इंसानी रिश्तों के दो किस्में देखने को मिला करती हैं| एक तो वो रिश्ते जो कुदरत ने जोड़े हैं | जैसे माता पिता, भाई बहन, मामा ,चाचा इत्यादि |...
इंसानी रिश्तों के दो किस्में देखने को मिला करती हैं| एक तो वो रिश्ते जो कुदरत ने जोड़े हैं | जैसे माता पिता, भाई बहन, मामा ,चाचा इत्यादि | इन रिश्तों को खून का रिश्ता भी कहा जाता है | और दुसरे वो रिश्ते जो इंसान आपस में बनाते हैं जैसे मित्र , पडोसी , इत्यादि|
आज के दौर में इन खून के रिश्तों में दरार देखने को अधिक मिला करती है जबकि यह रिश्ते अटूट हुआ करते हैं| वहीं दूसरी ओर खुद के बनाये रिश्तों को लोग अधिक पसंद करते हैं जबकि यह रिश्ते एक बार दूरी हों जाने पे या किसी बात पे मनमुटाव हों जाने पे हमेशा के लिए टूट जाया करते हैं|
खून के रिश्तों में प्यार मुहब्बत कुदरती तौर पे पाई जाती है जबकि इंसान के खुद से बनाये रिश्ते अधिकतर ज़रूरत पे बनते ओर बिगड़ते हैं | अक्सर देखा गया है कि आप किसी कि ज़रूरत बन जाएँ तो वो आप से बहुत प्रेम करने लगता है ओर ज़रूरत खत्म हों जाने पे आप से दूरी बना लेता है |
अगर मेरे दिए गए इस नज़रिए से देखा जाए तो इंसान को खून के रिश्तों को अधिक अहमियत देनी चाहिए और इनके साथ मिल जुल के रहना चाहिए | लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि बाहर रिश्ते न बनाये जाएँ या उन रिश्तों कि अहमियत नहीं | अक्सर कहते सुना जाता है कि अपनों से अधिक दुसरे बुरे समय पे काम आते हैं और यह सच भी है | लेकिन बावजूद इस सच के इन बाहरी रिश्तों की उम्र अक्सर कम ही हुआ करती है |
अक्सर देखने में आया है कि एक जवान बेटा अपने माता पिता कि जगह अपने दोस्तों कि बात को अधिक अहमियत देता है |उसे लगता है कि उसके दोस्तों का दिया मशविरा अधिक सही है और उसके दोस्त उसके अधिक हमदर्द हैं| फिर एक समय आता है कि वही दोस्त दूर हों जाते हैं उनके दिए ग़लत मशविरे का दर्द उठाने के लिए माता पिता साथ रह जाते हैं | लड़का भी सोंचता है काश उसने अपनों को पहचान के माता पिता कि बात मान ली होती |
इस समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिला जाया करते हैं और यदि आप चाहते हैं कि जीवन में सुख रहे तो अच्छे रिश्ते इस समाज में खूब बनाएँ लेकिन अपने खून की अहमियत को भी पहचानें |
आज के दौर में इन खून के रिश्तों में दरार देखने को अधिक मिला करती है जबकि यह रिश्ते अटूट हुआ करते हैं| वहीं दूसरी ओर खुद के बनाये रिश्तों को लोग अधिक पसंद करते हैं जबकि यह रिश्ते एक बार दूरी हों जाने पे या किसी बात पे मनमुटाव हों जाने पे हमेशा के लिए टूट जाया करते हैं|
खून के रिश्तों में प्यार मुहब्बत कुदरती तौर पे पाई जाती है जबकि इंसान के खुद से बनाये रिश्ते अधिकतर ज़रूरत पे बनते ओर बिगड़ते हैं | अक्सर देखा गया है कि आप किसी कि ज़रूरत बन जाएँ तो वो आप से बहुत प्रेम करने लगता है ओर ज़रूरत खत्म हों जाने पे आप से दूरी बना लेता है |
अगर मेरे दिए गए इस नज़रिए से देखा जाए तो इंसान को खून के रिश्तों को अधिक अहमियत देनी चाहिए और इनके साथ मिल जुल के रहना चाहिए | लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि बाहर रिश्ते न बनाये जाएँ या उन रिश्तों कि अहमियत नहीं | अक्सर कहते सुना जाता है कि अपनों से अधिक दुसरे बुरे समय पे काम आते हैं और यह सच भी है | लेकिन बावजूद इस सच के इन बाहरी रिश्तों की उम्र अक्सर कम ही हुआ करती है |
अक्सर देखने में आया है कि एक जवान बेटा अपने माता पिता कि जगह अपने दोस्तों कि बात को अधिक अहमियत देता है |उसे लगता है कि उसके दोस्तों का दिया मशविरा अधिक सही है और उसके दोस्त उसके अधिक हमदर्द हैं| फिर एक समय आता है कि वही दोस्त दूर हों जाते हैं उनके दिए ग़लत मशविरे का दर्द उठाने के लिए माता पिता साथ रह जाते हैं | लड़का भी सोंचता है काश उसने अपनों को पहचान के माता पिता कि बात मान ली होती |
इस समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिला जाया करते हैं और यदि आप चाहते हैं कि जीवन में सुख रहे तो अच्छे रिश्ते इस समाज में खूब बनाएँ लेकिन अपने खून की अहमियत को भी पहचानें |
गैरों पे करम अपनों पे सितम जैसे रिश्ते दुःख का कारण ही बना करते हैं |