जबसे महिलाओं के अधिकार का राजनीतिकरण हुआ है यह ख्याल दिल में आने लगा है कि काश मैं लड़की होता | मुसीबत के समय जान बचाने के लिए इंसा...
जबसे महिलाओं के अधिकार का राजनीतिकरण हुआ है यह ख्याल दिल में आने लगा है कि काश मैं लड़की होता | मुसीबत के समय जान बचाने के लिए इंसान जो कुछ संभव हो करता है | आज के नए नए कानून की अगर लड़की को घूरा तो सजा और छुआ तब तो खैरियत नहीं सुन के कभी हंसी आती है और कभी उन बलात्कारियों पे गुस्सा कि उनकी हैवानियत की सजा या पूरा पुरुष समाज अब भुगतेगा |
आज मुंबई की ट्रेन में सफ़र कर रहा था , भीड़ भी बहुत थी | मैं भी एक मुसाफिर की तरह खड़ा था की अचानक एक महिला पे नज़र गयी तो मेरे बहुत ही करीब कड़ी थी और शायद एक दो बार मुझसे छु जाने के कारण या किसी और कारण से मुझे पलट के देख रही थी |
हकीकत जानिए अगर सांप इतने करीब देख लेता तो नहीं डरता लेकिन यहाँ तो एक ग़लतफ़हमी हुई और सालों की बनी बनाई इज्ज़त गयी | मैं सिमटता चला और वो फैलती गयीं और यह कमबख्त ट्रेन थी की रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी | पहली बार बांद्रा से अँधेरी का सफ़र इतना लम्बा लगा | खैर किसी तरह अँधेरी आया और वो मोहतरमा वहाँ उतर गयी लेकिन जाते जाते न जाने कितने धक्के मुझे लगे या यह कह लें की भीड़ के कारण उनसे अनजाने में मुझेलग गए , उनको गिनना भी मुश्किल था क्यों की हर धक्के पे मुझे मेरी इज्ज़त नीलाम होती दिखाई देती थी|
वंही लखनऊ का नज़ारा भी बड़ा अजीब है एक तरफ कानून की महिला को छु लिया तो मुजरिम और दूसरी तरफ वहां की टैम्पो ऐसी की ३ की जगह ४ पैसेंजर बैठाते है और महिलायीं उसी में धंसी जाती हैं | पुरुष तो बस अब उन सीटों पे महिलाओं के रहमोकरम पे ही रहता है | एक साहब ने तो अपना दुखड़ा ऐसे सुनाया की समझ नहीं आया हँसे या रोयें| कहने लगे मियाँ लखनऊ की टेम्पो पे अगर कोई महिला आपके बगल में बैठ गयी तो भाई बस सैंडविच बने बैठा रहता हूँ ,कहीं खुजली भी आ जाए तो नहीं खुजाता | कहीं यह खुजाने के चक्कर में पड़ोस में बैठी सहबा को धक्का न लग जाए और उन्हें कोई ग़लतफ़हमी हो गयी तो गयी अपनी इज्ज़त |
ऐसे कानून कहाँ तक कामयाब होंगे यह तो समय ही बताएगा लेकिन इस समाज के हर इंसान को बदलने की आवश्यकता है तक कहीं जा के यह बलात्कार रुकेगा |
चलिए क्या कहा जाए गलती तो उस नालायक बलात्कारी मर्द की ही है जिसकी सजा सब को भुगतनी पड़ेगी | बचने का एक ही रास्ता है लड़की बन जाओ :)