जी हाँ अमन का पैग़ाम है ही ऐसी चीज़ जिसका असर सीधे दिलों पे हुआ करता है. इस ब्लॉग ने पिछले १६ महीनो मैं इस समाज मैं अशांति फैलाने वाले...
जी हाँ अमन का पैग़ाम है ही ऐसी चीज़ जिसका असर सीधे दिलों पे हुआ करता है. इस ब्लॉग ने पिछले १६ महीनो मैं इस समाज मैं अशांति फैलाने वाले हर संभव कारणों पे नज़र डाली और लेखों के ज़रिये उनका हल तलाशने कि कोशिश की. एक इंसान दुसरे इंसान से दो तरह के रिश्ते काएम कर सकता है. की होती है एक नफरत का जो दिलों को बांटता है और दूसरा मुहब्बत का जो दिलों को जोड़ता है. आप सभी के सहयोग से अमन का पैग़ाम ब्लॉग ने मुहब्बत के रिश्ते रखने और नफरत के रिश्तों को ख़त्म करने की हमेशा कोशिश की है और करता रहेगा.
जब यह ब्लॉग शुरू किया था तो इस ब्लॉगजगत मैं जाति धर्म के नाम पे नफरत भरी पोस्ट और टिप्पणिओं का बोलबाला था. मित्रों ने कहा बड़ा मुश्किल होगा ब्लॉगजगत के ऐसे माहोल मैं अमन और शांति की बात करना.
मैं भी जानता था कि
"यह इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजे ,एक आग का दरिया है और तैर के जाना है."
आज १६ महीनो बाद ब्लॉगजगत को देखें सहमती और असहमति अपनी जगह पे मौजूद है लेकिन ना वो धर्म के नाम पे नफरत भरे लेख हैं और ना ही वो भड़कती टिप्पणियां और सभी को यह समझ मैं आने लगा है कि यह अमन और शांति का रास्ता कि सबसे सही रास्ता है.
मैं उन लोगों का भी शुक्रगुज़ार हूं जो अमन का पैग़ाम ब्लॉग से हमेशा इस कारण से दूर रहे क्यों कि उनका मानना है कि यह अमन और शांति कि बातें केवल अच्छे लगने वाले उपदेश हैं और समझते हैं कि इन उपदेशों का कोई असर समाज पे नहीं पड़ने वाला. शुक्रगुजा इस लिए क्यों कि उन्होंने असहमति के बाद भी कभी अमन का पैग़ाम के खिलाफ काम नहीं किया और यह भी एक प्रकार का बड़ा सहयोग रहा.
हाँ मेरा मानना यही है कि यह उपदेश नफरत के अँधेरे मैं एक जलते हुए दिए काम काम करते हैं और जिनके दिलों मैं एक इंसान कि तरह मोहब्बत मजूद है उन्हें भटकने पे रास्ता यही उपदेश दिखाते हैं. इन उपदेशों कि मौजूदगी एक आशा कि किरण कि तरह से काम किया करती हैं.
मैं उन सभी लोगों से फिर से एक बार निवेदन करूँगा जो किसी कारणवश यहाँ आ के लेखकों का उत्साह नहीं बढ़ाते अरे भाई हम सब एक जैसे इंसान हैं . वही शरीर वही खून और इस दुनिया में एक जैसे ही दुःख और सुख के बीच ज़िंदगी गुज़ारने वाले इंसान हैं. एक बार धर्म जाती , नस्ल, इलाका और सहमती असहमति कि दीवारें गिरा के तो देखो तुम्हे भी यकीन हो जाएगा यह दुनिया बहुत ही सुंदर है . यहाँ नफरतों का कोई स्थान नहीं है क्यों कि इंसान कि फितरत ही एक दुसरे से प्रेम करने ,एक दुसरे को सहयोग देने और एक दुसरे के दुःख सुख मैं साथ देने कि हुआ करती है.
अनवर जमाल ने कभी जो कहा था कि प्यार का रिश्ता ही इंसानियत की पहचान है और सहनशीलता से शांति की तुरंत प्राप्ति संभव है. आज वो कर के भी दिखाया
कम अक्ल या बेवकूफ तो इन गुमराह करने वालों के चक्कर मैं आ जाते हैं लेकिन समझदार हमेशा खुद से सवाल करता है क्यों पाप के रास्ते पे इंसान एक होता है और नेकी के रास्ते पे बंट जाया करता है? और इस सवाल का जवाब पाते ही वो गुमराह करने वालों कि बातों को अनसुना करते हुए समाज की बेहतरी के लिए काम करने वालों का साथ देता रहता है.
क्या हम १०० साल गुलाम रहने और ज़ुल्म सहने के बाद अब भी आज़ाद होने को तैयार नहीं?
अनवर भाई के इस "अमन" का पैग़ाम का जन्म १ अगस्त २०११ को हुआ. हमारी तरफ से उनको मुबारकबाद