नहजुल बलागा में हज़रात अली (अ.स) के कथन और पत्रों का एक संकलन है जिसे हर इन्सान को एक बार अवश्य पढना चाहिए |अपने एक ख़त में अमीरुल मोमिनी...
नहजुल बलागा में हज़रात अली (अ.स) के कथन और पत्रों का एक संकलन है जिसे हर इन्सान को एक बार अवश्य पढना चाहिए |अपने एक ख़त में अमीरुल मोमिनीन (अ) जवानों को वसीयत वसीयत करते हैं सभी को अपनी इज्ज़त की फ़िक्र पहले करनी चाहिए और इसकी हिफाज़त तेरे ही हाथ मैं है | अपनी इज्ज़त का सौदा इस संसार में किसी भी मक़सद तक पहुँचने के लिए करना नुकसान का सौदा है | अगर तूने इस राह में अपनी इज़्ज़त व प्रतिष्ठा खो दी तो तो तू लोगों का गुलाम बन के रह जाएगा |इज़्ज़ते नफ़्स(Self Respect) इंसान की बुनियादी ज़रुरतों में से है।
हजरत अली (अ.स) आगे उसी ख़त में फरमाते हैं कि पाप या गुनाह इंसान की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुचाता है अत: पाप और गुनाह से बचना चाहिए |के रास्ते पे कहते हुए इज्ज़त की हिफाज़त संभव नहीं | इसी प्रकार से मजबूरी के अलावा दूसरों से मदद माँगना इंसान की प्रतिष्ठा और सम्मान को बर्बाद कर देता है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं: लोगो से माँगके सामने हाथ फैलाना बेइज़्ज़ती का एक ऐसा तौक़ है जो इज़्ज़तदारों की इज़्ज़त और शरीफ़ ख़ानदान और वंश के इंसानों से उनके वंश की शराफ़त को छीन लेता है। इमाम (अ) फ़रमाते हैं: कि जो कोई ख़ुद को दूसरों के सामने कमज़ोर ज़ाहिर करता है लोग भी उसे ज़लील व पस्त समझते हैं हर इंसान की इज़्ज़त उसकी अपने कार्यों पर आधारित है जो उसने खुद अंजाम दिए हैं इसलिए अगर इंसान अपने आपको पस्ती व ज़िल्लत से बचा के रखे तो बुलंदियाँ अवश्य तय करेगा |
अगर कोई चाहता है कि इज्ज़त सुरक्षित रहे तो उसे चाहिये कि हर ऐसी बात और काम से जो कमज़ोरी का कारण बने उस से बचे। इसीलिये इस्लाम ने चापलूसी करना , ज़माने से हर समय शिकायत करते रहने को , अपनी मुश्किलों को लोगों से बयान करने को , बड़े बड़े दावे करने से , यहाँ तक कि अकारण आवभगत, सत्कार, करने से मना किया है | हद से ज़्यादा प्रशंसा और तारीफ़ चापलूसी है उससे सामने वाले इंसान में घमंड पैदा हो जाता है और यही घमंड एक दिन आपकी बेईज्ज़ती का कारण बन जाता है |
अक्सर लोग धन कमाने की लालच में रिश्वत ले के, समाज में झूट बोल के,लोगों को बेवकूफ बना कर और भी बहुत से पाप करके अपनी इज्ज़त का सौदा करने की गलती करजाते हैं लेकिन भूल जाते हैं यह बेईज्ज़ती एक दिन उनके लिए ही घातक सिद्ध होगी |
इसलिए इंसान समाज में ऐसे काम न करे जिस से उसकी इज्ज़त चली |
हजरत अली (अ.स) आगे उसी ख़त में फरमाते हैं कि पाप या गुनाह इंसान की इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुचाता है अत: पाप और गुनाह से बचना चाहिए |के रास्ते पे कहते हुए इज्ज़त की हिफाज़त संभव नहीं | इसी प्रकार से मजबूरी के अलावा दूसरों से मदद माँगना इंसान की प्रतिष्ठा और सम्मान को बर्बाद कर देता है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं: लोगो से माँगके सामने हाथ फैलाना बेइज़्ज़ती का एक ऐसा तौक़ है जो इज़्ज़तदारों की इज़्ज़त और शरीफ़ ख़ानदान और वंश के इंसानों से उनके वंश की शराफ़त को छीन लेता है। इमाम (अ) फ़रमाते हैं: कि जो कोई ख़ुद को दूसरों के सामने कमज़ोर ज़ाहिर करता है लोग भी उसे ज़लील व पस्त समझते हैं हर इंसान की इज़्ज़त उसकी अपने कार्यों पर आधारित है जो उसने खुद अंजाम दिए हैं इसलिए अगर इंसान अपने आपको पस्ती व ज़िल्लत से बचा के रखे तो बुलंदियाँ अवश्य तय करेगा |
अगर कोई चाहता है कि इज्ज़त सुरक्षित रहे तो उसे चाहिये कि हर ऐसी बात और काम से जो कमज़ोरी का कारण बने उस से बचे। इसीलिये इस्लाम ने चापलूसी करना , ज़माने से हर समय शिकायत करते रहने को , अपनी मुश्किलों को लोगों से बयान करने को , बड़े बड़े दावे करने से , यहाँ तक कि अकारण आवभगत, सत्कार, करने से मना किया है | हद से ज़्यादा प्रशंसा और तारीफ़ चापलूसी है उससे सामने वाले इंसान में घमंड पैदा हो जाता है और यही घमंड एक दिन आपकी बेईज्ज़ती का कारण बन जाता है |
अक्सर लोग धन कमाने की लालच में रिश्वत ले के, समाज में झूट बोल के,लोगों को बेवकूफ बना कर और भी बहुत से पाप करके अपनी इज्ज़त का सौदा करने की गलती करजाते हैं लेकिन भूल जाते हैं यह बेईज्ज़ती एक दिन उनके लिए ही घातक सिद्ध होगी |
इसलिए इंसान समाज में ऐसे काम न करे जिस से उसकी इज्ज़त चली |