मेरी सुबह होती है अल्लाह के शुक्र से जिसने मुझे नीद से उठा के एक दिन जीने का और दिया और मैं अल्लाह का शुक्र अदा करता हूँ और दुआ करता हू...
फिर सुबह सुबह सवेरा होने के पहले ही अल्लाह की इबादत नमाज़ पढ़ के करता हूँ और अपने पिछले गुनाहों की माफी आगे उन्हें न करने के वायदे के साथ मांगता हूँ | दिन में पांच बार मैं खुद को अल्लाह के सामने पेश करता हूँ और अल्लाह से वादा करता हूँ कि बुराईयों से खुद को बचाऊंगा | अल्लाह ने दिन में पांच बार नमाज़ पढने का हुक्म दिया है क्यूंकि अगर कोई इंसान सुबह की नमाज़ में किये गए वादे के बाद भी गुनाह कर जाए तो दोपहर (ज़ुहर) की नमाज़ में फिर अल्लाह से बातें करनी है सोंच के खुद को गुनाहों से रोक सके |
फिर शुरू होती है मेरी दुनियावी ज़िन्दगी जिसमे परिवार की परवरिश ,उनकी देखभाल, उनकी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश क्यूँ की अल्लाह ने अपने परिवार वालों ,महिलाओं और बच्चों के साथ अच्छे से पेश आने का हुक्म दिया है | पत्नी बच्चों ,भाई बहनों, के चेहरे पे मुस्कराहट लाना उनके लिए तोहफे लाना हज से अधिक अहमियत इस्लाम में रखता है | माता पिता के चेहरे को देखना ही पुण्य इस्लाम में माना जाता है यहाँ तक की यदि माता पिता इस्लाम धर्म पे नहीं हैं तब भी उनका हुक्म मानना आवश्यक है |
पड़ोसियों के दुखदर्द बांटने से लेकर ज्ञान हासिल करने और रोज़गार जायज़ तरीके से कमाते हुए, हर समय अल्लाह की ख़ुशी को ध्यान में रखते हुए दिन गुजारता हूँ क्यूँ की मैं एक मुस्लमान हूँ और अल्लाह का यही हुक्म है कि ज्ञान हासिल करना एक इबादत है, ना जायज़ तरीके से कमाया धन नरक में जाने का सीधा रास्ता है |
ज़ुल्म दुनिया में कहीं भी किसी भी धर्म वाले के साथ हो रहा हो मैं उसके खिलाफ अपनी ताक़त भर आवाज़ अवश्य उठाता हूँ क्यूंकि अल्लाह का कहना है ज़ालिम मुसलमान नहीं हो सकता | मैं कोशिश करता हूँ की किसी के बारे में ऐसी कोई बात न बोलूं जो मैं उसके सामने ना बोल सकूँ | यदि कोई मुझे दुःख देता है तो मैं उसी छमा कर देता हूँ क्यूँ की अल्लाह का कहना है की अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर दूँ तो दुनिया में मेरे बन्दों को जल्द से जल्द माफ़ कर दिया करो |
मैं जब भी किसी से मिलता हूँ तो सलाम करता हूँ जिसका अर्थ होता है अल्लाह की आप पर सलामती, दया और कृपा रहे और जब भी कोई गैर मुस्लिम मुझे सलाम करता है तो मैं उसकी भी सलामती की दुआ करता हूँ |मैं समाज में अमन शांति के साथ रहना पसंद करता हूँ ज़ुल्म और जालिमो से नफरत करता हूँ क्यूँ की इस्लाम का यही कानून है |
मैं मुसलमान हूँ क्यूंकि एक इंसान हूँ | लेकिन मैं दखी भी हूँ क्यूंकि मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ जहां सत्ता के लालचियों ने एक मुसलमान को इन्सान से जुदा कर दिया है | जब जब मैं इसान बनने की कोशिश करता हूँ केवल मुसलमान बना दिया जाता हूँ |ऐसा मुझे इसलिए लगता है कि जब मैं लिखता हूँ तो लोग कहते हैं बहुत अच्छा लिखते हो लेकिन अपने लेख में अल्लाह या कुरान जैसे शब्दों को लिखने से बचा करें, कुरान या किसी इस्लाम के महापुरुष के कथनों को लिखने से बचा करें तब आप को लोग अधिक पसंद करेंगे |जब कहीं पकिस्तान का नाम आता है तो लोग एक निगाह मुझे अवश्य देखते हैं जब की मुसलमान के लिए अपने वतन से मुहब्बत और वफादारी फ़र्ज़ है वरना वो मुसलमान नहीं | जब बाबरी मस्जिद का ज़िक्र आता है तो लोग मुझसे सवाल करते हैं |जबकि इस्लाम में मस्जिद से अधिक इंसान की जान की कीमत है |कुछ समय के लिए दुखी होता हूँ फिर यह सोंच के सबको माफ़ कर देता हूँ की वो अपना अमाल नामा लिख रहे हैं मुझे अपना अमाल नाम सही रखना चाहिए |
रात जब सोने से पहले अल्लाह से बातें करता हूँ तो दुआ करता हूँ समाज में शांति रहे, पडोसी महफूज़ रहे ,देश में शांति रहे और ऐ खुदा कल मुझे एक जीवन और देना जिस से मैं तेरे पैदा किये हुई इंसान के चेहरे पे खुशियाँ लाने की और कोशिश करूँ और समाज से नफरत ,ना इंसाफी और ज़ुल्म मिटाने की एक और कोशिश कर सकूँ |
जब तक जीवन है मैं ऐसे ही जीवन गुजारता रहूँगा क्यूंकि मैं नाफरमान नहीं बल्कि एक मुसलमान हूँ और एक इंसान हूँ |
एस एम् मासूम