चलो बहती गंगा में हाथ मैं भी धो लूँ | इस सत्य को सभी मानते हैं जिस चीज़ की इंसान को आवश्यकता होती है वो उसी कि तलाश में लगा रहता...
चलो बहती गंगा में हाथ मैं भी धो लूँ |
इस सत्य को सभी मानते हैं जिस चीज़ की इंसान
को आवश्यकता होती है वो उसी कि तलाश में लगा रहता है | पहले सीधे रस्ते से उस चीज़
को पाने कि कोशिश किया करता है फिर गलत रास्ते भी अपना लेता है | हाँ बहुत से लोग
सब्र करके गलत रास्ते पे खुद को जाने से रोक भी लिया करते हैं | यह समाज के अच्छे लोग
हुआ करते हैं जिनकी संख्या दिन- ब- दिन कम होती जा रही है |
कोई भूखा है तो खाने कि तलाश किया करता है | पहले कमा के खाने की चीज़ें खरीदता है और अपनी ज़रूरत पूरी करता है | कमा
न सका तो मांग के पेट भरने कि कोशिश करता
है और यदि मांगने पे भी न मिला तो चोरी करता है या सब्र कर के भूखा सो जाता है |
खाना अक्सर १-२ दिन में मिल ही जाता है और न मिले तो म्रत्यु निश्चित है |
जैसे शरीर में खाने कि भूख होती है
वैसे ही शरीर में सेक्स को भी भूख होती है | इसकी भी एक उम्र होती है | कुछ साल तो
ऐसा युवा अपने को दूसरी बातों में मसरूफ रख के इसे रोक पाता है क्यों कि उस समय यह
भूख उतनी तेज नहीं होती लेकिन एक उम्र आ जाती हैं जब इसे रोकना आसान नहीं हुआ करता |ऐसे में इंसान फितरत के
अनुसार अपनी इस भूख को मिटाने के रास्ते
तलाशना शुरू कर देता है |
आज के युग में शादियाँ होती हैं देर से और युवा को कम से कम १० -१५ वर्ष इस
भूख को सहन करना पड़ता है | लोग अजीब अजीब हल निकल लेते हैं इस भूख को खत्म करने का
और इन्तेज़ार किया करते हैं कब उनको भी एक साथी मिले | आज के खुले माहौल में युवाओं
से यह आशा करना कि वो सब्र करेंगे बेवकूफी के सिवाए कुछ भी नहीं है | हाँ बहुत से
ऐसे हैं जो सब्र करते हैं और सही वक्त का सालों इन्तेज़ार कर लिया करते हैं | ऐसे
लोगों कि संख्या दिन- ब -दिन अब कम होती जा रही है |आज के खुले माहौल में तो यह और
भी मुश्किल होता जा रहा है |
इसका कोई हल हमें निकलना तो चाहिए | हाथ पे हाथ धरे बैठने से या यह तय कर लेने
से कि हमें तो सेक्स कि आवश्यकता पूरी करने के लिए अधेड उम्र में भी एक
पत्नी चाहिए लेकिन हमारी जवान ओलादों को इसकी आवश्यकता नहीं | वो सब्र करेंगे जैसे
ख्यालात समस्या से भागने के सिवाए कुछ भी नहीं है | समस्या से भागने से समस्या हल नहीं हो
जाती और न ही उससे सच झूट में बदल जाता |
आज हमारे समाज के बुज़ुर्ग और युवा
दोनों इसी समस्या का हल न तलाश पाने के कारण
परेशान रहते हैं और एक दुसरे पे ऊँगली उठाते और एक दुसरे की शिकायत करते नज़र आते हैं |
बहुत से नौजवान आपस में दोस्ती के नाम पे शारीरिक सम्बन्ध बना लेने को बुरा
नहीं समझते लेकिन हमारे समाज में अपनी सेक्स की भूख मिटाने का यह रास्ता जो एक दुसरे कि मर्ज़ी से तो है
,सही नहीं समझा जाता और इसी भी चोरी का नाम उन युवाओं के माता पिता देते हैं |
अक्सर माता पिता भी ऐसे रिश्ते को समझते हुए अनदेखा तो कर देते हैं लेकिन अपनी
सहमति भी नहीं देते | ऐसे में अक्सर बड़ी बड़ी समस्याएं पैदा हों जाया करती हैं | क्या
यह सच से भागने जैसा नहीं है ?
यह समस्या केवल जवानी में ही नहीं आती है बल्कि यह समस्या हर उस समय पैदा हों
सकती है जब जीवन साथी न हो और शरीर सेक्स की मांग कर रहा हो | इसलिए यह समस्या शादी के बाद
भी आती है जब पति या पत्नी एक दुसरे को संतुष्ट न कर पा रहे हों | यह समस्या जवान
विधवा के भी साथ आया करती है जिसे समाज सब्र कि सिवाए कोई रास्ता नहीं देता | और यह समस्या तलाक के बाद भी आया
करती है | शरीर कि भूख को शांत करने का हल हर हाल में मिलना ही चाहिए ऐसा मेरा मानना
है |
आप कि नज़र में इसका क्या हल है? या यह कोई समस्या ही नहीं है |