मुझे अपने वतन जौनपुर से हमेशा से मुहब्बत रही लेकिन इस वतन में रहने का अवसर कम ही मिल पाया करता है मुझे | वैसे वर्ष में ३-४ चक्कर अब वतन पह...
मुझे अपने वतन जौनपुर से हमेशा से मुहब्बत रही लेकिन इस वतन में रहने का अवसर कम ही मिल पाया करता है मुझे | वैसे वर्ष में ३-४ चक्कर अब वतन पहुँच जाता हूँ लेकिन जब भी वापस आता हूँ दिल में एक ख्वाहिश बाकी रह जाती है काश २-४ दिन और मिल जाते |
मेरी इस जन्म भूमि ने मुझे बहुत कुछ दिया है | बचपन की यादे ,वो दादी की सुनायी कहानियां ,वो मक्के के खेतों में पतंगे पकड़ना, वो बड़ी बड़ी ५-६ फिट की मूली काट के खाना | सब आज भी याद है मुझे | आँख खुली जौनपुर में तो आस पास बड़ी बड़ी कोठियां देखीं ,जिनके कोने कोने में आज भी मेरा बचपन दिखाई देता है |
जैसे जैसे बड़ा होता गया जौनपुर शहर से जौनपुर के आस पास के गाँव ,खेत ,ताल ,तक आजा जाना होने लगा |
मेरी इस जन्म भूमि ने मुझे बहुत कुछ दिया है | बचपन की यादे ,वो दादी की सुनायी कहानियां ,वो मक्के के खेतों में पतंगे पकड़ना, वो बड़ी बड़ी ५-६ फिट की मूली काट के खाना | सब आज भी याद है मुझे | आँख खुली जौनपुर में तो आस पास बड़ी बड़ी कोठियां देखीं ,जिनके कोने कोने में आज भी मेरा बचपन दिखाई देता है |
जैसे जैसे बड़ा होता गया जौनपुर शहर से जौनपुर के आस पास के गाँव ,खेत ,ताल ,तक आजा जाना होने लगा |
चलिए आज आप को उन कोठियों की सैर करवाता हूँ जिनसे मेरी बचपन की यादें जुडी हुई हैं|
यह तीनो मेरे उस घर की तस्वीर है जहाँ मेरा जन्म हुआ | जहां से मेरे बचपन की यादें जुडी हैं | इस घर का हर कोना अपने आप में एक कहानी समेटे हुए है |
यह वो घर हैं जहां मेरे जीवन का सबसे अधिक समय बीता |
३ वर्ष की आयु से १९ वर्ष का लम्बा समय यहीं बिताया |
यह उस घर की तस्वीर है जहां मेरा विवाह हुआ |
यह वो घर है जहां मैं पिताजी और माता जी के साथ अपनी मौसी से मिलने जाया करता था और जब भी जाता १०-१५ दन अवश्य गुज़रता था |
यह मेरी कर्म भूमि मुंबई की उस बिल्डिंग की तस्वीर है जिसमे एक कबूतरखाना (फ्लैट )
मेरा भी है |
अपने जीवन के ३० वर्ष कर्मभूमि में गुज़ारने के बाद भी अपने वतन की याद कभी कम न हो सकी| दिल यही चाहता है जीवन का बाकी समय अपने वतन को दे दूँ | देखिये किस्मत कहाँ ले जाती है |