इंसान का जिस्म अलग-अलग अंगो से मिलकर बना है और उन अंगो के बीच एक क़ुदरती ताल्लुक़ हुआ करता है इन अंगो का स्वस्थ रहना आवश्यक हुआ करता ...
इंसान कुदरती तौर से ज़िन्दा रहना चाहता है और केवल जिंदा ही नहीं दुनिया के ऐश ओ आराम भी चाहता है | ऐसे में वो अपना जीवन पैसा कमाने और अपनी नस्ल को आगे बढाने की फ़िक्र में पूरे जीवन लगा रहता है |सही उम्र में शादी और अपने परिवार को चलाने के लिए आवश्यक पैसा कमा लेने तक कोई मुश्किल समाज के लिए नहीं पैदा होती | मुश्किल जब शुरू होती है जब इस इंसान की भूख बढ़ने लगती है और यह अपनी इन्द्रियों के वश में होने लगता है | अब वो लग जाता है आवश्यकता से अधिक धन जमा करने में और सेक्चुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए अनैतिक संबंधों को बनाने में | जबकि यह सेक्चुअल डिज़ायर्स इंसान में अल्लाह ने इसलिए बनाई है की इंसान जोड़े बनाये और अपनी नस्ल को आगे बढ़ाये| समाज में असंतुलन तब पैदा होता है जब औरत और मर्द अपने रिश्तो को केवल सेक्चुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करने लगते है |
ऐसे में इंसान धन का लोभी होता जाता है और धन कमाने के लिए सही या गलत किसी भी रास्ते पे चलने से खुद को नहीं रोक पता | यही हाल उनका भी होता है जो सेक्चुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए एक स्त्री या पुरुष से संतुष्ट नहीं होते | यह वो लोग हैं जो हकीकत में मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं और इनकी बीमारी का कारण होता है इनका अपने धर्म और अपने समाज के बनाये उसूलों पे न चलना|
यह माता पिता की ज़िम्मेदारी होती है की अपनी ओलाद में अच्छे संस्कार दें जिससे एक अच्छा समाज बन सके | इसलिए जब इंसान शादी करने की सोंचता है तो न उसे धन देखना चाहिए और न ही खूबसूरती बल्कि मर्द को अपने बच्चों की अच्छी माँ की तलाश करनी चाहिए और औरत को अपनी ओलाद के लिए अच्छे बाप की तलाश करनी चाहिए | कोई भी औरत या मर्द अच्छे माता पिता तब ही बन सकते हों जब वो खुद संसकारी हों ,अपने धर्म का पालन करने वाले हों | रिश्वत खोर पुरष और यौन आकर्षण द्वारा समाज में अपनी पहचान बनाने वाली महिला से अपनी ओलाद की सही परवरिश की उम्मीद करना गलत होगा | आज हम जिस समाज में रह रहे हैं वहाँ ग़बन, चोरी, रिश्वतखोरी, आतंकवाद और बलात्कार जैसे ख़बरों की कोई कमी नहीं है | आज कल तो ऐसा लगता है औरतों और बच्चियों का समाज में बच के रहना मुश्किल होता जा रहा है | सवाल यह उठता है की कोई बच्चा पैदा होते ही तो चोरी और बलात्कार सीखता नहीं यह तो हम ही हैं जो एक मासूम बच्चे को अपने जैसा बना देते हैं | आज कल तो बचपन में बच्चे को माँ की जगह आया या बेबी सिटींग का प्यार मिलता है और बच्चा खुद को अकेला सा महसूस करने लगता है और जब उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करने के लिए उसके माता पिता पास नहीं होते तो समाज से सीखने की कोशिश करने लगता है | ऐसे में जब युवा होता है तो सेक्स के बारे में जानने के लिए बाहरी दुनिया का सहारा लेता है और इस तलाश में उसकी मुलाक़ात कुछ बिगड़े बच्चों ,पत्रिकाओं, पोर्न फिल्म और गन्दी किताबों से होने लगती है | वो यह जान ही नहीं पाता की यह सेक्स की भूख असल में इस और इशारा कर रही है की अब तुम अपना परिवार बनाने के काबिल हो रहे हो इसलिए इसके बारे में जानो और इसकी अहमियत को समझो |ऐसे में युवा वर्ग धैर्य और सहनशीलता से दूर हो जाता है और इनके मुख्य कारण है परिवार से प्यार का न मिलना , समाज में भ्रष्टाचार का होना , स्कूल, कॉलेज का अविवेकपूर्ण वातावरण, टीवी, सिनेमा,इन्टरनेट पे मौजूद अश्लीलता आदि
गाँवो के बहुत से घरों में परिवार का मतलब होता है मर्द की दबंगई | बाहर जा के कमाना, फिर शराब और नाचगाना देखना और घर आके बीवी पे रॉब गांठना और गुस्सा आ जाने पे मार पीट करना | औरत को तो जैसे अपनी हवस का शिकार बनाना मर्द का जन्मसिद्ध अधिकार हो |आज की औरत भी पुरुषों की बराबरी के चक्कर में अपनी ही औलाद की दुश्मन बनी हुई है उसे यह ही नहीं समझ आ रहा की ओलाद की बेहतरीन परवरिश से अच्छा कोई और काम नहीं है | पैसा तो वैसे ही मर्द कमा के घर चला लेता था | अब क्या औरत धन कमा के घर लाने पे अधिक सुखी है ? यकीनन नहीं क्योंकि बहार जा के कमाओ और घर की ज़िम्मेदारी भी संभालो ,दोनों काम उसके सर पे आ गया है और ऊपर से माँ बाप के प्यार के अभाव में बिगडती ओलाद का सर दर्द अलग से झेलो | इसलिए महिलाओं को भी अपनी सही जिम्मदारी को समझते हुआ पहले अपने परिवार की और ध्यान देना चाहिए |
आज जिस समाज में हम रह रहे हैं यह केवल सामने से देखने में संस्कारी दिखता है लेकिन अंदर से इसमें रह रहे लोगों में एक धन का लोभी और महिलाओं को इस्तेमाल का सामान समझने वाला जानवर छुपा होता है | आज इन्टरनेट पे आने वाले लोगों में से ६०% यहाँ पोर्न अवश्य तलाशते हैं और ४०% इसमें से चाइल्ड पोर्न और एब्यूज पोर्न को तलाशते हैं | क्या ऐसे लोग जो चाइल्ड पोर्न तलाशते हैं उन के हाथ कोई गुडिया जैसे ५ साल की बच्ची लग जाए तो क्या यह दरिन्दे नहीं हो जाएंगे या अबुस पोर्न को तलाशने वाले किसी दामिनी को बक्श देंगे ? सामने से इनको पहचान बहुत मुश्किल हुआ करती है | ऐसे समाज में बढ़ता बच्चा युवा होते होते अपनी इंसानियत खो चुका होता होता है और नतीजे में एक शराबी ,बलात्कारी और क्रूर मर्द बन के सामने आता है |
पहले माता-पिता अपने बच्चों के सुख-दु:ख और अपनेपन के साथी थे परंतु आज भौतिकता एवं महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ में व्यस्त हो गए हैं| जितना एक बलात्कारी अपने इस कुकर्म का ज़िम्मेदार है उनता ही उसके माता पिता भी ज़िम्मेदार हैं | बलात्कारी को तो कानून सजा देगा लेकिन इन माँ बाप को कौन सजा देगा ? यकीनन इनको समाज सजा दे सकता है लेकिन उसके लिए समाज भी तो ऐसा हो जो संसकारी हो बलात्कारी न हो |इसका मतलब यह नहीं की समाज में आज अच्छे और संस्कारी लोगों की कमी है लेकिन इनकी संख्या इतनी कम है की यह समाज की बुराईयों के खिलाफ लड़ नहीं पा रहे हैं |कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि मनोवैज्ञानिक एवं पारिवारिक कारक अपराध की ओर उन्मुख करते हैं।
इस समस्या का हल यही है की इंसान खुद में बदलाव लाये और समाज में अच्छे परिवारों की संख्या में बढ़ोतरी हो और इसकी तैयार वहाँ से करनी होगी जहां से परिवार बनाने की तैयारी की जाती है | शादी के लिए लड़की चाहिए तो ऐसी तलाश करो जो आपके बच्चों की अच्छी माँ बन सके ऐसी संस्कारहीन नहीं जो अपने यौन आकर्षण द्वारा समाज में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करती हो या धन को अपने परिवार से अधिक अहमियत देती हो और इसी प्रकार ईमानदारी से कमाने वाला और अपने परिवार को प्यार देने वाला और औरत की इज्ज़त करने वाला मर्द ही एक अच्छा समाज दे सकता है |
COMMENTS