बलात्कार आज भारत में सबसे ज्वलंत मुद्दा है. बावजूद इसके इस समस्या के तह में जाने का प्रयास बहुत कम किया गया ह...
बलात्कार आज भारत में सबसे ज्वलंत मुद्दा है. बावजूद इसके इस समस्या के तह में जाने का प्रयास बहुत कम किया गया है. समाधान के तौर पे हमेशा कानून व्यवस्था को कोसने और बलात्कारी को सख्त सजा का सुझाव दे के मामला भुला दिया जाता है और नतीजे मैं बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं. आज आवश्यकता है इस समस्या का हल तलाशने की.
बलात्कारियों की कई किस्में हुआ करती हैं और उनका फर्क भी हमें मालूम होना चाहिए.इंसान के जीवन मैं रोटी कपडे के बाद सेक्स कि ज़रुरत सबसे अधिक महत्व रखती है. किसी को यह रोटी कपडा ,मकान और सम्मान के बाद ज़रूरी लगता है,कोई रोटी के बाद ही सेक्स को अहम् मानता है. मनुष्य के जीवन मैं अहमियत से इनकार नहीं.
किसी को सेक्स की कम ख्वाहिश होती है किसी को अधिक कोई सेक्सोहॉलिक होता है तो कोई इसका सही ज्ञान ना होने से मनोविकृति का शिकार हो जता है. इंसान का शरीर एक उम्र आने पे खुद यह इशारे करने लगता है कि अब उसके शरीर को सेक्स कि ज़रुरत है और ऐसे मैं वो विपरीत लिंग वाले के प्रति खिंचाव और उसके शरीर के प्रति खिंचाव और उत्सुकता महसूस करने लगता है.हमारे समाज के ग़लत रीति रिवाजों के चलते युवा सही उम्र मैं सेक्स के लिए साथी तो हासिल नहीं कर पाता लेकिन समाज मैं आ गयी बुराईयों जैसे पोर्नोग्राफी,बाज़ारों मैं अर्धनग्न औरतें , हॉट फिल्में इत्यादि के ज़रिये सेक्स के बारे मैं बहुत कुछ जान लेते हैं. और इंतज़ार करते हैं कि कब उन्हें भी समाज के बनाये सही और जाएज़ रास्ते से कोई जीवन साथी मिले. अधिकतर लोग तो इंतज़ार कर लेते हैं या समाज की नज़रों से बच कर एक दूसरे की सहमती से अपनी सेक्स की इच्छा पूरी करने के लिए साथी पा जाते हैं और इसमें से कुछ युवा जो अपनी सेक्स की इच्छा को काबू नहीं कर पाते बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करके सामाजिक बहिष्कार का पात्र बन जाते है.
ऐसे युवा बलात्कारियों को इस कार्य से आसानी से रोका जा सकता है यदि उनको सही सेक्स की शिक्षा देते हुए सेक्स की इच्छा को काबू करना सीखाया जाए, सही उमर मैं जीवन साथी का साथ दिया जाए और समाज से पोर्नोग्राफी, अश्लील इश्तेहार, गाने पे रोक लगाई जाए. पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से आज के युवक को बाहर आना होगा और अपने संस्कारों की तरफ ध्यान देना होगा तब कहीं जा के ऐसे बलात्कार करने वालों को सही राह पे लाया जा सकता है. इन युवाओं को कानून की सजा से अधिक समाज के सहयोग की आवश्यकता है. महिलाओं को भी इसमें सहयोग करना चाहिए. कानून आप की सुरक्षा तभी बेहतर तरीके से कर सकता है जब आप को खुद की सुरक्षा कैसे की जाए इसकी फ़िक्र हो.याद रहे
भारतीय संस्कृति में लज्जा को नारी का श्रृंगार माना गया है. पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता जो महिलाओं को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है. महिलाऐं जो किसी समूह या सार्वजनिक स्थानों पर अपने शरीर के अंगों को उचित रूप से नहीं ढ़कती, वास्तव में वो स्वयं को एक बिकाऊ वस्तु के रुप में ख़रीदारों के सम्मुरव प्रस्तुत करती हैं. वो बजाए इसके कि एक, योग्य सक्षम तथा लाभदायक इन्सान के रूप, में समाज में पहचानी जाए, और अपने ज्ञान ,शिक्षा वफादारी तथा गुणों व मानवीय मूल्यों को दुसरों को पहचानवाए बने केवल अपने यौंन आकषर्णों को ही दुसरों के सामने प्रस्तुत करके वो मानवीय मूल्यों से स्वयं को दूर कर लेती है.
पश्चिमी महिला जो वेल ड़ोरेन्ट के अनुसार 19 वीं शताबदी के आंरम्भिक काल तक मानवधिनारों से वंचित की, आकस्मिक रूप से लालची लोगों के हाथ लग गई.
बलात्कार के हकीकत मैं बड़े गुनाहगार वो हैं जो ताक़त के पैसे के बल पे महिलाओं के साथ अत्याचार और बलात्कार करते हैं और इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की औरत परदे मैं है या बेपर्दा या क्या पहनती है?
गाँवों में अमीरों द्वारा गरीबों को सज़ा देने के लिए उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने की या उनकी महिलाओं को ज़बरदस्ती उसके घरवालों को डरा के अपने बिस्तर की शोभा बना लेने की मानसिकता आम है गाँव की औरत जो पहले से ही अपने अधिकारों से अनजान, और आर्थिक सामाजिक तौर पर बहुत पिछड़ी हुई है,जब अमीरों के ज़ुल्म का शिकार होती है तो आवाज़ भी नहीं उठा पाती और ऐसे अधिकतर मामले दबे रह जाते हैं.औरतों के साथ बलात्कार, अपहरण,वैश्यावृति ,सेक्स रैकेट यह सब ताक़त और पैसे के ज़ोर पे ही किया जाता है और इसका शिकार होती है कमज़ोर, ग़रीब घरों की महिलाएं या मध्य वर्गीय घरों की वो युवतियां जो अमीरों की झूटी शान और चमकती दुनिया को आसान रास्ते से पा लेना चाहती हैं.यदि भारत के सिर्फ नामचीन लोगों से जुड़े हुए सेक्स कांड की चर्चा की जाए तो एक लम्बी फेहरिस्त तैयार की जा सकती है
यकीनन इनको रोकने के लिए सख्त कानून की आवश्यकता है और महिलाओं मैं जागरूकता लाने की आवश्यकता है. जिस प्रकार आज समाज मैं भ्रष्टाचार कैंसर की तरह ला इलाज होता जा रहा है उसी प्रकार औरतों के देह के साथ खिलवाड़ और देह व्यापार भी ला इलाज बीमारी का रूप ले चुका है.
स्वस्थ व सुखी जीवन के लिए संयमित सेक्स को उपयोगी बताया गया है लेकिन भारत में सेक्स को वर्जना की तरह देखा जाता है. माता-पिता अपने बच्चों को यौन संबंधित जानकारी देने से परहेज करते हैं जबकि हम सभी यह जानते हैं की इंसान की फितरत वर्जित माने जाने वाले विषयों के बारे में जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा सबसे अधिक होती है.
जब युवाओं को सही तरीके से सेक्स की शिक्षा नहीं मिल पति तो ग़लत रास्तों से ,अश्लील साहित्य इत्यादि से इसको सीखने की कोशिश करता है. इस क्रम में कुछ बच्चे मनोविकृति के शिकार हो जाते हैं.मनोविकार से ग्रसित बच्चे बाद में जाकर बलात्कार जैसे क्रूर व घिनौने जुर्म को अंजाम देते हैं.
आज के युवाओं की बातचीत मैं गाली या अपशब्द के आदान-प्रदान के दरम्यान पूरे कामसूत्र की झांकी आपको मिल सकती है.परन्तु उस कामसूत्र में मनोविकृति ज्यादा होती है. ऐसा युवा जब बड़ा हो कर पैसा और ताक़त पा जाता है या माता पिता के पैसे की शान दिखाता है तो सबसे पहले उसका निशाना महिलाएं ही हुआ करती हैं. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि तकरीबन 3 से 5 फीसदी लोगों में सेक्स नशा की तरह होता है.ऐसे लोगों को सेक्सोहॉलिक कहा जाता है. यह नशा शराब, जुआ या फिर ड्रग्स के माफिक होता है.
पश्चिमी देशों की तरह हमारे देश में खुलकर सेक्स पर परिचर्चा आयोजित नहीं की जाती है. विदेशों में स्त्री एवं पुरुष आपसी सहमति से सेक्स का आनंद लेते हैं. हम यहाँ पश्चिम की तरह खुलापन तो अपनाने लगे हैं लेकिन खुले रूप मैं एक दूसरे की मर्जी से सेक्स को अभी भी बुरा कहते हैं. हम जिस समाज मैं रहते हैं वहाँ बलात्कार के दोषिओं को बड़ी बड़ी सजा देने की बात की जाती है लेकिन उसी समाज मैं बलात्कार की शिकार युवती की शादी भी नहीं हो पाती.
आम आदमी के मन में सेक्स के प्रति इतनी समझ तो होनी ही चाहिए की दोहरा चरित्र जीने की बजाए यौन जनित भावनाओं पर नियंत्रण रखने के लिए अपनी मानसिक क्षमता का विकास कर सके.
आज आप के समाज मैं औरतों को आज़ादी के नाम पे उनके कपडे उतारने की हिमायत करने वाले बहुत हैं और यह वही हैं जिन्होंने महिला को भोग की वस्तु बना रखा है और ऐसे ही बहका कर उनका शोषण करते हैं और वैश्यावृति जैसे दल दल मैं धकेल देते हैं और ध्यान रहे इस काम मैं बहुत से महिलाएं भी इन मर्दों का साथ देती हैं. आज़ादी नाम है समाज मैं इज्ज़त से जीने का ना कि अर्धनग्न घूमने का . यह मेरा शरीर है मैं जैसा चाहूँ वैसा रखूँ ,जो चाहूँ वो पहनू ,ना मर्द के लिए सही है और ना औरत के लिए, क्यों कि हम जंगलों मैं रहने वाले कम अक्ल जानवर नहीं समाज मैं रहने वाले अक्ल मंद इंसान हैं.
हम भी यदि सेक्स के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश करें, सही उम्र मैं सेक्स की शिक्षा घर से ही अपने बच्चों को दें ,उन्हें यौन जनित भावनाओं पर नियंत्रण रखना सिखाएं और आवश्यकता अनुसार सही उम्र मैं उन्हें सेक्स के लिए सही साथी दिला सकें तो शायद सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं.
और बलात्कार जैसा जुर्म साबित हो जाने पे कानून मैं उसकी सख्त से सख्त सजा के प्रावधान को लागु करने की आवश्यकता भी है. लेकिन यह भी सत्य है की बलात्कार किसने किया यह साबित करना आसान नहीं और सुबूतों के आभाव मैं अधिकतर बलात्कारी छूट जाता है .
इसलिए उन बातों पे अधिक ध्यान दिया जाए जिनसे बलात्कार , औरत के शोषण और उसपे हो रहे ज़ुल्म को रोका जा सके.