सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर काम करने में क़दम क़दम पे कठिनाइयाँ आना आवश्यक है | जब आप समाज में फैली बुराइयों की ओर लोगों का धयान आकर्षित करत...
सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर काम करने में क़दम क़दम पे कठिनाइयाँ आना आवश्यक है | जब आप समाज में फैली बुराइयों की ओर लोगों का धयान आकर्षित करते हैं ओर उसका हल तलाशने कि कोशिश करते हैं तो साथ साथ आप समाज के उन बुरे लोगों कि नाराज़गी भी ले लेते हैं तो समाज में बुराइयों को फैलने में सहयोगी हैं या खुद ज़िम्मेदार हैं |
आज सफेदपोशों का ज़माना है | समाज में अधिक बुराई आज यही सफेदपोश फैलाते आप को मिलेंगे | अब जब आप किसी भी सामाजिक बुराई या कुरीतियों के खिलाफ बोलेंगे तो सामने से तो यह आप के खिलाफ नहीं बोलेंगे लेकिन दुसरे बहाने से आप को परेशान अवश्य करेंगे | सार्थक ब्लोगिंग यदि सामाजिक सरोकारों से जुडी है तो आप के रास्ते मैं रुकावट पैदा करने वाला कभी सामने से हमला नहीं करेगा, क्यों की यदि आप ग़रीबों के लिए काम कर रहे हैं, औरतों पे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, समाज मैं अमन और शांति की बात कर रहे हैं,समाज मैं मीडिया के ज़रिये बढती अश्लीलता को रोकने की बात करते हैं तो जो भी आप के इस मुद्दे के खिलाफ बोलेगा वो स्वं ही बेनकाब हो जाएगा. इसी कारण लोग बहाने तलाशते हैं, अफवाहें फैलाते हैं, नेक काम करने वाले को हतोत्साहित करके, बदनाम करके उस को नेकी करने से रोकने की कोशिश किया करते हैं |
आज इस समाज में समाज में देखा है गया है कि ६ साल की बच्ची से लेकर ६० साल कि वृद्धा तक यहाँ सुरक्षित नहीं है | महिलाओं के मामले में तो सामूहिक दुराचार की खबरें आप रोज़ अख़बारों में पढ़ सकते हैं |
कहा जाता है कि माता पिता को अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए, उसको समझना चाहिए लेकिन यहाँ तो माता पिता दोनों नौकरी करते हैं ओर बच्चा बेबी सिटिंग में पलता है | कभी वो स्कूल के मास्टर के ज़ुल्म का शिकार होता है कभी पड़ोस के किसी अंकल के ज़ुल्म का शिकार होता है यहाँ तक कि रिश्तेदारों के भी ज़ुल्म का शिकार अक्सर हो जाता है |
घर में नौकर पूरी जांच पड़ताल के साथ रखना चाहिए लेकिन कितने हैं ऐसा करते हैं? नतीजा क्या होता है? यही कि नौकर कभी बच्चे का अपहरण करता है कभी घर के बूढ़े को मार के लूट लेता है |
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक कुरीति है या एक अक्षम्य अपराध आज भी लोग फैसला नहीं कर पा रहे हैं | सवाल बड़ा है कि क्यों लोग कन्या भ्रूण हत्या ही करवाते हैं? क्या दहेज़ का डर इसका कारण है या लड़की की परवरिश के दौरान उसकी सुरक्षा का डर इसका कारण है ?
घर से बाहर निकलो तो भ्रष्टाचार हर जगह फैला हुआ है | कहीं रिश्वत है कहीं गुंडागर्दी है | ज़ालिम ऐश कर रहे हैं | मालामाल हो रहे हैं ग़रीब परेशान है ज़ुल्म सह रहा है |
खाने पीने कि तरफ ध्यान दो तो मिलेगा कि कहीं तरबूज में, सब्जियों में हानिकारक इंजेक्शन लगाये जा रहे हैं तो कहीं दूध में यूरिया ओर न जाने क्या क्या मिलावट कि जा रही है | इंसानों के स्वास्थ के साथ खुले आम खिलवाड़ हो रहा है |
धर्म कि आड़ में हम समाज को बाँटने पे अमादा नज़र आते हैं | हिन्दू मुसलमान, सिख ,ईसाई ही बन के रहना चाहते हैं इंसान बनने को तैयार नहीं | नतीजा समाज में नफरत ओर ज़ुल्म का फैलना |
चाटुकार, दोहरे चरित्र वाले आज समाज में इज्ज़त पाते हैं इमानदार बेवकूफ कहा जाता है ओर अक्सर लोगों के ज़ुल्म का शिकार हो जाया करता है |
इन सभी बुराईयों का कारण है कि आज इस समाज में आज अध्कितर लोग पैसा ,औरत ,शोहरत और झूटी इज्ज़त पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार बैठे दिखाई देते हैं ऐसे में भ्रष्ट मार्ग से शिष्ट मार्ग कि ओर लोगों लाना आसान काम नहीं |
आज कोई सड़कों पे किसी औरत को छेड़े , या कोई किसी को गाली दे कोई किसी को मार रहा हो, किसी पडोसी के यहाँ कोई बहुत बीमार हो जाए, कोई समाज मैं दुखी हो जाए, सब को लगता है, हम को क्या करना? यह कोई हमारे घर की परेशानी तो है नहीं? हम से क्या मतलब कह के हम गलत करने वालों का मनोबल ऊंचा कर रहे हैं और अपराध को बढावा दे रहे हैं . आज जो भी इस समाज मैं बुराइयाँ पैदा हो रही हैं, उसके कहीं ना कहीं चुप रह के तमाशा देखने के कारण भागीदार हम भी हैं |
अनादी फिल्म का मुकेश का गाया यह गाना आज भी मुझे बहुत पसंद है
“किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,जीना इसी का नाम है |”
लेकिन ऐसे जीने से पहले खुद को इतना मज़बूत बना लेना होगा कि आप समाज के इन मज़बूत भ्रष्ट लोगों की नाराज़गी को झेल पाएं | सब्र ओर नम्रता को अपना हथियार बनाना होगा | इंसानों के चेहरे पे हंसी लाने के लिए पहले अपने चेहरे का दुःख छिपा के मुस्कराना होता है | यदि आप से खुद कोई ग़लती हो जाए और सामने वाला आप को गाली ही क्यों न दे ,आप को अपना गुस्सा पी के अपनी ग़लती को सुधार लेना चाहिए | आप यदि गुस्से में अपनी ताक़त का इज़हार करेंगे या जैसा कि अक्सर होता है कि अपनी ग़लती को नज़रंदाज़ कर के सामने वाले की ग़लतियाँ गिनवाने लगेंगे तो आप भी ज़ुल्म करने वालों में गिने जाएंगे | समाज से इन बुराईयों को हटाने के लिए हर इंसान को सच्चे दिल से कोशिश करनी चाहिए ओर मिल जुल कर यह काम करना चाहिए | यह और बात है कि समाज में फैली कुरीतियों या बुराईयों से लड़ने वाला अक्सर अकेला ही पाया जाता है | लेकिन सत्य में इतनी ताक़त हुआ करती है कि ऐसा इंसान दुनिया में भी इज्ज़त पाता है ओर बाद मरने के भी हमेशा याद किया जाता है | इसीलिये कहा जाता है नेक इंसान जो समाज के भले के लिए काम करता है कभी नहीं मरता |
ज़रा सोंचिये
क्या हम सच मैं सामाजिक प्राणी हैं? क्या इस समाज के प्रति भी हमारी कुछ ज़िम्मेदारी है या जानवरों कि तरह खुद का पेट भर के आराम से सो जाने को ही हम अपना धर्म मान बैठे हैं? इन सवालों के जवाब को तलाशना आवश्यक है| जिस दिन हम सभी ने इस सवाल का जवाब पा लिया उस दिन से समाज से बुराइयों के खिलाफ लड़ने वाला कभी अकेला नहीं मिलेगा और इस समाज में भ्रष्ट और बुरे इंसान ज़ुल्म करते हुए डरेंगे |
आज सफेदपोशों का ज़माना है | समाज में अधिक बुराई आज यही सफेदपोश फैलाते आप को मिलेंगे | अब जब आप किसी भी सामाजिक बुराई या कुरीतियों के खिलाफ बोलेंगे तो सामने से तो यह आप के खिलाफ नहीं बोलेंगे लेकिन दुसरे बहाने से आप को परेशान अवश्य करेंगे | सार्थक ब्लोगिंग यदि सामाजिक सरोकारों से जुडी है तो आप के रास्ते मैं रुकावट पैदा करने वाला कभी सामने से हमला नहीं करेगा, क्यों की यदि आप ग़रीबों के लिए काम कर रहे हैं, औरतों पे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, समाज मैं अमन और शांति की बात कर रहे हैं,समाज मैं मीडिया के ज़रिये बढती अश्लीलता को रोकने की बात करते हैं तो जो भी आप के इस मुद्दे के खिलाफ बोलेगा वो स्वं ही बेनकाब हो जाएगा. इसी कारण लोग बहाने तलाशते हैं, अफवाहें फैलाते हैं, नेक काम करने वाले को हतोत्साहित करके, बदनाम करके उस को नेकी करने से रोकने की कोशिश किया करते हैं |
आज इस समाज में समाज में देखा है गया है कि ६ साल की बच्ची से लेकर ६० साल कि वृद्धा तक यहाँ सुरक्षित नहीं है | महिलाओं के मामले में तो सामूहिक दुराचार की खबरें आप रोज़ अख़बारों में पढ़ सकते हैं |
कहा जाता है कि माता पिता को अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए, उसको समझना चाहिए लेकिन यहाँ तो माता पिता दोनों नौकरी करते हैं ओर बच्चा बेबी सिटिंग में पलता है | कभी वो स्कूल के मास्टर के ज़ुल्म का शिकार होता है कभी पड़ोस के किसी अंकल के ज़ुल्म का शिकार होता है यहाँ तक कि रिश्तेदारों के भी ज़ुल्म का शिकार अक्सर हो जाता है |
घर में नौकर पूरी जांच पड़ताल के साथ रखना चाहिए लेकिन कितने हैं ऐसा करते हैं? नतीजा क्या होता है? यही कि नौकर कभी बच्चे का अपहरण करता है कभी घर के बूढ़े को मार के लूट लेता है |
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक कुरीति है या एक अक्षम्य अपराध आज भी लोग फैसला नहीं कर पा रहे हैं | सवाल बड़ा है कि क्यों लोग कन्या भ्रूण हत्या ही करवाते हैं? क्या दहेज़ का डर इसका कारण है या लड़की की परवरिश के दौरान उसकी सुरक्षा का डर इसका कारण है ?
घर से बाहर निकलो तो भ्रष्टाचार हर जगह फैला हुआ है | कहीं रिश्वत है कहीं गुंडागर्दी है | ज़ालिम ऐश कर रहे हैं | मालामाल हो रहे हैं ग़रीब परेशान है ज़ुल्म सह रहा है |
खाने पीने कि तरफ ध्यान दो तो मिलेगा कि कहीं तरबूज में, सब्जियों में हानिकारक इंजेक्शन लगाये जा रहे हैं तो कहीं दूध में यूरिया ओर न जाने क्या क्या मिलावट कि जा रही है | इंसानों के स्वास्थ के साथ खुले आम खिलवाड़ हो रहा है |
धर्म कि आड़ में हम समाज को बाँटने पे अमादा नज़र आते हैं | हिन्दू मुसलमान, सिख ,ईसाई ही बन के रहना चाहते हैं इंसान बनने को तैयार नहीं | नतीजा समाज में नफरत ओर ज़ुल्म का फैलना |
चाटुकार, दोहरे चरित्र वाले आज समाज में इज्ज़त पाते हैं इमानदार बेवकूफ कहा जाता है ओर अक्सर लोगों के ज़ुल्म का शिकार हो जाया करता है |
इन सभी बुराईयों का कारण है कि आज इस समाज में आज अध्कितर लोग पैसा ,औरत ,शोहरत और झूटी इज्ज़त पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार बैठे दिखाई देते हैं ऐसे में भ्रष्ट मार्ग से शिष्ट मार्ग कि ओर लोगों लाना आसान काम नहीं |
आज कोई सड़कों पे किसी औरत को छेड़े , या कोई किसी को गाली दे कोई किसी को मार रहा हो, किसी पडोसी के यहाँ कोई बहुत बीमार हो जाए, कोई समाज मैं दुखी हो जाए, सब को लगता है, हम को क्या करना? यह कोई हमारे घर की परेशानी तो है नहीं? हम से क्या मतलब कह के हम गलत करने वालों का मनोबल ऊंचा कर रहे हैं और अपराध को बढावा दे रहे हैं . आज जो भी इस समाज मैं बुराइयाँ पैदा हो रही हैं, उसके कहीं ना कहीं चुप रह के तमाशा देखने के कारण भागीदार हम भी हैं |
अनादी फिल्म का मुकेश का गाया यह गाना आज भी मुझे बहुत पसंद है
“किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,जीना इसी का नाम है |”
लेकिन ऐसे जीने से पहले खुद को इतना मज़बूत बना लेना होगा कि आप समाज के इन मज़बूत भ्रष्ट लोगों की नाराज़गी को झेल पाएं | सब्र ओर नम्रता को अपना हथियार बनाना होगा | इंसानों के चेहरे पे हंसी लाने के लिए पहले अपने चेहरे का दुःख छिपा के मुस्कराना होता है | यदि आप से खुद कोई ग़लती हो जाए और सामने वाला आप को गाली ही क्यों न दे ,आप को अपना गुस्सा पी के अपनी ग़लती को सुधार लेना चाहिए | आप यदि गुस्से में अपनी ताक़त का इज़हार करेंगे या जैसा कि अक्सर होता है कि अपनी ग़लती को नज़रंदाज़ कर के सामने वाले की ग़लतियाँ गिनवाने लगेंगे तो आप भी ज़ुल्म करने वालों में गिने जाएंगे | समाज से इन बुराईयों को हटाने के लिए हर इंसान को सच्चे दिल से कोशिश करनी चाहिए ओर मिल जुल कर यह काम करना चाहिए | यह और बात है कि समाज में फैली कुरीतियों या बुराईयों से लड़ने वाला अक्सर अकेला ही पाया जाता है | लेकिन सत्य में इतनी ताक़त हुआ करती है कि ऐसा इंसान दुनिया में भी इज्ज़त पाता है ओर बाद मरने के भी हमेशा याद किया जाता है | इसीलिये कहा जाता है नेक इंसान जो समाज के भले के लिए काम करता है कभी नहीं मरता |
ज़रा सोंचिये
क्या हम सच मैं सामाजिक प्राणी हैं? क्या इस समाज के प्रति भी हमारी कुछ ज़िम्मेदारी है या जानवरों कि तरह खुद का पेट भर के आराम से सो जाने को ही हम अपना धर्म मान बैठे हैं? इन सवालों के जवाब को तलाशना आवश्यक है| जिस दिन हम सभी ने इस सवाल का जवाब पा लिया उस दिन से समाज से बुराइयों के खिलाफ लड़ने वाला कभी अकेला नहीं मिलेगा और इस समाज में भ्रष्ट और बुरे इंसान ज़ुल्म करते हुए डरेंगे |