मेरे पिछले लेख़ में किसी ने टिप्पणी में कहा था कि जायज़ या ना जायज़ कुछ नहीं होता और उनकी इस टिप्पणी पे मुझे इस लेख़ कि प्रेरणा मिली. हम जि...
मेरे पिछले लेख़ में किसी ने टिप्पणी में कहा था कि जायज़ या ना जायज़ कुछ नहीं होता और उनकी इस टिप्पणी पे मुझे इस लेख़ कि प्रेरणा मिली. हम जिस समाज में रहते हैं वहां हर रोज़ कुछ ना कुछ घटता रहता है. इंसान एक सामाजिक प्राणी है और एक दूसरे से मिल जुल कर रहता है. ऐसे में कभी किसी का समर्थन करना कभी किसी के खिलाफ बोलना , कभी किसी पे पीछे चलना जैसी बातें देखी जाती रही हैं.
ऐसा बहुत बार होता है कि किसी मुद्दे पे एक समूह तो समर्थन कर रहा होता है लेकिन दूसरा उसके खिलाफ बोल रहा होता है. धर्म कि बात करें तो दिखाई देता है कि महाभारत हुई और कुछ ने कौरवों का साथ दिया कुछ ने पांडवों का. कर्बला कि जंग हुई तो किसी ने इमाम हुसैन (अ.स) का साथ दिया और किसी ने ज़ालिम यजीद का. जब किसी धर्म को अपनाने कि बात आयी तो कोई हिन्दू बन गया कोई मुसलमान, कोई ईसाई तो कोई नास्तिक. आज के समय कि राजनीती कि बात करें तो कोई कांग्रेसी बना बिठा है, कोई बीजेपी वाला कोई सभी के पीछे चलने से इनकार कर रहा है.
ऐसा इस कारण से होता है कि देखने में तो हम इंसान एक जैसे ही दिखते हैं लेकिन हमारा ज्ञान, हमारी अज्ञानता, हमारी तरबियत ,हमारी अंतरात्मा की बुराईयाँ जैसे काम , क्रोध , लोभ , मोह , इर्ष्या , द्वेष और अहंकार हमारी सोंच को एक दूसरे से अलग कर देता है.
अधिकतर इंसान अपने अपनी जान पहचान का इस्तेमाल करते हुए उस व्यक्ति कि बातों से सहमती जताते नज़र आते हैं जो या तो उन जैसा होता है या फिर उनके लिए फायदेमंद होता है. यह वो लोग हैं जिनकी अंतरात्मा इन्हें बताती है की वो ग़लत व्यक्ति का साथ दे रहे हैं लेकिन चूंकि इनका फायदा उसी में में यह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को नहीं सुनते. अक्सर कुछ लोग उसके खिलाफ भी बोलते दिखाई देते हैं जो हमारे दोस्त का दुश्मन होता है जो की अच्छी बात है लेकिन यह जानना भी आवश्यक हुआ करता है की क्या हमारा दोस्त हक़ पे है?
ऐसे लोगों के लिए सत्य क्या है? समाज के हक़ में क्या है? इत्यादि बातें कोई मायने नहीं रखती. इन्हें तो अपना फायदा ही सबसे अहम् लगता है. ऐसे लोग आज के युग में अधिक मिला करते हैं और यही लोग भ्रष्टाचारियों, दुराचारियों, और जालिमों की ताक़त हुआ करते हैं.
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समाज, देश और दूसरे इंसानों के लिए क्या सही है क्या ग़लत क्या है यह देख के फैसला करने की कोशिश तो करते हैं लेकिन अज्ञानता वश सही , ग़लत का फर्क ना कर पाने के कारण अक्सर ग़लत का साथ दे जाते हैं क्यों कि बुरा इंसान ही अक्सर शरीफ का चेहरा लगा के समाज में लोगों के बीच अपनी अच्छाई और बडाई करता देखा जाता है. ज्ञानी इनको इनके कर्म से पहचान लेता है और अज्ञानी इनकी बातों पे विश्वास कर के इनका साथ दे जाता है. यह समाज का वो हिस्सा हैं जिसे भीड़ कहा जा सकता है. इसी भीड़ का साथ लेने के लिए, भ्रष्टाचारी, दुराचारी, ज़ालिम अपने चेहरे पे समाजसेवी का मुखोटा लगा ने की कोशिश किया करते हैं. इसीलिये कहा गया है कि अज्ञानता से बड़ा हमारा कोई दुश्मन नहीं.
जो लोग दूसरों के भले को देख के फैसला करते हैं वो लोग ही सही मायने में इंसान होते हैं और कामयाब भी होते हैं. ऐसा इंसान यदि किसी धर्म से जुड़ा है तो सही मायने में धार्मिक भी कहलाता है. यहाँ यह भी बताता चलूँ कि ज्ञान का मतलब डिग्रीयां जमा करना नहीं होता और कामयाबी का मतलब अपने पीछे भीड़ का जमा कर लेना नहीं हुआ करता. जिसके ज्ञान से ,तजुर्बे से अधिक से अधिक लोगों का फायदा हो वही ज्ञानी कहलाता है और वही सही मायने में कामयाब भी होता है लेकिन यह काम सही मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं.
हमारे जीवन में यह मार्गदर्शन कभी हमारी माँ करती है, कभी गुरु करता है, कभी धार्मिक किताबों में लेखे उपदेश या हमारा धार्मिक गुरु करता है. यही कारण है कि अपने बच्चे के लिए ऐसी माँ का लाने कि फ़िक्र करो जो आप कि ओलाद के लिए सही मार्गदर्शक साबित हो, ऐसे गुरु के पास भेजो जो उसका सही मार्गदर्शन करे और धार्मिक उपदेशों कि अहमियत भी बताता रहे.
महात्मा गांधी कहते हैं कि हमारा शरीर ही कुरुक्षेत्र है. क्या सही है क्या ग़लत है? क्या करें क्या ना करें? किसका साथ दें ,किसका ना दें? अपना फायदा देखें या परोपकार को अहमियत दें? इत्यादि .हमारे मन में हर समय इन सभी विचारों का युद्ध होता रहता है. हमारा ज्ञान हमारा अपनी अंतरात्मा की बुरायीओं के बच सकने कि ताक़त ,हमारा निस्वार्थ कर्म और हमारे सच्चे मित्र और मार्गदर्शक हमें सत्य क्या है? कब किसका साथ देना है इस बात को समझाने में सहायक होते हैं.
जिस दिन हम ऐसा कर सके यकीन जानिए इस समाज से भ्रष्टाचार, दुराचार खुद ही ख़त्म हो जाएगा क्यों की इनका साथ देते वाला कोई नहीं बचेगा.
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ऐसा बहुत बार होता है कि किसी मुद्दे पे एक समूह तो समर्थन कर रहा होता है लेकिन दूसरा उसके खिलाफ बोल रहा होता है. धर्म कि बात करें तो दिखाई देता है कि महाभारत हुई और कुछ ने कौरवों का साथ दिया कुछ ने पांडवों का. कर्बला कि जंग हुई तो किसी ने इमाम हुसैन (अ.स) का साथ दिया और किसी ने ज़ालिम यजीद का. जब किसी धर्म को अपनाने कि बात आयी तो कोई हिन्दू बन गया कोई मुसलमान, कोई ईसाई तो कोई नास्तिक. आज के समय कि राजनीती कि बात करें तो कोई कांग्रेसी बना बिठा है, कोई बीजेपी वाला कोई सभी के पीछे चलने से इनकार कर रहा है.
ऐसा इस कारण से होता है कि देखने में तो हम इंसान एक जैसे ही दिखते हैं लेकिन हमारा ज्ञान, हमारी अज्ञानता, हमारी तरबियत ,हमारी अंतरात्मा की बुराईयाँ जैसे काम , क्रोध , लोभ , मोह , इर्ष्या , द्वेष और अहंकार हमारी सोंच को एक दूसरे से अलग कर देता है.
अधिकतर इंसान अपने अपनी जान पहचान का इस्तेमाल करते हुए उस व्यक्ति कि बातों से सहमती जताते नज़र आते हैं जो या तो उन जैसा होता है या फिर उनके लिए फायदेमंद होता है. यह वो लोग हैं जिनकी अंतरात्मा इन्हें बताती है की वो ग़लत व्यक्ति का साथ दे रहे हैं लेकिन चूंकि इनका फायदा उसी में में यह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को नहीं सुनते. अक्सर कुछ लोग उसके खिलाफ भी बोलते दिखाई देते हैं जो हमारे दोस्त का दुश्मन होता है जो की अच्छी बात है लेकिन यह जानना भी आवश्यक हुआ करता है की क्या हमारा दोस्त हक़ पे है?
ऐसे लोगों के लिए सत्य क्या है? समाज के हक़ में क्या है? इत्यादि बातें कोई मायने नहीं रखती. इन्हें तो अपना फायदा ही सबसे अहम् लगता है. ऐसे लोग आज के युग में अधिक मिला करते हैं और यही लोग भ्रष्टाचारियों, दुराचारियों, और जालिमों की ताक़त हुआ करते हैं.
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समाज, देश और दूसरे इंसानों के लिए क्या सही है क्या ग़लत क्या है यह देख के फैसला करने की कोशिश तो करते हैं लेकिन अज्ञानता वश सही , ग़लत का फर्क ना कर पाने के कारण अक्सर ग़लत का साथ दे जाते हैं क्यों कि बुरा इंसान ही अक्सर शरीफ का चेहरा लगा के समाज में लोगों के बीच अपनी अच्छाई और बडाई करता देखा जाता है. ज्ञानी इनको इनके कर्म से पहचान लेता है और अज्ञानी इनकी बातों पे विश्वास कर के इनका साथ दे जाता है. यह समाज का वो हिस्सा हैं जिसे भीड़ कहा जा सकता है. इसी भीड़ का साथ लेने के लिए, भ्रष्टाचारी, दुराचारी, ज़ालिम अपने चेहरे पे समाजसेवी का मुखोटा लगा ने की कोशिश किया करते हैं. इसीलिये कहा गया है कि अज्ञानता से बड़ा हमारा कोई दुश्मन नहीं.
जो लोग दूसरों के भले को देख के फैसला करते हैं वो लोग ही सही मायने में इंसान होते हैं और कामयाब भी होते हैं. ऐसा इंसान यदि किसी धर्म से जुड़ा है तो सही मायने में धार्मिक भी कहलाता है. यहाँ यह भी बताता चलूँ कि ज्ञान का मतलब डिग्रीयां जमा करना नहीं होता और कामयाबी का मतलब अपने पीछे भीड़ का जमा कर लेना नहीं हुआ करता. जिसके ज्ञान से ,तजुर्बे से अधिक से अधिक लोगों का फायदा हो वही ज्ञानी कहलाता है और वही सही मायने में कामयाब भी होता है लेकिन यह काम सही मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं.
हमारे जीवन में यह मार्गदर्शन कभी हमारी माँ करती है, कभी गुरु करता है, कभी धार्मिक किताबों में लेखे उपदेश या हमारा धार्मिक गुरु करता है. यही कारण है कि अपने बच्चे के लिए ऐसी माँ का लाने कि फ़िक्र करो जो आप कि ओलाद के लिए सही मार्गदर्शक साबित हो, ऐसे गुरु के पास भेजो जो उसका सही मार्गदर्शन करे और धार्मिक उपदेशों कि अहमियत भी बताता रहे.
महात्मा गांधी कहते हैं कि हमारा शरीर ही कुरुक्षेत्र है. क्या सही है क्या ग़लत है? क्या करें क्या ना करें? किसका साथ दें ,किसका ना दें? अपना फायदा देखें या परोपकार को अहमियत दें? इत्यादि .हमारे मन में हर समय इन सभी विचारों का युद्ध होता रहता है. हमारा ज्ञान हमारा अपनी अंतरात्मा की बुरायीओं के बच सकने कि ताक़त ,हमारा निस्वार्थ कर्म और हमारे सच्चे मित्र और मार्गदर्शक हमें सत्य क्या है? कब किसका साथ देना है इस बात को समझाने में सहायक होते हैं.
अर्जुन को मित्र के रूप में कृष्ण जैसा मार्गदर्शक मिला. आप चाहें तो आप भी आज भगवद गीता से मित्रता करके कृष्ण जैसा मित्र पा सकते हैं. आप कुरान जैसी हिदायत की किताब को पढ़ के अल्लाह से मित्रता कर सकते हैं. बस एक बार आप एकांत में बैठकर कामना, स्वार्थ से परे चिंतन करके तो देखें.
जिस दिन हम ऐसा कर सके यकीन जानिए इस समाज से भ्रष्टाचार, दुराचार खुद ही ख़त्म हो जाएगा क्यों की इनका साथ देते वाला कोई नहीं बचेगा.
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