इंसान को जीवन में यदि कुछ पाना है तो उसके लिए मेहनत अवश्य करनी होती है लेकिन इन्सान की इच्छा हमेशा यही रही है की उसे कम या बिना मेहनत ...
इंसान को जीवन में यदि कुछ पाना है तो उसके लिए मेहनत अवश्य करनी होती है लेकिन इन्सान की इच्छा हमेशा यही रही है की उसे कम या बिना मेहनत के सबकुछ मिल जाए |अपनी कम मेहनत और अधिक लाभ की इच्छा को पूरी करने के लिए इन्सान शार्टकट के रास्ते तलाश करने लगता है | कभी छात्र और छात्राएं परीक्षा में नक़ल के रास्ते तलाशने लगते हैं और कभी अपना काम आसानी से करवाने के लिए लोग दफ्तरों में तो रिश्वत खोरों की तलाश करने लगते हैं | कभी हम लाटरी ,इनाम जैसे ईमेल और एस एम् एस के शिकार हो जाते हैं |संक्षेप में कहें तो हमारी यह शार्टकट की सोंच ही भ्रष्टाचार की जननी है |
इसी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए धर्म बने हैं जिसमे हमें सही और गलत की पहचान बताई गयी, पाप और पुण्य के बारे में बताया| हमें अच्छे संस्कार देने की कोशिश धर्म के द्वारा हमेशा से की जाती रही है |
इंसान का स्वभाव यह है कि जो काम उसे कष्ट न दे ,ऐश ओ आराम का जरिया बने उसी और भागता है| धर्म के बताए रास्ते में मेहनत है, कष्ट है इसी कारण हमें धर्म तो पसंद है लेकिन धर्म के बताए रास्ते पसंद नहीं आते | हम मंदिरों और मस्जिदों में जाकर, प्रसाद और चढ़ावे की रिश्वत देने की बात करके ,बिना मेहनत बहुत कुछ पाने की प्रार्थना करना तो पसंद करते हैं लेकिन उसी अल्लाह ,भगवन, इश्वर के बताये रास्ते पे चलना पसंद नहीं करते |क्यूंकि उनके बताये रास्ते पे चलने के लिए क़ुरबानी देनी होती है | यह बात और है की जो मन्नत और मुरादें मंदिरों,मस्जिदों,गुरद्वारे पे जा के मुरादें मांगता है और अपने ही रब के बताये रास्ते पे नहीं चलता उनकी मुरादें पूरी भी नहीं होती | आपने बहुत से लोगों को कहते सुना होगा न जाने हमने क्या गलती की के भगवान् ने हम पे यह मुसीबत डाल दी ? इंसान यही नहीं समझ पता की गलती उसने खुद की है अल्लाह और भगवान् को केवल मन्नत और मुरादो के लिए इस्तेमाल कर के |
हम यह भी जानते हैं की धार्मिक और अल्लाह से डरने वाले इंसान की समाज इज्ज़त किया करता है |यही कारण है की हम दोस्तों के बीच बैठ के ,ईमानदारी, सत्यवचन, संस्कारों की बात कर के भगवान के अवतारों, पैगम्बरों के किस्से बयान कर के खुद को बड़ा धार्मिक तो साबित करते हैं लेकिन उन बातों की अहमियत हमारे जीवन में कहानियों से अधिक कुछ नहीं होती | इस ब्लॉगजगत की ही बात ले लें ऐसे बहुत से ब्लॉग हैं जो संस्कारों की बातें करते हैं ,समाज के हित की बातें करते हैं पढने वाले उनकी तारीफ भी करते हैं लेकिन ऐसे ब्लॉग को पढने में मज़ा बहुत कम लोगों को ही आता | करीबी दोस्तों में बैठते हैं तो कहते हैं भाई बात तो सही कहता है है लेकिन मज़ा नहीं आता रोज़ रोज़ वही संस्कार की बातें सुन के | मज़ा तो आता है उन ब्लॉग पे जहां किसी की टांग खींची जाए,कुछ गरमा गरम झगडे हो रहे हों या फिर शान और शौकत की बात हो |और फिर धर्म के विषय से अधिक झगडे कहा संभव हैं ? इसीलिये ऐसे बहुत से लोग हैं जो केवल आपको धार्मिक ब्लॉग पे ही विवादित टिपण्णी देते दिखेंगे और सामाजिक सरोकारों पे लिखे लेख पे कुछ कहने का उनका दिल नहीं करता | विवाद न हो तो क्या मज़ा? शायद हम हम खुद को धार्मिक साबित करने के लिए अपने धर्म के बताये रास्तों पे चलने की जगह धर्म के नाम पे झगडा करना अधिक पसंद करते हैं |
हम सत्यवादी लोगो की बातें भी करते हैं ,त्योगारों और ख़ास जगहों पे उनको नमन भी करते हैं लेकिन अपने बच्चों को पूरा इमानदार और सत्यवादी नहीं बनाना चाहते | होता यही है की जीवन में खुद को धार्मिक माने वाले इंसान का भी जब खुद के धर्म के द्वारा दिखाए रास्तों पे चलने का समय आता है तो यह जानते और समझते हुए की इन अवतारों और पैगम्बरों का बताया तरीका ही सही है हम उन रास्तों से अलग हट के अपने फायदे का रास्ता चुन लेते हैं |
इंसान की यही गलती इस समाज में फैले भ्रष्टाचार की जड़ है और इसी के गलती के कारन आज का इंसान अपना सुकून और चैन खोता जा रहा है |
यदि किसी ब्लॉगर को इस समाज को आईना दिखाती इस पोस्ट को पढ़ के मज़ा आया हो तो अवश्य बताएं |:)