इन शब्दों को शायद हम में से हर एक ने सुना होगा कि अरे उनका क्या उनकी तो उस घर से खानदानी दुश्मनी है | आज यदि किसी दो खानदानो में दोस्ती ह...
इन शब्दों को शायद हम में से हर एक ने सुना होगा कि अरे उनका क्या उनकी तो उस घर से खानदानी दुश्मनी है | आज यदि किसी दो खानदानो में दोस्ती है तो क्या यह आवश्यक है की पिछली नस्ल की गलतियों को याद करके इस नस्ल के दिलों में भी दुश्मनियाँ कायम रखी जाये ? ऐसा भी देखने में आया है कि यदि कोई ऐसा खानदान जिसके बाप दादाओं में झगडे थे आज मिलने की कोशिश करता है तो समाज में ऐसे बहुत से लोग और रिश्तेदार हमदर्द बन के सामने आ जायेंगे जो आपको बार बार याद दिलायेंगे की अरे उनसे दोस्ती करली उनके बाप दादाओं ने तो तुम्हारे घराने के साथ ऐसा किया था वैसा किया था और इस प्रकार भड़का के नए मुहब्बत के रिश्तों को खराब करने की कामयाब और नाकामयाब कोशिश किया करेंगे |होना तो यह चाहिए था की ऐसे खानदानो की दोस्ती देख के लोग सामने आते मुबारकबाद देते और बाप दादाओं की गलती को फिर से ना दुहराने की नसीहत देते लेकिन होता अधिकतर ऐसा नहीं है और समाज के बदकिरदार लोग इंसानों के दिलों में आपसी नफरत को आगे बढाने में कामयाब हो जाते हैं |
ऐसा केवल खानदान और रिश्तेदारों में ही नहीं होता बल्कि धर्म जाती के नाम पे नफरत फैलाने वालों का भी यह आसान हथियार है|क्या आपको लगता है की आज का हिन्दू, मुसलमान,इसाई १४०० ,१६०० साल पहले के किसी भी धर्म युद्ध का ज़िम्मेदार है ? मुग़ल बनाता है बाबरी मस्जिद और मरता है आज का बेगुनाह हिन्दू मुसलमान| क्यूँ? यह कहाँ का इन्साफ है कि करे कोई और भरे कोई? किसी ज़ालिम के पूरे समाज या धर्म को मुजरिम बताने का कानून बनाने वाले हकीकत में इंसानियत के दुश्मन हैं जिका मकसद केवल समाज में अशांति और नफरत फैलाना हुआ करता है| ऐसे लोग समाज में जब भी शांति होती यह ले के बैठ जाते हैं अपना पुराना राग की यहाँ देखो मुसलमान मारे गए और वहाँ देखो हिन्दू मारे गए और इनकी कोशिश होती है यह सब सुन के आम आदमी के दिलों में नफरत पैदा की जाये और समय आने पे उसका इस्तेमाल किया जाये | आप जब भी इनसे बात अमन और शांति की करें तो इन्हें कभी काश्मीर याद आएगा, कभी मुग़ल याद आएगा, कभी अरब याद आएगा तो कभी गुजरात याद आएगा ,कभी १४०० साल पहले की नाइंसाफियां याद आयेंगी लेकिन नहीं याद आएगा तो उनके पड़ोस में रहता अमन पसंद इंसान | पुरानी गलतियों जिनके कारण नरसंहार हुआ उससे सीखने की जगह उसे दोहराने की कोशिश करते यह लोग हकीकत में इंसानियत के दुश्मन हैं |
ज़ुल्म किसी भी इंसान पे हुआ हो या ज़ालिम किसी भी धर्म का हो उसके खिलाफ आवाज़ उनका सहयोग ना करके उठाना हर इंसान का धर्म है |ऐसा नहीं की गुज़रे वक़्त में जो ज़ुल्म हुए वो गलत नहीं थे लेकिन आज के तरक्की और अमन पसंद इंसान का उस से क्या लेना देना | हाँ यह अवश्य है की गुज़रे समय में हुए किसी भी ज़ुल्म को सही कहने से आज के इन्सान को बचना चाहिए और पुरानी गलतियों से सीख के अपने आज को अमन पसंद बनाने की कोशिश करना चाहिए
ऐसा केवल खानदान और रिश्तेदारों में ही नहीं होता बल्कि धर्म जाती के नाम पे नफरत फैलाने वालों का भी यह आसान हथियार है|क्या आपको लगता है की आज का हिन्दू, मुसलमान,इसाई १४०० ,१६०० साल पहले के किसी भी धर्म युद्ध का ज़िम्मेदार है ? मुग़ल बनाता है बाबरी मस्जिद और मरता है आज का बेगुनाह हिन्दू मुसलमान| क्यूँ? यह कहाँ का इन्साफ है कि करे कोई और भरे कोई? किसी ज़ालिम के पूरे समाज या धर्म को मुजरिम बताने का कानून बनाने वाले हकीकत में इंसानियत के दुश्मन हैं जिका मकसद केवल समाज में अशांति और नफरत फैलाना हुआ करता है| ऐसे लोग समाज में जब भी शांति होती यह ले के बैठ जाते हैं अपना पुराना राग की यहाँ देखो मुसलमान मारे गए और वहाँ देखो हिन्दू मारे गए और इनकी कोशिश होती है यह सब सुन के आम आदमी के दिलों में नफरत पैदा की जाये और समय आने पे उसका इस्तेमाल किया जाये | आप जब भी इनसे बात अमन और शांति की करें तो इन्हें कभी काश्मीर याद आएगा, कभी मुग़ल याद आएगा, कभी अरब याद आएगा तो कभी गुजरात याद आएगा ,कभी १४०० साल पहले की नाइंसाफियां याद आयेंगी लेकिन नहीं याद आएगा तो उनके पड़ोस में रहता अमन पसंद इंसान | पुरानी गलतियों जिनके कारण नरसंहार हुआ उससे सीखने की जगह उसे दोहराने की कोशिश करते यह लोग हकीकत में इंसानियत के दुश्मन हैं |
ज़ुल्म किसी भी इंसान पे हुआ हो या ज़ालिम किसी भी धर्म का हो उसके खिलाफ आवाज़ उनका सहयोग ना करके उठाना हर इंसान का धर्म है |ऐसा नहीं की गुज़रे वक़्त में जो ज़ुल्म हुए वो गलत नहीं थे लेकिन आज के तरक्की और अमन पसंद इंसान का उस से क्या लेना देना | हाँ यह अवश्य है की गुज़रे समय में हुए किसी भी ज़ुल्म को सही कहने से आज के इन्सान को बचना चाहिए और पुरानी गलतियों से सीख के अपने आज को अमन पसंद बनाने की कोशिश करना चाहिए