आज़ादी किसका नाम है? हिंदुस्तान आज़ाद है तो क्या इसका यह मतलब है कि यहाँ कोई कानून ही न हो | जिसका जो दिल चाहे वो करे? सभी का जवाब होगा कि...
आज़ादी किसका नाम है? हिंदुस्तान आज़ाद है तो क्या इसका यह मतलब है कि यहाँ कोई कानून ही न हो | जिसका जो दिल चाहे वो करे? सभी का जवाब होगा कि नहीं | आज़ादी का यह मतलब हरगिज़ नहीं है | हाँ आप किसी भी कानून पे बहस कर सकते हैं और उसमे सुधार का मशविरा भी दे सकते हैं यह आप का अधिकार है और यही आज़ादी का नाम है |
आज हमारे समाज में बहुत जगहों पे ज़ुल्म देखा जाता है | ज़ुल्म हमेशा कमज़ोरों पे ताक़तवर किया करता है | इसी कारण से ज़ुल्म का शिकार या तो गरीब होता है या फिर महिलाएं | यह और बात है कि मैं यह बात कभी समझ नहीं सका कि औरत कमज़ोर कब से हो गयी और इसे कमज़ोर बनाया किसने? अक्सर ऊँगली इस पुरुष प्रधान समाज के बनाये कानून पे ही उठा करती है जबकि खुद को कमज़ोर बनाने में औरत खुद भी उतनी ही ज़िम्मेदार है जितना कि पुरुष | इस समाज में महिला और पुरुष एक सामान हैं और दोनों कि अपनी अपनी ज़िमेदारियाँ हैं | दोनों यदि अपनी अपनी ज़िमेदारियां इमानदारी से निभाएं तो कौन कमज़ोर और कौन ताक़तवर का सवाल ही पैदा नहीं होगा |
रचना जी के नारी ब्लॉग पे भी कुछ ऐसा ही सवाल उठाया गया था की लोग केवल उन लड़कियों से ही क्यों शादी करना चाहते हैं जो पढ़ी लिखी हैं नौकरी भी कर सकती हैं और दहेज़ भी ला सकती हैं | लेकिन सवाल उठता है की क्या ऐसा करने में केवल मर्द ज़िम्मेदार है ? लड़के कि माता भी शादी करते समय ऐसी ही लड़की तलाशती देखी जाती है ,और शादी के बाद सास के रूप में ज़ुल्म करती भी यही औरत देखी जाती है |
दहेज़ लेना , लड़की से शादी के समय उसकी मर्ज़ी का ख्याल न करना ,शादी के बाद गुलाम की तरह औरत से बर्ताव करना इत्यादि एक सामाजिक बुराई है और इसके खिलाफ आवाज़ उठाई जानी चाहिए | ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का नाम है आज़ादी | लड़की या लड़का इस बात के लिए तो आज़ाद है कि उन्हें शादी कब और किस्से करनी है क्यों कि यदि साथ साथ रहना है तो शादी जैसे सामाजिक बंधन में बंधना आवश्यक है |
लेकिन यदि कोई लड़की या लड़का यह कहे कि मुझे शादी ही नहीं करनी और जब जहां जिसके साथ दिल चाह गया शारीरिक सम्बन्ध बनाया और जब चाहा अलग हो गए उचित नहीं | इसे आज़ादी नहीं बल्कि आज़ादी के नाम पे समाज को भ्रष्ट करने की पहल ही कहा जा सकता है | मानसिक विकृति का नाम आजादी हरगिज़ नहीं हो सकता |
संमलैगिकता, शादी के बिना शारीरिक सम्बन्ध ,यौन उत्पीडन, ज़ुल्म करना, महिलाओं या मर्दों द्वारा शरीर की अनावश्यक नुमाइश, बाल यौन शोषण, किसी कि जान लेना ,अधिक गालियाँ बकना, इत्यादि मानसिक विकृति का नतीजा हुआ करता है | मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति सेक्स और पोर्नोग्राफी का अंतर नहीं समझ सकता | जहां पोर्नोग्राफी अश्लील ,विकृत और घिनोना अपराध है वंही सेक्स स्वाभाविक, प्राकृतिक सहज प्रकिर्या है | मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति को इसी प्रकार सेक्स शादी के बाद और बिना शादी के सेक्स का अंतर समझ में नहीं आ सकता | अंतर्जाल पे भी हमारे समाज कि तरह ऐसे लोगों की कमी नहीं है | यह मानसिक विकृति किसी इंसान में कब और कैसे पैदा हो जाती है पता ही नहीं चलता |शाइज़ोफ्रेनिया एक मानसिक विकृति है जिसमें रोगी अव्यवस्थित विचारों का अनुभव करता है। जब तक हमें अपने मानसिक विकृतियों का ज्ञान नहीं होता तब तक हम यह भी नहीं जान पातें हैं कि कब हमारी मानसिक सोच औरों के लिये समस्या बन गई थी ? जाहिर है कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य की पहली शर्त है । मन अस्वस्थ होगा तो शरीर भी अस्वस्थ होगा
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एक सास अपनी बहु पे इसलिए ज़ुल्म करती है क्यों कि उसकी सास ने उसे सताया था | एक ऐसी औरत जिसे प्यार में धोका मिला हो सबको यह मशविरा देती दिखती है कि शादी कि आवश्यकता नहीं ,बिना शादी भी शारीरिक सुख भोगा जा सकता है | पोर्न फिल्म देखते देखते एक युवा कब मानसिक रूप से बीमार हो जाता है पता ही नहीं चलता और जब उसी कोई लड़की मिलती है तो कभी सिगरेट से जलाता है और कभी मारता पीटता है | प्रियजन की मृत्यु, नौकरी से बर्खास्ती, दोस्त का धोखा, अप्रत्याशित खबर,बेरोजगारी ,विलम्ब से विवाह या तलाक के बाद विवाह का न होना , सेक्स कुंठा भी मानसिक बीमारियों का एक बहुत बड़ा कारण हो सकती है |
अभी आज कि ख़बरों में है कि उदयपुर की एक महिला को सरेआम कपडे उतार के सजा के तौर पे घुमाया गया | क्या यह स्वस्थ मानसिकता वालों द्वारा दी गयी सजा लगती है?
देखा गया है कि हम अपने शारीरिक स्वास्थय की रक्षा के लिए बहुत सतर्क रहते हैं, किन्तु मन के आरोग्य के लिये अनभिज्ञ से रहते हैं जो कि सही नहीं है । ज्यादातर हम इन विकारों की उपेक्षाकर देते हैं और यही उपेक्षा का धीरे-धीरे हमारे मन की ग्रन्थियों पर बुरा प्रभाव होने लगता है । हमारा कर्तव्य है कि रोग की प्रथम अवस्था में ही हम सावधान हो जाएँ और अपनी सतर्कता से उसका उपचार करें या अपनों का इलाज करवायें ।
यह संभव है कि व्यक्तिको खुद के मन में आ रही विकृति के कोई लक्षण नज़र न आते हो, किन्तु यह संभव नहीं है कि आपके आसपास रहनेवालों को या आपके प्रियजनोंको आप में हो रहे मानसिक विकृति के चिह्न न दिखें | इसलिए यदि आपको अपने आस पास किसी में भी विकृति के कोई लक्षण दिखें उसका इलाज करवाने कि कोशिश करें | सही समय पे इस विकृति की पहचान और उसका सही समय पे इसका इलाज ही इस समाज को अनेकों ज़ुल्म, जुर्म और गुमराही से बचा सकता है |
आज हमारे समाज में बहुत जगहों पे ज़ुल्म देखा जाता है | ज़ुल्म हमेशा कमज़ोरों पे ताक़तवर किया करता है | इसी कारण से ज़ुल्म का शिकार या तो गरीब होता है या फिर महिलाएं | यह और बात है कि मैं यह बात कभी समझ नहीं सका कि औरत कमज़ोर कब से हो गयी और इसे कमज़ोर बनाया किसने? अक्सर ऊँगली इस पुरुष प्रधान समाज के बनाये कानून पे ही उठा करती है जबकि खुद को कमज़ोर बनाने में औरत खुद भी उतनी ही ज़िम्मेदार है जितना कि पुरुष | इस समाज में महिला और पुरुष एक सामान हैं और दोनों कि अपनी अपनी ज़िमेदारियाँ हैं | दोनों यदि अपनी अपनी ज़िमेदारियां इमानदारी से निभाएं तो कौन कमज़ोर और कौन ताक़तवर का सवाल ही पैदा नहीं होगा |
रचना जी के नारी ब्लॉग पे भी कुछ ऐसा ही सवाल उठाया गया था की लोग केवल उन लड़कियों से ही क्यों शादी करना चाहते हैं जो पढ़ी लिखी हैं नौकरी भी कर सकती हैं और दहेज़ भी ला सकती हैं | लेकिन सवाल उठता है की क्या ऐसा करने में केवल मर्द ज़िम्मेदार है ? लड़के कि माता भी शादी करते समय ऐसी ही लड़की तलाशती देखी जाती है ,और शादी के बाद सास के रूप में ज़ुल्म करती भी यही औरत देखी जाती है |
दहेज़ लेना , लड़की से शादी के समय उसकी मर्ज़ी का ख्याल न करना ,शादी के बाद गुलाम की तरह औरत से बर्ताव करना इत्यादि एक सामाजिक बुराई है और इसके खिलाफ आवाज़ उठाई जानी चाहिए | ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का नाम है आज़ादी | लड़की या लड़का इस बात के लिए तो आज़ाद है कि उन्हें शादी कब और किस्से करनी है क्यों कि यदि साथ साथ रहना है तो शादी जैसे सामाजिक बंधन में बंधना आवश्यक है |
लेकिन यदि कोई लड़की या लड़का यह कहे कि मुझे शादी ही नहीं करनी और जब जहां जिसके साथ दिल चाह गया शारीरिक सम्बन्ध बनाया और जब चाहा अलग हो गए उचित नहीं | इसे आज़ादी नहीं बल्कि आज़ादी के नाम पे समाज को भ्रष्ट करने की पहल ही कहा जा सकता है | मानसिक विकृति का नाम आजादी हरगिज़ नहीं हो सकता |
संमलैगिकता, शादी के बिना शारीरिक सम्बन्ध ,यौन उत्पीडन, ज़ुल्म करना, महिलाओं या मर्दों द्वारा शरीर की अनावश्यक नुमाइश, बाल यौन शोषण, किसी कि जान लेना ,अधिक गालियाँ बकना, इत्यादि मानसिक विकृति का नतीजा हुआ करता है | मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति सेक्स और पोर्नोग्राफी का अंतर नहीं समझ सकता | जहां पोर्नोग्राफी अश्लील ,विकृत और घिनोना अपराध है वंही सेक्स स्वाभाविक, प्राकृतिक सहज प्रकिर्या है | मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति को इसी प्रकार सेक्स शादी के बाद और बिना शादी के सेक्स का अंतर समझ में नहीं आ सकता | अंतर्जाल पे भी हमारे समाज कि तरह ऐसे लोगों की कमी नहीं है | यह मानसिक विकृति किसी इंसान में कब और कैसे पैदा हो जाती है पता ही नहीं चलता |शाइज़ोफ्रेनिया एक मानसिक विकृति है जिसमें रोगी अव्यवस्थित विचारों का अनुभव करता है। जब तक हमें अपने मानसिक विकृतियों का ज्ञान नहीं होता तब तक हम यह भी नहीं जान पातें हैं कि कब हमारी मानसिक सोच औरों के लिये समस्या बन गई थी ? जाहिर है कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य की पहली शर्त है । मन अस्वस्थ होगा तो शरीर भी अस्वस्थ होगा
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एक सास अपनी बहु पे इसलिए ज़ुल्म करती है क्यों कि उसकी सास ने उसे सताया था | एक ऐसी औरत जिसे प्यार में धोका मिला हो सबको यह मशविरा देती दिखती है कि शादी कि आवश्यकता नहीं ,बिना शादी भी शारीरिक सुख भोगा जा सकता है | पोर्न फिल्म देखते देखते एक युवा कब मानसिक रूप से बीमार हो जाता है पता ही नहीं चलता और जब उसी कोई लड़की मिलती है तो कभी सिगरेट से जलाता है और कभी मारता पीटता है | प्रियजन की मृत्यु, नौकरी से बर्खास्ती, दोस्त का धोखा, अप्रत्याशित खबर,बेरोजगारी ,विलम्ब से विवाह या तलाक के बाद विवाह का न होना , सेक्स कुंठा भी मानसिक बीमारियों का एक बहुत बड़ा कारण हो सकती है |
अभी आज कि ख़बरों में है कि उदयपुर की एक महिला को सरेआम कपडे उतार के सजा के तौर पे घुमाया गया | क्या यह स्वस्थ मानसिकता वालों द्वारा दी गयी सजा लगती है?
देखा गया है कि हम अपने शारीरिक स्वास्थय की रक्षा के लिए बहुत सतर्क रहते हैं, किन्तु मन के आरोग्य के लिये अनभिज्ञ से रहते हैं जो कि सही नहीं है । ज्यादातर हम इन विकारों की उपेक्षाकर देते हैं और यही उपेक्षा का धीरे-धीरे हमारे मन की ग्रन्थियों पर बुरा प्रभाव होने लगता है । हमारा कर्तव्य है कि रोग की प्रथम अवस्था में ही हम सावधान हो जाएँ और अपनी सतर्कता से उसका उपचार करें या अपनों का इलाज करवायें ।
यह संभव है कि व्यक्तिको खुद के मन में आ रही विकृति के कोई लक्षण नज़र न आते हो, किन्तु यह संभव नहीं है कि आपके आसपास रहनेवालों को या आपके प्रियजनोंको आप में हो रहे मानसिक विकृति के चिह्न न दिखें | इसलिए यदि आपको अपने आस पास किसी में भी विकृति के कोई लक्षण दिखें उसका इलाज करवाने कि कोशिश करें | सही समय पे इस विकृति की पहचान और उसका सही समय पे इसका इलाज ही इस समाज को अनेकों ज़ुल्म, जुर्म और गुमराही से बचा सकता है |
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