अंध दौड़ ने आज मानव कल्याण या मानवीयता का गला घोंट के रख दिया है |हिन्दुस्तान और पकिस्तान बंटने के बाद से तो ऐसा लगता है यह और बांटो राज करो की राजनीती यहाँ के नेताओं को एक आसान रास्ता दिखा गयी जिसको नमूना मान के अलग अलग बहाने से हिन्दुस्तान के इंसानों को बांटा जा रहा है | इस बंटवारे की राजनीती के चलते हिंसक घटनाओ का होना आज आम बात होती जा रही हैं जो यहाँ के लोगों को आतंक का तनाव देती रहती है | अक्सर लोग समझते हैं की दंगा हुआ, कोई हिंसा हुयी तो उसपे कुछ दिनों की कोशिश के बाद या लोगों की मध्यस्थता के बाद अमन हो गया | लेकिन ऐसा होता नहीं क्यूंकि दंगा और हिंसा काबू में आ गयी हिंसक और गुमराह करने वाले , इंसानों को बांटने वाले तो अभी भी समाज में आज़ाद घूम रहे हैं और इस इस ‘शान्तिकाल’ के दौरान नफ़रत की आग को भड़काने का काम हर मिले मौके का इस्तेमाल करते हुए बखूबी कर रहे हैं | शांतिकाल के दौरान इन अहिंसक तनावों के कारणों और उनको रोकने का हल आज तलाशने की आवश्यकता है|
आज हर चीज़ के भूमण्डलीकरण का दौर है और यह जीवन के तमाम सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक क्षेत्रों में घुसपैठ करना चाहता है। आतंवाद का भूमंडलीकरण तो १९६० में ही हो गया था या जब इसराइल और अरब जैसे विवादों का दौर चला | साम्प्रदायिकता और भूमण्डलीकरण एक दूसरे के हाथ ही मजबूत करते हैं और आतंकवाद जितना बढ़ता है उतना ही साम्प्रदायिकता को बल मिलता है |इस भूमण्डलीकरण का फायदा अमरीका मीडिया द्वारा प्रचार से उठाता है और कोशिश करता है कि जो वो सोंचे वही पूरा विश्व सोंचे |अमरीका के नेतृत्व में भूमण्डलीकरण की ताकतों ने 9/११ के हमले के बाद इस्लाम को अपना दुश्मन घोषित कर रखा है और इस्लाम को आतंकवाद का समानार्थी बना दिया गया है और इसका कारण अमरीका का विश्व के प्राकृतिक संसाधन तेल पे क़ब्ज़ा करना है| अब यह तेल उन देशों में अधिक मिलता है जहां मुस्लिम की संख्या अधिक है तो इसके लिए मुसलमान को आतंकवादी घोषित करना ही पड़ेगा जिस से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के बहाने इन देशों पे हमला किया जाए और अपना मकसद तेल संसाधनों पे कब्जे का पूरा किया जाये | आज आतंकवाद का दूसरा नाम पकिस्तान हो चूका है लेकिन अमरीका पकिस्तान से आतंकवाद मिटाने की जगह अरब देशों को अशांत बनाने और उनपे क़ब्ज़ा करने में ही लगा हुआ है | इराक से कभी कोई आतंकवादी हमला करने हिन्दुस्तान कोई नहीं आया और ना ही सिरिया से कोई हमला हुआ लेकिन अमरीका इराक में घुसा झूटे रासायनिक हथियार के इलज़ाम लगा के और जहां ऐसा नहीं कर पाता वहाँ रासायनिक हथियार इत्यादि रखने का बहाना तलाश लेता है |अब सिरिया की बारी है और ताज्जुब की बात यह है की जो पकिस्तान में आतंकवादी कहे जाते हैं वही सिरिया में अमरीका के सहयोगी है | हम भी अमेरिका के सहारे यह उम्मीद लगाये बैठे हैं की अमरीका उठेगा और पकिस्तान के आतंकवादियों पे रोक लगाएगा और वहाँ की सरकार से हिन्दुस्तान के खिलाफ किये जा रहे आतंवादी हमलो का हिसाब मांगेगा | यह एक ऐसा सपना है जो अमरीका के विश्व विजय से पहले पूरा नहीं होगा | इसलिए आतंकवाद से लड़ना है तो हमें खुद ही इसके रास्ते निकालने होंगे |
अमरीका तो चलिए अपना हित देख रहा है लेकिन आज हिन्दुस्तान में कुछ सांप्रदायिक ताक़तें अमरीका के पद चिन्हों पे चलने की कोशिश करते हुए क्यूँ नज़र आ रहे हैं ? इन्हें कौन से तेल के कुंवे मिलने वाले है? ऐसा लगता है जिस प्रकार टेक्नालाजी सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती है उसी प्रकार से सूचना प्राद्यौगिकी सारी मानसिकता को प्रभावित कर रही है। इस भूमंडलीकरण ने नारी को एक भोग की वस्तु बना लिया है और धर्म का इस्तेमाल झूट, फरेब और नफरत के ज़रिये साप्रदायिक ताक़तों को ,मजबूत करने का जरिया बना लिया है | धर्म का इस्तेमाल इंसानों को बांटने और सांप्रदायिक ताक़तों को मजबूत करने से रोकना ही अमन और शांति की सही राह है और इसी से आतंकवाद पे भी काबू पाया जा सकता है क्यूँ की साम्प्रदायिकता आतंकवाद को ख़त्म नहीं करती बल्कि उसे बढ़ाती है |
हिन्दू धर्म में भी वासुधैव कुटुम्बकम्’ यानी सम्पूर्ण मानव जाति को एक परिवार की तरह देखने-मानने की अवधारणा ग्रंथों में मिलती है। लेकिन भौतिकता की अंध दौड़ ने आज मानव कल्याण या मानवीयता का गला घोंट के रख दिया है |हिन्दुस्तान और पकिस्तान बंटने के बाद से तो ऐसा लगता है यह और बांटो राज करो की राजनीती यहाँ के नेताओं को एक आसान रास्ता दिखा गयी जिसको नमूना मान के अलग अलग बहाने से हिन्दुस्तान के इंसानों को बांटा जा रहा है | इस बंटवारे की राजनीती के चलते हिंसक घटनाओ का होना आज आम बात होती जा रही हैं जो यहाँ के लोगों को आतंक का तनाव देती रहती है | अक्सर लोग समझते हैं की दंगा हुआ, कोई हिंसा हुयी तो उसपे कुछ दिनों की कोशिश के बाद या लोगों की मध्यस्थता के बाद अमन हो गया | लेकिन ऐसा होता नहीं क्यूंकि दंगा और हिंसा काबू में आ गयी हिंसक और गुमराह करने वाले , इंसानों को बांटने वाले तो अभी भी समाज में आज़ाद घूम रहे हैं और इस इस ‘शान्तिकाल’ के दौरान नफ़रत की आग को भड़काने का काम हर मिले मौके का इस्तेमाल करते हुए बखूबी कर रहे हैं | शांतिकाल के दौरान इन अहिंसक तनावों के कारणों और उनको रोकने का हल आज तलाशने की आवश्यकता है|
आज हर चीज़ के भूमण्डलीकरण का दौर है और यह जीवन के तमाम सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक क्षेत्रों में घुसपैठ करना चाहता है। आतंवाद का भूमंडलीकरण तो १९६० में ही हो गया था या जब इसराइल और अरब जैसे विवादों का दौर चला | साम्प्रदायिकता और भूमण्डलीकरण एक दूसरे के हाथ ही मजबूत करते हैं और आतंकवाद जितना बढ़ता है उतना ही साम्प्रदायिकता को बल मिलता है |इस भूमण्डलीकरण का फायदा अमरीका मीडिया द्वारा प्रचार से उठाता है और कोशिश करता है कि जो वो सोंचे वही पूरा विश्व सोंचे |अमरीका के नेतृत्व में भूमण्डलीकरण की ताकतों ने 9/११ के हमले के बाद इस्लाम को अपना दुश्मन घोषित कर रखा है और इस्लाम को आतंकवाद का समानार्थी बना दिया गया है और इसका कारण अमरीका का विश्व के प्राकृतिक संसाधन तेल पे क़ब्ज़ा करना है| अब यह तेल उन देशों में अधिक मिलता है जहां मुस्लिम की संख्या अधिक है तो इसके लिए मुसलमान को आतंकवादी घोषित करना ही पड़ेगा जिस से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के बहाने इन देशों पे हमला किया जाए और अपना मकसद तेल संसाधनों पे कब्जे का पूरा किया जाये | आज आतंकवाद का दूसरा नाम पकिस्तान हो चूका है लेकिन अमरीका पकिस्तान से आतंकवाद मिटाने की जगह अरब देशों को अशांत बनाने और उनपे क़ब्ज़ा करने में ही लगा हुआ है | इराक से कभी कोई आतंकवादी हमला करने हिन्दुस्तान कोई नहीं आया और ना ही सिरिया से कोई हमला हुआ लेकिन अमरीका इराक में घुसा झूटे रासायनिक हथियार के इलज़ाम लगा के और जहां ऐसा नहीं कर पाता वहाँ रासायनिक हथियार इत्यादि रखने का बहाना तलाश लेता है |अब सिरिया की बारी है और ताज्जुब की बात यह है की जो पकिस्तान में आतंकवादी कहे जाते हैं वही सिरिया में अमरीका के सहयोगी है | हम भी अमेरिका के सहारे यह उम्मीद लगाये बैठे हैं की अमरीका उठेगा और पकिस्तान के आतंकवादियों पे रोक लगाएगा और वहाँ की सरकार से हिन्दुस्तान के खिलाफ किये जा रहे आतंवादी हमलो का हिसाब मांगेगा | यह एक ऐसा सपना है जो अमरीका के विश्व विजय से पहले पूरा नहीं होगा | इसलिए आतंकवाद से लड़ना है तो हमें खुद ही इसके रास्ते निकालने होंगे |
अमरीका तो चलिए अपना हित देख रहा है लेकिन आज हिन्दुस्तान में कुछ सांप्रदायिक ताक़तें अमरीका के पद चिन्हों पे चलने की कोशिश करते हुए क्यूँ नज़र आ रहे हैं ? इन्हें कौन से तेल के कुंवे मिलने वाले है? ऐसा लगता है जिस प्रकार टेक्नालाजी सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती है उसी प्रकार से सूचना प्राद्यौगिकी सारी मानसिकता को प्रभावित कर रही है। इस भूमंडलीकरण ने नारी को एक भोग की वस्तु बना लिया है और धर्म का इस्तेमाल झूट, फरेब और नफरत के ज़रिये साप्रदायिक ताक़तों को ,मजबूत करने का जरिया बना लिया है | धर्म का इस्तेमाल इंसानों को बांटने और सांप्रदायिक ताक़तों को मजबूत करने से रोकना ही अमन और शांति की सही राह है और इसी से आतंकवाद पे भी काबू पाया जा सकता है क्यूँ की साम्प्रदायिकता आतंकवाद को ख़त्म नहीं करती बल्कि उसे बढ़ाती है |