वैसे तो हमारी आदत है कि जिसके साथ कुछ समय उठ बैठ लिए, बात चीत कर ली उसे दस्तूर के मुताबिक मित्र कह देते हैं| लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ...
वैसे तो हमारी आदत है कि जिसके साथ कुछ समय उठ बैठ लिए, बात चीत कर ली उसे दस्तूर के मुताबिक मित्र कह देते हैं| लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हमारे समाज के वो सभी लोग जिन्हें आज हम मित्र कह दिया करते हैं सच में हमारे मित्र हैं?
मेरा तो माना है कि यह मित्र वित्र आज के युग में किताबी बातें बन के रह गयी हैं | किताबो में सच्चे मित्र कि कुर्बानियों कि कहानियाँ अवश्य सुनने को मिला करती है लेकिन वास्तविक जीवन में कोई ऐसा ही खुशकिस्मत होगा जिसे पूरे जीवन में एक सच्चा मित्र मिला हों|
एक सच्चा मित्र किसी नहीं चाहिए होता है लेकिन इसका दूसरा रुख यह भी है कि हम खुद दोस्ती निभाने को तैयार नहीं दिखते | यह दोस्ती करना फिर निभाना आज के प्रोफेशनल युग में किसी सरदर्द से कम नहीं समझा जाता | यह तो वही बात हुई न कि सच्चा मित्र, हमदर्द सबको चाहिए लेकिन हम किसी के सच्चे मित्र और हमदर्द नहीं बनना चाहते| शायद हम जिम्मेदारियों से भागते हैं या मित्र के बुरे वक्त पे काम आना हमें नुकसान का सौदा लगता है|
मुझे कभी कभी ऐसा लगता है कि आज के युग में हमारे सच्चे मित्र हमारे पाता पिता ही हों सकते हैं इसके बाद किस्मत वाले को ही सच्चे मित्र मिला करते हैं|
मित्र एक पत्नी भी हुआ करती है | लेकिन आप देखें आज के युग में एक लड़की अगर सडको पे छिछोरी हरकतें करती मिल जाए तो उसको मित्र बनाने वालों की बड़ी लंबी लाइन लग जाया करती है | वो जिसके साथ घूम ली वो लड़का उसे मित्र बताने लगता है | जबकि यह रिश्ता पूरी तरह से एक फरेब होता है |
लेकिन यदि किसी लड़की के माता पिता अपनी बेटी के लिए अच्छे जीवन साथी कि तलाश करते हैं तो लड़कों का अकाल सा पड़ जाया करता है| जबकि यह लड़की एक अच्छी मित्र एक अच्छी पत्नी भी बन सकती है लेकिन शायद जिम्मेदारियों से भागता आज का इंसान सड़कों की छिछोरी लड़की को तो मित्र कहने को तैयार हैं लेकिन हकीकत में मित्र बन सकने वाली लड़की से दूरी बना के रखने में ही अपना भला समझता है | सड़क छाप लड़की पे तो वो हज़ारों क्लबों और पार्टियों में लुटा देता है लेकिन पत्नी रुपी एक मित्र को लाने से पहले हज़ारों लाखों कि डिमांड करता दिखाई देता है |
यह भी एक सवाल है कि क्या दहेज मांग के लाई लड़की क्या आपकी सच्ची मित्र बन सकती है?
आज के इस प्रोफेशनल युग में क्या आप को कोई सच्चा मित्र मिला? क्या हमें आज किसी सच्चे मित्र की तलाश हुआ भी करती है या हम बिना सच्चे मित्र के ही जीवन में संतुष्ट हैं?
मेरा तो माना है कि यह मित्र वित्र आज के युग में किताबी बातें बन के रह गयी हैं | किताबो में सच्चे मित्र कि कुर्बानियों कि कहानियाँ अवश्य सुनने को मिला करती है लेकिन वास्तविक जीवन में कोई ऐसा ही खुशकिस्मत होगा जिसे पूरे जीवन में एक सच्चा मित्र मिला हों|
एक सच्चा मित्र किसी नहीं चाहिए होता है लेकिन इसका दूसरा रुख यह भी है कि हम खुद दोस्ती निभाने को तैयार नहीं दिखते | यह दोस्ती करना फिर निभाना आज के प्रोफेशनल युग में किसी सरदर्द से कम नहीं समझा जाता | यह तो वही बात हुई न कि सच्चा मित्र, हमदर्द सबको चाहिए लेकिन हम किसी के सच्चे मित्र और हमदर्द नहीं बनना चाहते| शायद हम जिम्मेदारियों से भागते हैं या मित्र के बुरे वक्त पे काम आना हमें नुकसान का सौदा लगता है|
मुझे कभी कभी ऐसा लगता है कि आज के युग में हमारे सच्चे मित्र हमारे पाता पिता ही हों सकते हैं इसके बाद किस्मत वाले को ही सच्चे मित्र मिला करते हैं|
मित्र एक पत्नी भी हुआ करती है | लेकिन आप देखें आज के युग में एक लड़की अगर सडको पे छिछोरी हरकतें करती मिल जाए तो उसको मित्र बनाने वालों की बड़ी लंबी लाइन लग जाया करती है | वो जिसके साथ घूम ली वो लड़का उसे मित्र बताने लगता है | जबकि यह रिश्ता पूरी तरह से एक फरेब होता है |
लेकिन यदि किसी लड़की के माता पिता अपनी बेटी के लिए अच्छे जीवन साथी कि तलाश करते हैं तो लड़कों का अकाल सा पड़ जाया करता है| जबकि यह लड़की एक अच्छी मित्र एक अच्छी पत्नी भी बन सकती है लेकिन शायद जिम्मेदारियों से भागता आज का इंसान सड़कों की छिछोरी लड़की को तो मित्र कहने को तैयार हैं लेकिन हकीकत में मित्र बन सकने वाली लड़की से दूरी बना के रखने में ही अपना भला समझता है | सड़क छाप लड़की पे तो वो हज़ारों क्लबों और पार्टियों में लुटा देता है लेकिन पत्नी रुपी एक मित्र को लाने से पहले हज़ारों लाखों कि डिमांड करता दिखाई देता है |
यह भी एक सवाल है कि क्या दहेज मांग के लाई लड़की क्या आपकी सच्ची मित्र बन सकती है?
आज के इस प्रोफेशनल युग में क्या आप को कोई सच्चा मित्र मिला? क्या हमें आज किसी सच्चे मित्र की तलाश हुआ भी करती है या हम बिना सच्चे मित्र के ही जीवन में संतुष्ट हैं?