मेरे हिंदी ब्लॉगजगत मैं आने के बाद से डॉ अमर कुमार की म्रत्यु खबर मेरे लिए किसी ब्लोगर की म्रत्यु की पहली खबर थी. ब्लॉगजगत ने उनको जिस प...
मेरे हिंदी ब्लॉगजगत मैं आने के बाद से डॉ अमर कुमार की म्रत्यु खबर मेरे लिए किसी ब्लोगर की म्रत्यु की पहली खबर थी. ब्लॉगजगत ने उनको जिस प्रकार प्यार से श्रधांजलि अर्पित की यह अपने आप मैं एक मिसाल है ऐसा महसूस हुआ की यह ब्लॉगजगत एक परिवार है और हमारा अपना कोई कहीं खो गया है. ऐसी प्यार और अपनेपन की मिसाल शायद विश्व के किसी भी और भाषा के ब्लॉगजगत मैं देखने को नहीं मिलती.
जब एक इंसान किसी दूसरे इंसान कि तारीफ उसके जीवन काल मैं करता है तो इस बात का शक पैदा हो अक्सर जाया करता है कि कहीं यह तारीफ किसी ख़ास फायदे के लिए तो नहीं कि जा रही है ? और इस ब्लॉगजगत मैं तो अगर किसी कि तारीफ कर दी तो यकीन कर लेते हैं लोग कि यह टिप्पणी पाने कि एक कोशिश है.
डॉ अमर कुमार तो अब नहीं रहे लेकिन यह ब्लोगर उनकी नेकियों को प्यार को भुला नहीं पा रहे. यही सच्चा प्यार है और उनकी बातों को आपस मैं बाँट के उनको जिंदा रखनी कि एक कोशिश है. आज मैं अवश्य कहूँगा मुझे गर्व है कि मैं इस हिंदी ब्लॉगजगत से जुड़ा हुआ हूँ.
कुछ समय पहले मैंने एक लेख़ समाज मैं नफरत फैलाने वालों के बारे मैं लिखा था ""ब्लॉगजगत एक परिवार लेकिन सावधानी हटी दुर्घटना घटी" और उस पर डॉ अमर कुमार जी ने एक यादगार टिप्पणी कि थी जो मुझे आज भी याद है .
डॉ अमर से जब मैंने अमन का पैग़ाम के लिए कुछ लिखने को कहा उस समय वो अपनी बीमारी से जूझ रहे थे उनका जवाब था "वक्त मिलते ही इँशा-अल्लाह आपकी यह ख़्वाहिश पूरी होगी । मगर इससे क्या इन सिरफिरों की ज़ेहनियत पर कोई ज़रब भी आयेगी, इसमें शक है ।इंतज़ार करें, ज़रूर वक्त निकालूँगा ।"
अफ़सोस कि मौत ने उनको वक़्त नहीं दिया लेकिन उनका वादा इस बात का सुबूत है कि समाज मैं अमन और शांति के हिमायती थे डॉ अमर .
कहा जाता है कि अच्छा इंसान कभी नहीं मरता क्योंकि उसकी नेकियाँ, उसका दिया हुआ प्यार लोगों के दिलों मैं जिंदा रहता है. इस बात को जो लोग जिंदा है उनको कभी नहीं भूलना चाहिए और जीवन मैं ऐसे काम करें जिस से लोग आप को मरने के बाद भी याद करें. हम सभी को इस ब्लॉगजगत मैं भी कोई लेख़ लिखने या टिप्पणी करने के पहले भी यह ध्यान रखना चाहिए कि हो सकता है हमको म्रत्यु आ जाए और यह लेख़ ,टिप्पणियां जिंदा रहें. उस समय यही हमारी पहचान बनेंगी.
जन्म से म्रत्यु तक मौत हर समय इंसान का पीछा करती रहती है और इंसान हमेशा मौत से भागता दिखाई देता है. आज तक कोई विज्ञान, यह नहीं बता पाया की किसी को मौत कब आएगी, कहां आएगी, कैसे आएगी? हर दिन हम किसी ना किसी की मौत की खबर सुनते हैं लेकिन खुद को भी एक दिन मौत आएगी, यह कुबूल नहीं करते.
मैंने भी मौत को बहुत करीब से देखा है और इस बात का ज़िक्र मैं पहले भी कर चुका हूँ लेकिन आज फिर करना चाहूँगा उनके लिए जिन्होंने शायद इसे ना पढ़ा हो.
सन २००४, २२ जुलाई की शाम मेरे लिए एक अजीब शाम थी. दफ्तर से घर आया तो सब ठीक था,अचानक रात १०:३० ,जब मैं अपने कंप्यूटर पे बैठा तो मुझको दिल का दौरा पड़ा. हमारी सोसाइटी वाले भाग के आये , अस्पताल , अम्बुलेंस , और फिर डॉक्टर का फैसला बाईपास आपरेशन होगा.
आप सब के यहाँ में बता ता चलूँ की जिस सोसाइटी में मैं रहता था वहाँ में अकेला मुसलमान था और १५ घर हिन्दू और दो घर इसाईओं के थे. लेकिन मेरे बुरे वक़्त पे सब साथ रहे जब तक की दो दिन बाद मुझे आपरेशन के लिए ना ले जाया गया और मेरे भाई, बहनोई सब आ नहीं गए. इन दो दिनों में , कोई काम पे नहीं गया और डॉ के पास ८००००/- रुपये भी इन्ही लोगों ने जमा किये, जो बाद में वापस दिया गया. मैंने अपने हिन्दू और ईसाई भाईओं से जो मुहब्बत पाई, उसे कभी भुला नहीं सकूँगा.
जब मुझे आपरेशन के लिए ले जाया जा रहा था, उस समय मेरे सभी रिश्तेदार दोस्त दुआ कर रहे थे,जैसे जैसे मुझे उनसे दूर लेजाया जा रहा था मुझे बस उनका हाथ हिलाना नज़र आ रहा है और दिल मैं यह ख्याल कि अगर वापस ना आया तो यह इनका आखिरी दीदार होगा.
आगे दूसरा हाल था, वहाँ ग्रीन ड्रेस में कई नर्स आईं और मेरे बेड को घेर के प्रार्थना करने लगीं. उस समय मुझको ऐसा लगा की शायद अब में, इस दुनिया में वापस फिर ना जा सकूंगा. मुझे बचपन से आज तक के मेरे अच्छे बुरे काम सभी याद आने लगे. यकीन जानिए जिस समय मुझे ऐसा लगा की मौत बहुत ही करीब हैं, बहुत से अच्छे बुरे ख्यालात, तौबा, सजा और ना जाने क्या क्या, पूरी ज़िंदगी जैसे ५ मिनटों में सिमट के रह गयी थी. एक फिल्म सी बचपन से आज तक की दिमाग में चलने लगी थी. मुझे वो वो बातें आने लगीं , जो सचमें में भूल चुका था. मुझे मेरा घर, मेरी ज़मीन जाएदाद ,मेरी दौलत , मेरी शोहरत , सब अजनबी सी लगने लगी थी. अल्लाह को याद किया, तौबा की फिर भी एक ख्वाहिश की के ऐ पालने वाले मुझे फिर से एक ज़िंदगी दे दे, जिस से में अपने गुनाहों, की माफी मांग सकूं, और अगर किसी को कोई तकलीफ कभी पहुंचाई है तो उस से माफी मांग लूं.
आपरेशन हुआ और जब ७ घंटे बाद होश आया तो लगा अल्लाह ने मेरी सुन ली. और जब मुझे नयी ज़िन्दगी मिली, तो मैंने खुद मैं बदलाव सा महसूस किया , नेक अमाल में इजाफा कर दिया और और अपनी ग़लतियों और कमियों को सुधारना शुरू कर दिया , किसी को तकलीफ कभी पहुंचाई थी तो माफी मांग ली और आज जब भी कोई काम करता हूँ यह ज़रूर सोंचता हूँ, अल्लाह की रज़ा , ख़ुशी है क्या इसमें? कहीं मेरा यह काम अपने जैसे किसी इंसान को तकलीफ तो नहीं पहुंचा रहे?
मैंने जो सीखा इस मौत के दीदार से वो यह की ऐ इंसान, मत भागो मौत से, मत बनो जान के अनजान, मौत बहुत ही करीब है तुमसे. अपने धर्म का पालन करो, अल्लाह, इश्वर की ख़ुशी के लिए काम करो और इस दुनिया में नेक बन्दों की ख़ुशी हासिल करो, इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म जानो और अल्लाह के , भगवान् के नाफ़र्मान ,ज़ालिम बन्दों की ख़ुशी हासिल करने से बचो. इंसानों को तकलीफ ना दो, और अगर तुम्हारे पास कोई मदद मांगने आ जाए , तो अल्लाह का शुक्र अदा करो की तुम्हे इस काबिल बनाया और उसकी मदद करो.
मौत को फिर आना है, बस अल्लाह से दुआ करता हूँ की इस बार ,मौत को मुस्करा के गले लगाने के काबिल बना दे, और मेरा बाद जब कोई मुझे याद करे तो वो एक प्यार भरी याद हो.
अंत मैं यह एक बार फिर से कहूँगा कि मुझे गर्व है कि मैं इस हिंदी ब्लॉगजगत का एक हिस्सा हूँ.
जब एक इंसान किसी दूसरे इंसान कि तारीफ उसके जीवन काल मैं करता है तो इस बात का शक पैदा हो अक्सर जाया करता है कि कहीं यह तारीफ किसी ख़ास फायदे के लिए तो नहीं कि जा रही है ? और इस ब्लॉगजगत मैं तो अगर किसी कि तारीफ कर दी तो यकीन कर लेते हैं लोग कि यह टिप्पणी पाने कि एक कोशिश है.
डॉ अमर कुमार तो अब नहीं रहे लेकिन यह ब्लोगर उनकी नेकियों को प्यार को भुला नहीं पा रहे. यही सच्चा प्यार है और उनकी बातों को आपस मैं बाँट के उनको जिंदा रखनी कि एक कोशिश है. आज मैं अवश्य कहूँगा मुझे गर्व है कि मैं इस हिंदी ब्लॉगजगत से जुड़ा हुआ हूँ.
कुछ समय पहले मैंने एक लेख़ समाज मैं नफरत फैलाने वालों के बारे मैं लिखा था ""ब्लॉगजगत एक परिवार लेकिन सावधानी हटी दुर्घटना घटी" और उस पर डॉ अमर कुमार जी ने एक यादगार टिप्पणी कि थी जो मुझे आज भी याद है .
डॉ अमर से जब मैंने अमन का पैग़ाम के लिए कुछ लिखने को कहा उस समय वो अपनी बीमारी से जूझ रहे थे उनका जवाब था "वक्त मिलते ही इँशा-अल्लाह आपकी यह ख़्वाहिश पूरी होगी । मगर इससे क्या इन सिरफिरों की ज़ेहनियत पर कोई ज़रब भी आयेगी, इसमें शक है ।इंतज़ार करें, ज़रूर वक्त निकालूँगा ।"
अफ़सोस कि मौत ने उनको वक़्त नहीं दिया लेकिन उनका वादा इस बात का सुबूत है कि समाज मैं अमन और शांति के हिमायती थे डॉ अमर .
कहा जाता है कि अच्छा इंसान कभी नहीं मरता क्योंकि उसकी नेकियाँ, उसका दिया हुआ प्यार लोगों के दिलों मैं जिंदा रहता है. इस बात को जो लोग जिंदा है उनको कभी नहीं भूलना चाहिए और जीवन मैं ऐसे काम करें जिस से लोग आप को मरने के बाद भी याद करें. हम सभी को इस ब्लॉगजगत मैं भी कोई लेख़ लिखने या टिप्पणी करने के पहले भी यह ध्यान रखना चाहिए कि हो सकता है हमको म्रत्यु आ जाए और यह लेख़ ,टिप्पणियां जिंदा रहें. उस समय यही हमारी पहचान बनेंगी.
जन्म से म्रत्यु तक मौत हर समय इंसान का पीछा करती रहती है और इंसान हमेशा मौत से भागता दिखाई देता है. आज तक कोई विज्ञान, यह नहीं बता पाया की किसी को मौत कब आएगी, कहां आएगी, कैसे आएगी? हर दिन हम किसी ना किसी की मौत की खबर सुनते हैं लेकिन खुद को भी एक दिन मौत आएगी, यह कुबूल नहीं करते.
मैंने भी मौत को बहुत करीब से देखा है और इस बात का ज़िक्र मैं पहले भी कर चुका हूँ लेकिन आज फिर करना चाहूँगा उनके लिए जिन्होंने शायद इसे ना पढ़ा हो.
सन २००४, २२ जुलाई की शाम मेरे लिए एक अजीब शाम थी. दफ्तर से घर आया तो सब ठीक था,अचानक रात १०:३० ,जब मैं अपने कंप्यूटर पे बैठा तो मुझको दिल का दौरा पड़ा. हमारी सोसाइटी वाले भाग के आये , अस्पताल , अम्बुलेंस , और फिर डॉक्टर का फैसला बाईपास आपरेशन होगा.
आप सब के यहाँ में बता ता चलूँ की जिस सोसाइटी में मैं रहता था वहाँ में अकेला मुसलमान था और १५ घर हिन्दू और दो घर इसाईओं के थे. लेकिन मेरे बुरे वक़्त पे सब साथ रहे जब तक की दो दिन बाद मुझे आपरेशन के लिए ना ले जाया गया और मेरे भाई, बहनोई सब आ नहीं गए. इन दो दिनों में , कोई काम पे नहीं गया और डॉ के पास ८००००/- रुपये भी इन्ही लोगों ने जमा किये, जो बाद में वापस दिया गया. मैंने अपने हिन्दू और ईसाई भाईओं से जो मुहब्बत पाई, उसे कभी भुला नहीं सकूँगा.
जब मुझे आपरेशन के लिए ले जाया जा रहा था, उस समय मेरे सभी रिश्तेदार दोस्त दुआ कर रहे थे,जैसे जैसे मुझे उनसे दूर लेजाया जा रहा था मुझे बस उनका हाथ हिलाना नज़र आ रहा है और दिल मैं यह ख्याल कि अगर वापस ना आया तो यह इनका आखिरी दीदार होगा.
आगे दूसरा हाल था, वहाँ ग्रीन ड्रेस में कई नर्स आईं और मेरे बेड को घेर के प्रार्थना करने लगीं. उस समय मुझको ऐसा लगा की शायद अब में, इस दुनिया में वापस फिर ना जा सकूंगा. मुझे बचपन से आज तक के मेरे अच्छे बुरे काम सभी याद आने लगे. यकीन जानिए जिस समय मुझे ऐसा लगा की मौत बहुत ही करीब हैं, बहुत से अच्छे बुरे ख्यालात, तौबा, सजा और ना जाने क्या क्या, पूरी ज़िंदगी जैसे ५ मिनटों में सिमट के रह गयी थी. एक फिल्म सी बचपन से आज तक की दिमाग में चलने लगी थी. मुझे वो वो बातें आने लगीं , जो सचमें में भूल चुका था. मुझे मेरा घर, मेरी ज़मीन जाएदाद ,मेरी दौलत , मेरी शोहरत , सब अजनबी सी लगने लगी थी. अल्लाह को याद किया, तौबा की फिर भी एक ख्वाहिश की के ऐ पालने वाले मुझे फिर से एक ज़िंदगी दे दे, जिस से में अपने गुनाहों, की माफी मांग सकूं, और अगर किसी को कोई तकलीफ कभी पहुंचाई है तो उस से माफी मांग लूं.
आपरेशन हुआ और जब ७ घंटे बाद होश आया तो लगा अल्लाह ने मेरी सुन ली. और जब मुझे नयी ज़िन्दगी मिली, तो मैंने खुद मैं बदलाव सा महसूस किया , नेक अमाल में इजाफा कर दिया और और अपनी ग़लतियों और कमियों को सुधारना शुरू कर दिया , किसी को तकलीफ कभी पहुंचाई थी तो माफी मांग ली और आज जब भी कोई काम करता हूँ यह ज़रूर सोंचता हूँ, अल्लाह की रज़ा , ख़ुशी है क्या इसमें? कहीं मेरा यह काम अपने जैसे किसी इंसान को तकलीफ तो नहीं पहुंचा रहे?
मैंने जो सीखा इस मौत के दीदार से वो यह की ऐ इंसान, मत भागो मौत से, मत बनो जान के अनजान, मौत बहुत ही करीब है तुमसे. अपने धर्म का पालन करो, अल्लाह, इश्वर की ख़ुशी के लिए काम करो और इस दुनिया में नेक बन्दों की ख़ुशी हासिल करो, इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म जानो और अल्लाह के , भगवान् के नाफ़र्मान ,ज़ालिम बन्दों की ख़ुशी हासिल करने से बचो. इंसानों को तकलीफ ना दो, और अगर तुम्हारे पास कोई मदद मांगने आ जाए , तो अल्लाह का शुक्र अदा करो की तुम्हे इस काबिल बनाया और उसकी मदद करो.
मौत को फिर आना है, बस अल्लाह से दुआ करता हूँ की इस बार ,मौत को मुस्करा के गले लगाने के काबिल बना दे, और मेरा बाद जब कोई मुझे याद करे तो वो एक प्यार भरी याद हो.
अंत मैं यह एक बार फिर से कहूँगा कि मुझे गर्व है कि मैं इस हिंदी ब्लॉगजगत का एक हिस्सा हूँ.