सत्याग्रह या सदाग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है.यह और बात है की असत्य की राह पे चलने वालों को यह शब्द सिवि...
सत्याग्रह या सदाग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है.यह और बात है की असत्य की राह पे चलने वालों को यह शब्द सिविल डिसओबिडियेन्स या कह लें सविनय अवज्ञा लगता है. सत्याग्रह का सही तरीका यह है की अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना.
समाज मैं असत्य या बुराई से लड़ने के कई तरीके इंसानों ने अपनी समझ और ज़रुरत के अनुसार समय समय पे अपनाये. किसी ने कहा बुरे इंसान के साथ उससे भी अधिक बुरा करो, किसी ने कहा इन्साफ करो जो जितना बुरा करे उसके साथ उतनी ही बुराई करो, किसी ने कहा जो बुरा करे उसके साथ भलाई कर के उस का दिल जीत लो और बुराई से रोक लो.
यकीनन बुराई के बदले भलाई संतो पैगम्बरों ,इमाम हुसैन,बुद्ध, ईसा, गांधी का बताया तरीका है. इसी प्रकार से अच्छाई करने वालों के साथ भी होता है. कुछ लोग किसी कि अच्छाई का सिला उससे अधिक अच्छाई कर के देते हैं, कुछ लोग अच्छाई का बदला उतनी ही अच्छाई करके देते हैं और कुछ अच्छाई करने वाले कि बुराई करके सिला देते हैं.
जो शख्स किसी कि बुराई के बदले अधिक बुराई और अच्छाई के बदले बुराई का सिला देता है ज़ालिम कहलाता है. इसी ज़ालिम को आज के युग मैं कामयाब इंसान कहा जाता है.
क्या आप गाँधी,गौतम बुद्ध ,हज़रत मुहम्मद (स.अव), इमाम हुसैन (अ.स) , पैग़म्बरों और संतो को कामयाब इंसान नहीं मानते?
यदि मानते हैं तो उनके बताये तरीके पे चलते क्यों नहीं?
हकीकत यह है कि हम मानते हैं कि यह सभी कामयाब थे और इनका बताया तरीका ही सही था लेकिन लेकिन यह भी जानते हैं कि इस राह पे चल कर दुनिया मैं बहुत ऐश ओ आराम की ज़िंदगी गुज़ारना संभव नहीं. और हम तो दुनिया के ऐश ओ आराम ,इसकी लज्ज़त उठाने के बदले अपना धर्म, अपना ईमान, अपना किरदार सभी कुछ कुर्बान करने को हर समय तैयार दिखते हैं.
आप को क्या अभी भी ऐसा लगता है कि भ्रष्ट केवल राजनैतिक नेता है? केवल धार्मिक नेता है? इस केवल की लिस्ट बड़ी लम्बी है क्यों कि भ्रष्टाचार आज रिवाज बन चुका है. ‘
क्या हमको यह यकीन है कि अगर हमें भी इन राजनीति के खिलाडी नेताओं जितनी ताक़त मिल जाए या इन धार्मिक गुरूओं जितने पैसे हमारे पास भी आने लगें तो हम भ्रष्ट नहीं हो जाएंगे?
जिन उपदेशों को हम सुनने को तैयार नहीं उसपे चल के दिखायेंगे काबिल ए यकीन तो नहीं क्योंकि आज के दौर मैं भ्रष्टाचार गुनाह नहीं रिवाज बन गया है. उम्मीद पे दुनिया काएम है शायद कोई ऐसा आ जाए और एक बार फिर समाज से भ्रष्टाचार मिट जाए.
फिलहाल हम जो कर सकते हैं वो सिर्फ इतना कि हम सभी का फ़र्ज़ है कि खुद को इन भ्रष्टाचार का हिस्सेदार बनने से जितना अधिक रोक सकें रोक लें और किसी भी शहर,संस्था,सोसाइटी ,या अपने देश के नेताओं का जब चुनाव करें तो भ्रष्ट लोगों को अपना मत कभी ना दें और उनका साथ दे कर उनका मनोबल भी ना बढाएं .
समाज मैं असत्य या बुराई से लड़ने के कई तरीके इंसानों ने अपनी समझ और ज़रुरत के अनुसार समय समय पे अपनाये. किसी ने कहा बुरे इंसान के साथ उससे भी अधिक बुरा करो, किसी ने कहा इन्साफ करो जो जितना बुरा करे उसके साथ उतनी ही बुराई करो, किसी ने कहा जो बुरा करे उसके साथ भलाई कर के उस का दिल जीत लो और बुराई से रोक लो.
यकीनन बुराई के बदले भलाई संतो पैगम्बरों ,इमाम हुसैन,बुद्ध, ईसा, गांधी का बताया तरीका है. इसी प्रकार से अच्छाई करने वालों के साथ भी होता है. कुछ लोग किसी कि अच्छाई का सिला उससे अधिक अच्छाई कर के देते हैं, कुछ लोग अच्छाई का बदला उतनी ही अच्छाई करके देते हैं और कुछ अच्छाई करने वाले कि बुराई करके सिला देते हैं.
जो शख्स किसी कि बुराई के बदले अधिक बुराई और अच्छाई के बदले बुराई का सिला देता है ज़ालिम कहलाता है. इसी ज़ालिम को आज के युग मैं कामयाब इंसान कहा जाता है.
क्या आप गाँधी,गौतम बुद्ध ,हज़रत मुहम्मद (स.अव), इमाम हुसैन (अ.स) , पैग़म्बरों और संतो को कामयाब इंसान नहीं मानते?
यदि मानते हैं तो उनके बताये तरीके पे चलते क्यों नहीं?
हकीकत यह है कि हम मानते हैं कि यह सभी कामयाब थे और इनका बताया तरीका ही सही था लेकिन लेकिन यह भी जानते हैं कि इस राह पे चल कर दुनिया मैं बहुत ऐश ओ आराम की ज़िंदगी गुज़ारना संभव नहीं. और हम तो दुनिया के ऐश ओ आराम ,इसकी लज्ज़त उठाने के बदले अपना धर्म, अपना ईमान, अपना किरदार सभी कुछ कुर्बान करने को हर समय तैयार दिखते हैं.
आप को क्या अभी भी ऐसा लगता है कि भ्रष्ट केवल राजनैतिक नेता है? केवल धार्मिक नेता है? इस केवल की लिस्ट बड़ी लम्बी है क्यों कि भ्रष्टाचार आज रिवाज बन चुका है. ‘
क्या हमको यह यकीन है कि अगर हमें भी इन राजनीति के खिलाडी नेताओं जितनी ताक़त मिल जाए या इन धार्मिक गुरूओं जितने पैसे हमारे पास भी आने लगें तो हम भ्रष्ट नहीं हो जाएंगे?
जिन उपदेशों को हम सुनने को तैयार नहीं उसपे चल के दिखायेंगे काबिल ए यकीन तो नहीं क्योंकि आज के दौर मैं भ्रष्टाचार गुनाह नहीं रिवाज बन गया है. उम्मीद पे दुनिया काएम है शायद कोई ऐसा आ जाए और एक बार फिर समाज से भ्रष्टाचार मिट जाए.
फिलहाल हम जो कर सकते हैं वो सिर्फ इतना कि हम सभी का फ़र्ज़ है कि खुद को इन भ्रष्टाचार का हिस्सेदार बनने से जितना अधिक रोक सकें रोक लें और किसी भी शहर,संस्था,सोसाइटी ,या अपने देश के नेताओं का जब चुनाव करें तो भ्रष्ट लोगों को अपना मत कभी ना दें और उनका साथ दे कर उनका मनोबल भी ना बढाएं .