बकरा काटने पे अक्सर जीवहत्या के खिलाफ लोग बड़ा शोर मचाते हैं और उनकी फ़िक्र के अनुसार वो अपनी जगह ठीक भी हैं | लेकिन है तो बकरा एक जानवर ...
बकरा काटने पे अक्सर जीवहत्या के खिलाफ लोग बड़ा शोर मचाते हैं और उनकी फ़िक्र के अनुसार वो अपनी जगह ठीक भी हैं | लेकिन है तो बकरा एक जानवर बोल के नहीं बता सकता कि वो कटने को तैयार है या नहीं | हाँ छुरी के नीचे आने पे उसकी बगावत यह अवश्य बता देती है कि वो कटना नहीं चाहता |
यह तो हुई बात उस बकरे कि जिसे हम जानवर कहते हैं लेकिन इस इंसान रुपी बकरे का क्या करें जो हर जगह खुद काटने को तैयार बैठा रहता है| बहुत बार तो लोगों से मिन्नतें भी करता है कि मुझे काटो , मैं कटने को तैयार हूँ | मुझे यकीन है कि बात अभी भी आपकी समझ में नहीं आयी होगी |
आज कल यह दस्तूर सा चल पड़ा है कि कोई संस्था जब कोई वार्षिक प्रोग्राम किया करती है तो वो बड़े बड़े नाम वाला बकरा तलाशने लगती है जो पैसा भी दे और उसके प्रोग्राम का चीफ गेस्ट बने, भाषण दे, खुसूसी मेहमान बने | जी हाँ आज संस्थाओं के वार्षिक प्रोग्राम से लेकर कवी सम्मेलनों तक सबका यही हाल है | जो लोग बड़ी सी मेज़ के किनारे छोटी छोटी कुर्सियां पे बैठे होते हैं ,भाषण की अपनी बारी के इन्तेज़ार में , सभी वहाँ तक कुछ न कुछ माल दे कर ही पहुंचे होते हैं | अक्सर यह पैसा दान या सहायता के नाम पे बड़े लोग दिया करते हैं | छोटे शहरों में तो यह काफी लोगों को मालूम होता है कि इन साहब को चीफ गेस्ट बनाओ तो यह २५००० देते हैं और यह ५००० देते हैं | हर इज्ज़त अफजाई कि एक रकम तय हुआ करती है | छुटभैये तो अक्सर १०००- ५०० ले के छोटे मोटे कवी सम्मेलनों या किसी स्कूल के उद्घाटन में मेहमान ए खुसूसी बनने के लिए मस्का पालिश किया करते हैं | जो जितना मोटा बकरा होता है वो उतना ही व्यस्त भी होता ,लोग इनसे समय माँगा करते हैं लेकिन इनके पास इतने न्योते हुआ करते हैं कि यह टाला करते हैं |
अब तो यह भी देखने में आया है कि पैसे दे के इनाम और अवार्ड लेने और देने में भी लोग बुराई नहीं समझते | और अवार्ड पाने के बाद यह इंसान रुपी बकरा कटने के दर्द को भूल खुश होता दिखाई देता है | बकरा बन कटने और काटने दोनों में फायदा नज़र आता है तो फिर किसी को क्या एतराज़ हों सकता है |
यह तो हुई बात उस बकरे कि जिसे हम जानवर कहते हैं लेकिन इस इंसान रुपी बकरे का क्या करें जो हर जगह खुद काटने को तैयार बैठा रहता है| बहुत बार तो लोगों से मिन्नतें भी करता है कि मुझे काटो , मैं कटने को तैयार हूँ | मुझे यकीन है कि बात अभी भी आपकी समझ में नहीं आयी होगी |
आज कल यह दस्तूर सा चल पड़ा है कि कोई संस्था जब कोई वार्षिक प्रोग्राम किया करती है तो वो बड़े बड़े नाम वाला बकरा तलाशने लगती है जो पैसा भी दे और उसके प्रोग्राम का चीफ गेस्ट बने, भाषण दे, खुसूसी मेहमान बने | जी हाँ आज संस्थाओं के वार्षिक प्रोग्राम से लेकर कवी सम्मेलनों तक सबका यही हाल है | जो लोग बड़ी सी मेज़ के किनारे छोटी छोटी कुर्सियां पे बैठे होते हैं ,भाषण की अपनी बारी के इन्तेज़ार में , सभी वहाँ तक कुछ न कुछ माल दे कर ही पहुंचे होते हैं | अक्सर यह पैसा दान या सहायता के नाम पे बड़े लोग दिया करते हैं | छोटे शहरों में तो यह काफी लोगों को मालूम होता है कि इन साहब को चीफ गेस्ट बनाओ तो यह २५००० देते हैं और यह ५००० देते हैं | हर इज्ज़त अफजाई कि एक रकम तय हुआ करती है | छुटभैये तो अक्सर १०००- ५०० ले के छोटे मोटे कवी सम्मेलनों या किसी स्कूल के उद्घाटन में मेहमान ए खुसूसी बनने के लिए मस्का पालिश किया करते हैं | जो जितना मोटा बकरा होता है वो उतना ही व्यस्त भी होता ,लोग इनसे समय माँगा करते हैं लेकिन इनके पास इतने न्योते हुआ करते हैं कि यह टाला करते हैं |
अब तो यह भी देखने में आया है कि पैसे दे के इनाम और अवार्ड लेने और देने में भी लोग बुराई नहीं समझते | और अवार्ड पाने के बाद यह इंसान रुपी बकरा कटने के दर्द को भूल खुश होता दिखाई देता है | बकरा बन कटने और काटने दोनों में फायदा नज़र आता है तो फिर किसी को क्या एतराज़ हों सकता है |