हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद करवाने में राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की दी गयी कुर्बानियों को देश आज भी याद करता है लेकिन जब...
हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद करवाने में राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की दी गयी कुर्बानियों को देश आज भी याद करता है लेकिन जब आज के हिन्दुस्तान पे नज़र डालते हैं तो महात्मा गाँधी का सपना सच होते नहीं दिखाई देता यहाँ तक की कोशिश भी नहीं दिखती | महात्मा गाँधी के विचारों को पढ़ते समय कुछ पंक्तियाँ ऐसी पढ़ी की लगा यदि आज यह हिन्दुस्तान गाँधी के सपने जैसा हिन्दुस्तान होता तो कितना सुखी होता | देखिये गाँधी जी पश्चिमी सभ्यता के अनुसरण के बारे में क्या कहते हैं |
मैं तो बस प्रार्थना कर रहा हूं और आशा लगाए हूं कि एक नये और मजबूत भारत का उदय होगा। यह भारत पश्चिम की तमाम बीभत्स चीजों का घटिया अनुकरण करने वाला युद्धप्रिय राष्टं नहीं होगा। बल्कि एक ऐसा नूतन भारत होगा जो पश्चिम की अच्छी बातों को सीखने के लिए तत्पर होगा और केवल एशिया तथा अफ्रीका ही नहीं बल्कि समस्त पीडित संसार उसकी ओर आशा की दृष्टि से देखेगा...
लेकिन, पश्चिम की तडक-भडक की झूठी नकल और पागलपन के बावजूद, मेरे और मेरे जैसे बहुत-से लोगों के मन में यह आशा बंधी हुई है कि भारत इस सांघातिक नृत्य से उबर जाएगा, और 1915 से लेकर बनीस साल तक उसने निरंतर अहिंसा का जो प्रशिक्षण लिया है, चाहे वह कितना ही अपरिपक्व हो, उसके बाद वह जिस नैतिक |ऊँचाई पर बैठने का अधिकारी है, उस स्थान पर आसीन होगा ।
(हरि, 7-12-1947, पृ. 453) स्त्रोत : महात्मा गांधी के विचार, पृ.104-153
यदि भारतवासियों ने महात्मा गाँधी के इस कथन को समझा होता तो क्या आज हम बलात्कार जैसे अपराधों से इतने परेशान होते जितना आज है ? क्या आज हिन्दुस्तान वालों ने पश्चिम से नाईट क्लब, पोर्नोग्राफी,और महिलाओं के कम वस्त्रों के शौक जैसी बीमारियाँ ले के खुद को मानसिक रोगी नहीं बना लिया है | गाँधी के इन विचारों को अहमियत देना तो दूर आज यदि संघ प्रमुख मोहन भागवत कह दें कि शहरों में रेप की घटनाओं में बढ़ोत्तरी की वजह पश्चिमी सभ्यता है तो रशीद अल्वी जैसे वरिष्ट नेता कड़ी प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हैं |जबकि जाती तौर पे रशीद अल्वी खुद इन पश्चिमी सभ्यता के हिमायती नहीं ऐसा मुझे यकीन है | शायद राजनीति ही महात्मा गाँधी के उच्च विचारों को निगल गयी |
आज की पोलिस का तो तरीका है वो अंग्रेजों का दिया हुआ है जहां ज़ुल्म और जोर ज़बरदस्ती को अधिक अहमियत दी जाती थी | और इनके पीछे मानसिकता थी हिंदुस्तानिओं को गुलाम बना के और उनकी आवाज़ को दबा के रखना | इसीलिये महात्मा गाँधी ने इसे बदलने के बारे में बार बार कहा था | देखी महात्मा गाँधी क्या कहते हैं? कैसे होनी चाहिए पोलिस व्यवस्था ?
अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल रखना जरूरी हो सकता है। मैं मानता हूं कि यह मेरी अपूर्ण अहिंसा की निशानी है। मैंने जिस तरह सेना के विषय में कहा है, उस तरह पुलिस के बारे में यह कहने का साहस नहीं कर सकता कि हम पुलिस बल के बगैर काम चला सकते हैं। हां, मैं ऐसे राज्य की कल्पना अवश्य कर सकता हूं और करता हूं, जिसमें पुलिस की जरूरत नहीं होगी, लेकिन यह तो भविष्य ही बताएगा कि हम कभी ऐसा करने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं।
मेरी कल्पना की पुलिस आज के पुलिस बल से बिलकुल भिन्न होगी। इसमें अहिंसा में विश्वास करने वाले लोग भरती किए जाएंगे। वे जनता के स्वामी नहीं बल्कि सेवक होंगे। लोग सहज रूप से उनकी सब प्रकार की सहायता करेंगे और परस्पर सहयोग से वे बढते उपंवों पर आसानी से काबू पा सकेंगे।
पुलिस के पास किसी-न-किसी तरह के हथियार तो होंगे लेकिन उनके इस्तेमाल की कभी-कभार ही आवश्यकता पडेगी, अगर पडी तो। सच पूछा जाए तो पुलिसकर्मी सुधारक के रूप में काम करेंगे। पुलिस का काम मुख्यतः लुटेरों और डाकुओं तक सीमित होगा।
अहिंसक राज्य में श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच झगडे और हडतालें कभी-कभार ही होंगी, क्योंकि अहिंसक बहुमत का प्रभाव इतना अधिक होगा कि समाज के सभी प्रमुख वर्ग उसकी बात आदर के साथ मानेंगे। इसी प्रकार, सांप्रदायिक दंगों की भी कोई गुंजाइश नहीं रहेगी । (हरि, 1-9-1940, पृ. 265)
इसको पढने के बाद सोंच रहा था कहाँ गया गंधी का हिन्दुस्तान ? क्या कभी पूरा हो पायेगा महात्मा गाँधी का सपना?