धर्म का काम था इंसान को इंसानियत सिखाना और उसे हैवान बनने से रोकना | एक समय था जब लोग धार्मिक इन्सान पे भरोसा किया करते थे क्यूँ की...
धर्म का काम था इंसान को इंसानियत सिखाना और उसे हैवान बनने से रोकना |एक समय था जब लोग धार्मिक इन्सान पे भरोसा किया करते थे क्यूँ की जो जितना धार्मिक होता था उतना ही इमानदार, दयालु और बेहतरीन इंसान हुआ करता था | धर्म की आड में राजीनीति करने वालों ने आज धर्म की परिभाषा ही बदल के रख दी है | आज ऐसा लगता है की जो जितना बड़ा धार्मिक होता है उतना ही बड़ा हैवान होता है| धर्म से मुहब्बत उसे फ़ौरन इंसानियत का दुश्मन बना देती है क्यूँ की इंसानों को इंसान की नज़र से नहीं हिन्दू,मुसलमान, सिख ,इसाई ,यहूदी की नज़र से देखना शुरू कर देता है | आज बहुत से लोगों के विचार ऐसे होते जा रहे हैं की यदि समाज में अमन और शांति बनाये रखना है तो धर्म से दूर रहो क्यूंकि उनका मानना है की धर्म नफरत फैलाता है और जितना बेगुनाहों का खून धर्म के नाम पे बहा है उतना किसी और कारण से नहीं बहा | मैं यह नहीं कहता की ऐसा सोंचना पूरी तरह से गलत है लेकिन इस इंसानियत के क़त्ल का दोषी धर्म नहीं ,खुद इंसान के अंदर की लालच है | तो इसका इलाज भी धर्म का सही ज्ञान और उसके बताये रास्ते पे चलना चल के ही मिलेगा न की धर्म से दूर जा के |
धर्म के नाम पे अपने जैसे दुसरे इंसानों के लिए नफरत भरने वाले ,या धर्म के सहारे इंसान को इंसान से अलग करने वाले धर्मान्ध धार्मिक नेता ,बिकाऊ मुल्ला और पंडित हकीकत में बहुत कम हैं लेकिन जितने हैं राजनीति के खिलाडी हैं और इसी कारण धार्मिक भोले भाले इन्सान को गुमराह करते हुए अपना भला करने में लगे हुए हैं | आज ऐसे लोगों की पहचान आवश्यक है जो समाज के भोले भाले इंसानों को राज पात और धन दौलत की लालच में गुमराह करते हैं |एक समय था जब इसाई बहुत बदनाम थे धर्म परिवर्तन के नाम पे और आज भी मुंबई जैसे शहर में ऐसे मराठी इसाई बहुत मिल जाएंगे | फिर दौर शुरू हुआ मुसलमानों का धर्मपरिवर्तन अभियान ,जबकि इस्लाम में तो साफ़ साफ़ कहा गया है की इस्लाम कुबूल करने से पहले इस्लाम को समझो और खुद का दिल कहे तो कुबूल करो| ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन यदि किसी का करवा के मुसलमान बनाया जाए तो मुसलमान नहीं होता क्यूँ की दिल से वो इस्लाम कुबूल नहीं करता और अपने पुराने धर्म में ही रहता है | किसी को ज़बरदस्ती नमाज़ पढवा देने से नमाज़ नहीं होती क्यूंकि नमाज़ में दिल से नियत करनी होती है | इसके बावजूद ज़बरदस्ती इस्लाम कुबूल करवाने का काम कुछ राजनीति के महारती लोगों ने किया जिनका इस्लाम से कोई वास्ता नहीं था | यह और बात है की ज़बरदस्ती ऐसा किया गया कम और बदनाम इस्लाम को अधिक किया गया |यह सब धर्म के राजनीतिकरण का नतीजा है और इसका धर्म से से या उस धर्म के मानने वालों से कोई भी रिश्ता नहीं है |
राजनीति के खिलाडी जब इस तरह की हरकत करते हैं तो इसकी पब्लिसिटी भी करवाते हैं और यही पब्लिसिटी आम इंसानों के दिल में धर्म के नाम पे अपने जैसे दुसरे इंसान के लिए नफरत पैदा कर देती है |इस पब्लिसिटी केकारण ऐसा लगने लगता है दुनिया में चारो तरफ धर्म के नाम पे अत्याचार हो रहा है जबकि यह अत्याचार धर्म के सहारे राजनीति के नाम पे हुआ करता है |इसका असर आम इंसानों पे कैसे पड़ता है इसका उदाहरण आज की खबर है |त्रिपुरा सरकार के एक अधिकारी ने अपने ईसाई दामाद के हिंदू धर्म अपनाने से इनकार करने पर उसकी हत्या कर दी। क्या आप को लगता है की इस बाप को अपनी बेटी से प्रेम नहीं रहा होगा? लेकिन धर्मांध हो के इसने अपनी ही बेटी का घर उजाड़ दिया |इस धर्मध कातिल की बेटी का कहना है कि 'उसके पिता ने उसकी शादी को मान्यता नहीं दी थी और उसके पति पर हिंदू धर्म अपनाने के लिए दबाव डाल डाल रहे थे, जिससे वह इनकार करता था। उसे अभी यह भी डॉ है की उसके पिता उसे और उसके बेटे को मार सकते हैं।'यह जीता जागता उदाहरण है अज्ञानी धर्मांध का धर्म के नाम पे दरिंदा बनने का|
ऐसे उदाहरण सभी धर्म में आपको मिल जाएंगे जहां दुसरे धर्म में शादी की सजा परिवार वाले अपनी ही औलादों को मार के या उनका घर उजाड़ के दिया करते हैं |राजनीति के खिलाडियों ने आम अज्ञानी इंसान को आज धर्म के नाम पे बना दिया है हैवान |जबकि धर्म नाम है इंसानियत का |सबसे पहले हमें यह समझना होगा की धार्मिक इंसान वो नहीं जो दो गज की दाढ़ी रख के नमाज़ के गट्टे पेशानी पे बना के पाने जैसे दुसरे इंसानों से नफरत करे | वो भी धार्मिक नहीं जो तिलक लगा के राम राम जप करे और इंसानों के लिए उसके दिल में कोई दया न हो | बल्कि धार्मिक वो है जिसके दिल में अपने जैसे सभी इंसानों के लिए प्रेम हो भाईचारा हो चाहे वो किसी धर्म का इंसान हो |
यह संभव है धर्म के सही ज्ञान को हासिल करने से और गाँव इत्यादि में अंधविश्वास को दूर करते हुए उनको उनके धर्म की सही हिदायतों, नसीहतों को बताया जाए और समझाया जाए की इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और जोइंसानियत न सिखाये वो अधर्म है |