किसी जवाब जोड़े को शाम के अँधेरे में बैठे देख एक बुज़ुर्ग ने पुछा रात के अँधेरे में क्या कर रहे हो तुम लोग ,जाओ घर जाओ वरना कोई दरिंदा तुमको ...
किसी जवाब जोड़े को शाम के अँधेरे में बैठे देख एक बुज़ुर्ग ने पुछा रात के अँधेरे में क्या कर रहे हो तुम लोग ,जाओ घर जाओ वरना कोई दरिंदा तुमको अपना शिकार बना लेगा | कोई छेड़ सकता है या बलात्कार कर सकता है | लड़की ने पलट के कहा हम कुछ भी कर रहे हैं इस से क्या फर्क पड़ता है यह हमारी आजादी है और हमारा अधिकार है | इसका यह मतलब तो नहीं की कोई बलात्कार करे | क्या करती है सरकार ? क्या मतलब है पोलिस का ?
यह सच है कि किसी को भी यह अधिकार नहीं की वो किसी महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ कोई भी हरकत करे ,बलात्कार तो बहुत ही दूर की बात है | लेकिन यदि ऐसा होता है चाहे उसका कारण कुछ भी हो तो क्या यह हमारी अक्लमंदी होगी कि कारण को दूर किये बिना शाम के अँधेरे में पार्क में किसी महिला मित्र के साथ बैठें और इंतज़ार करें किसी अनहोनी का | या हमें उसके कारणों की खोज करना चाहिए और इस समस्या का हल निकालना चाहिए | उदाहरण के लिए यदि आप के समाज में चोर घूमते हैं तो यह आपकी जिमेदारी है कि या तो ऐसा समाज बना लें जहां चोर न हों और यदि नहीं बना सकते तो घरों में ताला दाल लें | यह कहना कि हमारा धन है हम खुला रखेंगे मुर्खता ही कहलाएगी |
महिलाओं की आजादी आवश्यक है लेकिन आज़ाद रहने से पहले समाज के दरिंदो पे रोक लगाने का इंतज़ाम उस से भी अधिक ज़रूरी है | वैसे यह बात मैं कभी समझ नहीं सका की महिला हिन्दुस्तान में इतनी आज़ाद हुई की घूँघट गया, शलवार कुरता भी गया , मिनी ,मिडी ,स्लैक्स,टाइटस में आके अपनी सुन्दरता दूसरों को दिखा के प्रशंसा भे पाने लगी लेकिन क्यूँ यही महिला आज भी दहेज़ के बिना शादी नहीं कर पाती? क्यूँ यह आज भी विदा हो के ससुराल ही जाती है ,पति को अपने घर नहीं रख पाती? क्यूँ यही महिला अपने पिता से उसके धन दौलत में से उतना नहीं ले पाती जितना उसका भाई ले लिया करता है ? क्यूँ यह महिला शादी के बाद अपने नाम के आगे अपने पति का नाम लगा लेने में फ़क्र महसूस करती है और पति से यह अनुरोध भी नहीं कर पाती की वो पत्नी का नाम अपने नाम के आगे लगाये ? ऐसे बहुत से सवाल उभरते हैं और बिना किसी जवाब के कहीं खो जाते हैं |
महिलाओं का आज़ादी के नाम पे शरीर प्रदर्शन और सेक्स या पुरुष मित्र अपनी मर्ज़ी से बना लेने के नाम पे तो बड़े बड़े लेख आते हैं, प्रदर्शन होते हैं लेकिन सच में जो आजादी है अपने अधिकारों की उसके नाम पे सब चुप हो जाते हैं | मुझे तो कोई ख़ास कोशिश या इन अधिकारों को पाने के लिए कोशिश भी कम ही दिखती है | भाई माना आप आज़ाद हो गयीं है ,पढ़ लिख गयी है ,कुछ भी पहन सकती हैं, कहीं भी घूम सकती हैं लेकिन दहेज़ ला के कभी अपनी आजादी का और अधिकारों का प्रदर्शन भी तो करें |
मुझे तो लगता है की अपने शरीर का प्रदर्शन महिलाओं द्वारा करने को आजादी का नाम देना या पुरुष मित्र बना के शादी के पहले उनके साथ अकेले घूमना और रात के अँधेरे में बैठना भी पुरुष प्रधान समाज की दें है और महिलाओं को आजादी के नाम पे गुमराह कर के उनका शोषण करने का ही एक तरीका है |यदि यह माहिलाओं द्वारा मांगी आजादी होती तो वोह दहेज़ से छुटकारा मांगती, पिता की जायदाद में से उतना हक मांगती जितना भाई को मिलता है | शादी के बाद पिता का घर ना छोड़ने की शर्त रखती इत्यादि |
आप भी सोंचें महिलाओं की सच्ची आजादी का क्या मतलब है और किन अधिकारों को हासिल करने पे सही मायने में आज़ादी मिल सकती है |
यह सच है कि किसी को भी यह अधिकार नहीं की वो किसी महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ कोई भी हरकत करे ,बलात्कार तो बहुत ही दूर की बात है | लेकिन यदि ऐसा होता है चाहे उसका कारण कुछ भी हो तो क्या यह हमारी अक्लमंदी होगी कि कारण को दूर किये बिना शाम के अँधेरे में पार्क में किसी महिला मित्र के साथ बैठें और इंतज़ार करें किसी अनहोनी का | या हमें उसके कारणों की खोज करना चाहिए और इस समस्या का हल निकालना चाहिए | उदाहरण के लिए यदि आप के समाज में चोर घूमते हैं तो यह आपकी जिमेदारी है कि या तो ऐसा समाज बना लें जहां चोर न हों और यदि नहीं बना सकते तो घरों में ताला दाल लें | यह कहना कि हमारा धन है हम खुला रखेंगे मुर्खता ही कहलाएगी |
महिलाओं की आजादी आवश्यक है लेकिन आज़ाद रहने से पहले समाज के दरिंदो पे रोक लगाने का इंतज़ाम उस से भी अधिक ज़रूरी है | वैसे यह बात मैं कभी समझ नहीं सका की महिला हिन्दुस्तान में इतनी आज़ाद हुई की घूँघट गया, शलवार कुरता भी गया , मिनी ,मिडी ,स्लैक्स,टाइटस में आके अपनी सुन्दरता दूसरों को दिखा के प्रशंसा भे पाने लगी लेकिन क्यूँ यही महिला आज भी दहेज़ के बिना शादी नहीं कर पाती? क्यूँ यह आज भी विदा हो के ससुराल ही जाती है ,पति को अपने घर नहीं रख पाती? क्यूँ यही महिला अपने पिता से उसके धन दौलत में से उतना नहीं ले पाती जितना उसका भाई ले लिया करता है ? क्यूँ यह महिला शादी के बाद अपने नाम के आगे अपने पति का नाम लगा लेने में फ़क्र महसूस करती है और पति से यह अनुरोध भी नहीं कर पाती की वो पत्नी का नाम अपने नाम के आगे लगाये ? ऐसे बहुत से सवाल उभरते हैं और बिना किसी जवाब के कहीं खो जाते हैं |
महिलाओं का आज़ादी के नाम पे शरीर प्रदर्शन और सेक्स या पुरुष मित्र अपनी मर्ज़ी से बना लेने के नाम पे तो बड़े बड़े लेख आते हैं, प्रदर्शन होते हैं लेकिन सच में जो आजादी है अपने अधिकारों की उसके नाम पे सब चुप हो जाते हैं | मुझे तो कोई ख़ास कोशिश या इन अधिकारों को पाने के लिए कोशिश भी कम ही दिखती है | भाई माना आप आज़ाद हो गयीं है ,पढ़ लिख गयी है ,कुछ भी पहन सकती हैं, कहीं भी घूम सकती हैं लेकिन दहेज़ ला के कभी अपनी आजादी का और अधिकारों का प्रदर्शन भी तो करें |
मुझे तो लगता है की अपने शरीर का प्रदर्शन महिलाओं द्वारा करने को आजादी का नाम देना या पुरुष मित्र बना के शादी के पहले उनके साथ अकेले घूमना और रात के अँधेरे में बैठना भी पुरुष प्रधान समाज की दें है और महिलाओं को आजादी के नाम पे गुमराह कर के उनका शोषण करने का ही एक तरीका है |यदि यह माहिलाओं द्वारा मांगी आजादी होती तो वोह दहेज़ से छुटकारा मांगती, पिता की जायदाद में से उतना हक मांगती जितना भाई को मिलता है | शादी के बाद पिता का घर ना छोड़ने की शर्त रखती इत्यादि |
आप भी सोंचें महिलाओं की सच्ची आजादी का क्या मतलब है और किन अधिकारों को हासिल करने पे सही मायने में आज़ादी मिल सकती है |