मैंने अभी लिवइन रिलेशनशिप पे एक लेख लिखा था जिसमे मैंने कहा था कि इसे सामाजिक मान्यता दे देना चाहिए और मुझे पूरी उम्मीद है इसका नतीजा भी...
मैंने अभी लिवइन रिलेशनशिप पे एक लेख लिखा था जिसमे मैंने कहा था कि इसे सामाजिक मान्यता दे देना चाहिए और मुझे पूरी उम्मीद है इसका नतीजा भी अच्छा ही आएगा | आज शादी करना बड़ा मंहगा होता जा रहा है | लड़की के घरवालों के लिए तो और भी मुश्किल है |गरीब को भी आज लड़की की शादी के लिए ६-८ लाख रुपये की ज़रुरत पड़ा करती है | ऐसे हालत में बहुत सी शादियाँ सही जगह नहीं हो पाती ,बहुत सी शादियों में लड़की को शादी बाद ताने सुनने पड़ते हैं | गाँव इत्यादि में तो मारपीट तक महिला को दहेज़ ना लाने पे सहना होता है | जबकि शादी में आवश्यकता है तो केवल लड़की और लड़के की सहमती की और सात फेरे या निकाह की | इतनी रस्म के बाद समाज के करीबी लोगों और कुछ रिश्तेदारों को दावत दे के एलान करदिया जाए तो समझिये शादी की सभी रस्म पूरी हो गयी |वैसे तो शादी के बाद दोनों को मिलकर घर बनाना चाहिए लेकिन समाज और धर्म के तरीके को अपनाते हुए मर्द की यह ज़िम्मेदारी बनती है की रहने के लिए घर का इंतज़ाम करे जहां दोनों साथ साथ रह सकें | आज तो वैसे भी महिलाओं की आज़ादी का ज़माना है मर्द औरत बराबर हैं लेकिन शादी के मंहगे अनावश्यक रस्म और रिवाज के कारण लिव-इन-रिलेशनशिप का प्रचलन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है|इस प्रकार अपनी पसंद का साथी पा लेना खर्च और आसान भी बनाया जा सकता है |
लिइवन रिलेशनशिप को समाज में अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता क्यूँ की इसी सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन यदि इसे सामाजिक मान्यता दे दी जाए तो शादी की रस्म ओ रिवाज और धन की बर्बादी से छुटकारा आसानी से मिल सकता है और युवाओं को अपनी मर्जी का साथी भी मिलना आसान हो सकता है |वर्तमान समाज में लिव-इन-रिलेशनशिप तथा शादी के झांसे जैसे मुद्दे मुख्य रूप से उभर के सामने आये हैं क्यूंकि अभी तक हमारे समाज ने शादी को ही मान्यता दी है इसलिए लिव-इन-रिलेशनशिप को शादी करने की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल अधिक क्या जा रहा है जबकि लिव-इन-रिलेशनशिप का अपना एक वजूद है और यदि इसे ठीक से समझा जाए तो इंसान को अपराधबोध और ग्लानि और पश्चाताप के मकडजाल से बाहर निकालता है वो भी ऐसे हालत में जब स्त्री और पुरुष ने आपसी सहमती से सेक्स किया हो और समाज उसे अपनी अज्ञानता वश पाप का दर्जा दे रहा हो | बहुत से लोगों को यह लिइवन रिलेशनशिप या आपसी सहमती का सेक्स बदचलनी भी आज के सामाजिक ताने बाने लग सकता है इसलिए यहाँ यह कह देना आवश्यक समझता हूँ कि आपसी सहमती से किसी की पत्नी से सेक्स या पैसे की लालच में बार बार पुरुष या स्त्री बदलने (वैश्याव्रती ) को लिइवन रिलेशनशिप समझने की भूल न करें |
आज इतनी तर्क्क्की के बावजूद अधिकतर लड़कियों की शादियाँ उनके माता पिता की मर्जी और पसंद से ही हुआ करती जिसे कभी दिल से और कभी मजबूरी में अपनी मर्ज़ी और पसंद बना लेती है | जब शादी में सबसे अधिक अहमियत लड़के और लड़की की अपनी पसंद और मर्ज़ी की हुआ करती है | ऐसी स्थिति बहुत बार आती है कि पुरुष व्यापार और नौकरी के सिलसिले में वर्षों बहार रहतन है और पत्नी सुख से वंचित रहता है | ऐसे में वो गलत सांगत या आदतों जैसे हस्त मैथुन, में समलैंगिक सेक्स, विषयों के यहाँ जाना इत्यादि में भी अक्सर पड़ जाया करता है | लिइवन रिलेशनशिप ही इस मुश्किल का सबसे बढ़िया संधान है बस आवश्यकता है इसे सामाजिक मान्यता की और इसे सशक्त करने के लिए शादी जैसे कानून लाने की |
इस्लाम धर्म में इस तरह का प्राविधान है जिसे मिस्यार विवाह और बहुत जगहों में मुताह कहा जाता है | कुरान (४:२४) में जहां शादी के बारे में बताया गया है वहीँ इसको इस्तिमतातुम (अस्थायी विवाह, मिस्यार विवाह या मुताह ) नाम से संबोधित किया गया है |इसका चलन आज के सामाजिक ताने बाने में फिट नहीं होने के कारण बंद हो गया था लेकिन अब फिर सौदिया, पश्चिमी देशों ,ईरान इराक इत्यादि देशो में इसका चलन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है |इसका चलन बढ़ने का कारण इस रिश्ते में खर्चों का कम होना और अनावश्यक रस्म और रिवाज के बन्धनों का ना होना माना जा सकता है और इन सहूलियतों के साथ इन रिश्तों में इस्लाम शादी के सभी अधिकार औरत और मर्द को देता है | यह अधिकार वैश्याव्रती न बन जाए इसके लिए इसमें यह प्राविधान भी है कि लिइवन रिलेशनशिप के बाद पैदा औलाद को बाप का नाम और अधिकार मिलेगा| कोई भी औरत इस रिश्ते के टूटने के बाद ३ महीने से पहले दुसरी शादी नहीं कर सकती या लिइवन रिलेशनशिप किसी मर्द के साथ नहीं बना सकती |कुरान में ४:२४ में कहा है कि " अलबत्ता पवित्रता के साथ न कि उनसे व्यभिचार करो और इसी प्रकार जिन महिलाओं से तुमने अस्थायी विवाह द्वारा आनंद उठाया है, उन्हें उनका मेहर एक कर्तव्य के रूप में दे दो और यदि कर्तव्य निर्धारण के पश्चात आपस में रज़ामंदी से कोई समझौता हो जाये तो इसमें तुम पर कोई पाप नहीं है। नि:संदेह ईश्वर जानने वाला और तत्वदर्शी है। (4:24)
सामाजिक मान्यता और इस रिश्ते को सशक्त बनाते कानून के बिना या अपने अधिकारों को जाने बिना लिइवन रिलेशनशिप का नतीजा अच्छा आने की उम्मीद करना बेवकूफी है |