सहजीवन (लिवइन रिलेशनशिप) के तहत व्यक्ति किसी भी साथी के साथ स्वेच्छा से जब-तक चाहे तब तक रहने के लिए स्वतंत्र होता है, इसमें कोई बाध्यत...
सहजीवन (लिवइन रिलेशनशिप) के तहत व्यक्ति किसी भी साथी के साथ स्वेच्छा से
जब-तक चाहे तब तक रहने के लिए स्वतंत्र होता है, इसमें कोई बाध्यता नहीं होती।
जिम्मेदारियां कम होती है और आसानी से एक-दूसरे से विमुख हो सकते हैं। इस लिवइन
रिलेशनशिप को आज भी भारत में सामाजिक तौर पे अपनाया नहीं
जा सका है हमारी सामाजिक व्यवस्था कभी भी इसके लिए अनुमति नहीं देती जबकि बड़े
शहरों में आज के युवा ही नहीं अधेड़ भी ऐसे रिश्ते को अपनी पसंद बनाने में लगे हुए
हैं| नैतिक आधार में भारत में भी इसे मान्यता देने की बातें हुआ करती है लेकिन जहां
तक मुझे ज्ञान है सहमति आधारित लिव-इन रिलेशन को अपराध भी नहीं ठहराया गया है|
विश्व में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, नॉर्वे,
स्वीडन, स्कॉटलैंड जैसे देशों में लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता मिली हुई है।
भारत जैसे देश में हमारा परंपरावादी समाज शादी के पहले औरत और मर्द को साथ साथ रहने को अच्छी नज़रों से नहीं देखता है और बड़े बूढ़े और धर्म के ठेकेदार लिवइन रिलेशनशिप के बारे में यह कहते हुए अवश्य मिल जाएंगे की हम पाश्चात्य सभ्यता की चमक में अपने संस्कार, संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। कुछ लोग इसे पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिलाओं के शोषण का नया तरीका बताते हैं और कुछ लोग इसे सदियों से चली आ रही रखैल व्यवस्था का आधुनिक स्वरूप मानते हैं जिसमे महिलाओं का भरपूर शारीरिक शोषण किया जाता है, लेकिन उन्हें किसी भी प्रकार का पारिवारिक दर्जा या सामाजिक दर्जा देने का कोई रिवाज नहीं है |
हमारे युवा हर नयी सोंच को अपनी जीने की आज़ादी के नाम पे अपनाने को हर समय उत्सुक दिखाई देते हैं लेकिन अपनी पुरानी संस्कृति और संस्कारो से पूरी तरह इनकार भी नहीं करना चाहते इसलिए हमारे यहाँ इस लिव इन रेशंशिप शिप का इस्तेमाल इस तर्क के साथ किया जाता है की विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में ताल-मेल बैठा पाना और आसान हो जाता है| मतलब यह कि मकसद युवाओं का शादी के बंधन में बंधना ही हुआ करता है केवल लिवइन रिलेशनशिप से वो सतुष्ट नहीं होते |
अधिकतर इस लिवइन रिलेशनशिप में धोका ही मिलता है और यह धोका महिलाओं को मानसिक रूप से अधिक आहत करता है क्यूंकि वो पुरुषों की अपेक्षा अपने संबंधों के प्रति अधिक संजीदा और भावनात्मक हुआ करती हैं | हमारा परम्परावादी समाज भी ऐसे रिश्ते के प्रकाश में आ जाने के बाद उस महिला से शादी के प्रति रूचि नहीं दिखाता |महिलाओं को अपने अधीन रखना, उनका शोषण करना भारतीय पुरुषों का बहुत पुराना शौक है और मुझे ऐसा लगता है कि लिवइन रिलेशनशिप औरत को दासी बनाने का ही एक हथियार है जिसे महिलाएं अपनी आज़ादी के नाम पे बड़ी आसानी से स्वीकार कर के एक बड़ी गलती कर रही हैं |विवाह एक सामाजिक व पारिवारिक बंधन या रिवाज है जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त है लिव-इन रिलेशनशिप अभी इस दायरे के बहार है जबकि यह अपराध नहीं है |
मुझे तो लगता है की लिव-इन रिलेशनशिप में यदि औरत और मर्द खुश रह सकते हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है यदि इसे सामाजिक मान्यता मिल जाए और इसे विवाह के बंधन में बंधने की आशा से ना किया जाए | इसे लोगो की उनकी अपनी पसंद और ज़रुरत पे छोड़ देना चाहिए की वो शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं या लिवइन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करते हैं | लिवइन रिलेशनशिप को अपनाने के पहले लोगों को अपने अधिकारों का पता होना चाहिए और इस सम्बन्ध के कभी भी ख़त्म होने के लिए हमेशा मानसिक रूप से तैयार भी होना चाहिए क्यूंकि यह केवल आपसी सहमती का रिश्ता है |
भारत जैसे देश में हमारा परंपरावादी समाज शादी के पहले औरत और मर्द को साथ साथ रहने को अच्छी नज़रों से नहीं देखता है और बड़े बूढ़े और धर्म के ठेकेदार लिवइन रिलेशनशिप के बारे में यह कहते हुए अवश्य मिल जाएंगे की हम पाश्चात्य सभ्यता की चमक में अपने संस्कार, संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। कुछ लोग इसे पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिलाओं के शोषण का नया तरीका बताते हैं और कुछ लोग इसे सदियों से चली आ रही रखैल व्यवस्था का आधुनिक स्वरूप मानते हैं जिसमे महिलाओं का भरपूर शारीरिक शोषण किया जाता है, लेकिन उन्हें किसी भी प्रकार का पारिवारिक दर्जा या सामाजिक दर्जा देने का कोई रिवाज नहीं है |
हमारे युवा हर नयी सोंच को अपनी जीने की आज़ादी के नाम पे अपनाने को हर समय उत्सुक दिखाई देते हैं लेकिन अपनी पुरानी संस्कृति और संस्कारो से पूरी तरह इनकार भी नहीं करना चाहते इसलिए हमारे यहाँ इस लिव इन रेशंशिप शिप का इस्तेमाल इस तर्क के साथ किया जाता है की विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में ताल-मेल बैठा पाना और आसान हो जाता है| मतलब यह कि मकसद युवाओं का शादी के बंधन में बंधना ही हुआ करता है केवल लिवइन रिलेशनशिप से वो सतुष्ट नहीं होते |
अधिकतर इस लिवइन रिलेशनशिप में धोका ही मिलता है और यह धोका महिलाओं को मानसिक रूप से अधिक आहत करता है क्यूंकि वो पुरुषों की अपेक्षा अपने संबंधों के प्रति अधिक संजीदा और भावनात्मक हुआ करती हैं | हमारा परम्परावादी समाज भी ऐसे रिश्ते के प्रकाश में आ जाने के बाद उस महिला से शादी के प्रति रूचि नहीं दिखाता |महिलाओं को अपने अधीन रखना, उनका शोषण करना भारतीय पुरुषों का बहुत पुराना शौक है और मुझे ऐसा लगता है कि लिवइन रिलेशनशिप औरत को दासी बनाने का ही एक हथियार है जिसे महिलाएं अपनी आज़ादी के नाम पे बड़ी आसानी से स्वीकार कर के एक बड़ी गलती कर रही हैं |विवाह एक सामाजिक व पारिवारिक बंधन या रिवाज है जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त है लिव-इन रिलेशनशिप अभी इस दायरे के बहार है जबकि यह अपराध नहीं है |
मुझे तो लगता है की लिव-इन रिलेशनशिप में यदि औरत और मर्द खुश रह सकते हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है यदि इसे सामाजिक मान्यता मिल जाए और इसे विवाह के बंधन में बंधने की आशा से ना किया जाए | इसे लोगो की उनकी अपनी पसंद और ज़रुरत पे छोड़ देना चाहिए की वो शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं या लिवइन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करते हैं | लिवइन रिलेशनशिप को अपनाने के पहले लोगों को अपने अधिकारों का पता होना चाहिए और इस सम्बन्ध के कभी भी ख़त्म होने के लिए हमेशा मानसिक रूप से तैयार भी होना चाहिए क्यूंकि यह केवल आपसी सहमती का रिश्ता है |