किसी भी समाज मैं यदि आप यह चाहते हैं की असंतुलन ना पैदा हो तो हमेशा काम इन्साफ से लेना चाहिए. आज महिलाओं को ऐसा लगता है की यह पुरुष प्रध...
किसी भी समाज मैं यदि आप यह चाहते हैं की असंतुलन ना पैदा हो तो हमेशा काम इन्साफ से लेना चाहिए. आज महिलाओं को ऐसा लगता है की यह पुरुष प्रधान समाज है और हमेशा महिलाओं की आज़ादी छीनने की कोशिश की जाती है. मेरा ख्याल है कि यह पूरा सच नहीं इसलिए कुछ सवालों को यहाँ सामने रख के इस लेख द्वारा सच समझने कि कोशिश कर रहा हूँ. आशा है आप सब भी अपने विचार सामने रखेंगे.
मैं इस बात से सहमत हूँ कि इस समाज मैं महिलाओं के साथ बहुत जगहों पे ज्यादती होती है, ज़ुल्म भी होता है और औरत मजबूरी की हालत मैं सब कुछ चुपचाप सहन करती है.इसका एक बड़ा कारण इस समाज मैं महिला को आत्मनिर्भर होने ना देना है. माता पिता दोनों अधिकतर घरों मैं लड़के को तो बहुत पढ़ते हैं लेकिन लड़कियों को जल्द ही किसी घर भेजने कि फ़िराक मैं लग जाते हैं. उसकी शिक्षा पे बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता.
एक बच्चा जब इस दुनिया मैं आता है तो सबसे पहले बड़ा होने पे देखता है की उसके पिता जी तो अपने घर मैं रहते हैं और माता जी अपना घर छोड के पिता जी के घर आ गयीं. वो यह भी देखता है की अमीर हो या ग़रीब बेटियां शादी के बाद घर छोड़ देती हैं. सवाल यह उठता है की बेटा क्यों नहीं शादी के बाद अपना घर छोड के अपने ससुराल जा बसता? क्यों बेटी को शादी बाद माता पिता अपना घर रहने को नहीं देते? क्यों शादी के बाद पत्नी को अपने पति का ही सर नेम लगाना होता है.
शादी ले लिए लड़की चाहिए लेकिन सभी माओं और उनके बेटों कि शर्त होती है कि लड़की कुंवारी होना चाहिए. फिर तलाक शुदा या बेवा से शादी कौन करेगा? मर्द शायद आज तक यह नहीं समझ पाया कि स्त्री की सुन्दरता उसके शरीर मैं नहीं किरदार मैं हुआ करती है. किसी की बीवी मर जाए तो भी रिश्तों की लाइन यही औरतें शादी के लिए लगा लेती हैं लेकिन किसी विधवा कि शादी आसानी से नहीं हुआ करती. क्यों?
इसी प्रकार बेटा यदि कमाऊ हो तो माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा बनता है लेकिन बेटी यदि कमाऊ भी है तो भी शादी के बाद उसकी कमाई पे उसको पढ़ने लिखाने वाले माँ बाप का अधिकार नहीं रह जाता? क्यों?
इन सबका कारण समाज का पुरुष प्रधान होना हो सकता है लेकिन जब बात औरत पे ज़ुल्म कि आती है तो यह भी सवाल उठता है कि क्या बहु पे ज़ुल्म करने वाली सास औरत नहीं होती या गर्भ मैं बेटी है इसका पता लगने पे भ्रूण हत्या के लिए उकसाने वाली सास औरत नहीं होती? क्या अपने बेटों के लिए केवल कुंवारी लड़की तलाशने वाली माँ औरत नहीं होती? कारण औरतों पे ज़ुल्म का कुछ भी हो लेकिन इसका हल निकालना आवश्यक है और जहाँ तक मैं समझता हूँ इसका हल बेटे और बेटी दोनों को एक जैसी शिक्षा देना और एक जैसा आत्मनिर्भर बनाने कि कोशिश करना है.
आश्चर्य की तो बात यह है की इस मुद्दे पे महिलाएं भी चुप या कम बोलती नज़र आती हैं, ना आज़ादी का मुद्दा उठता है और ना बराबरी की बात हुआ करती है? ऐसे बहुत से उदाहरण हैं और सभी का ज़िक्र यहाँ संभव नहीं. क्यूँ? सारी आज़ादी कुछ महिलाओं को कम वस्त्रों मैं घूमने और घर के बाहर केवल टाइम पास या ऐश ओ आराम के लिए नौकरी करने में ही नज़र आती है?
क्या अपनी ओलाद की अच्छी परवरिश करना, उसको दूध पिलाना, घर को संभालना और जब तक ज़रुरत ना हो नौकरी के बदले घर की जिम्मेदारियों को उठाना क्या ग़ुलामी कहलाती है? यह भी एक बड़ा सवाल है?
कुदरत ने मर्द और औरत को शारीरिक रूप से अलग अलग बनाया है. और उसी प्रकार समाज मैं संतुलित तरीके से रहने के लिए उनकी जिम्मेदारियां भी अलग अलग तै की गयी हैं. एक औरत यदि बच्चे को जन्म देती है तो दूध भी उसी मां को पिलाना होता है यह फैसला तो कुदरत का किया हुआ है . अब यदि यह फैसला समाज करता है की औरत बच्चों की परवरिश करे और पुरुष धन कमा के लाए तो इसमें बुराई तो मुझे नहीं दिखती. हाँ यदि किसी कारण वश औरत को नौकरी करने या व्यापार करने के लिए जाना पड़े तो इसमें भी कोई बुराई नहीं. लेकिन बच्चों को किसी और के सहारे छोड़ना , बच्चे को दूध भी ना पिलाना केवल इस लिए की बाहर नौकरी करना है आज़ादी के नाम पे कहाँ तक सही है.पुरुष और स्त्री को जैसा कुदरत ने उनका शरीर बनाया है उसके अनुसार अपना अपना फ़र्ज़ निभाते हुए एक दूसरे का साथ देते हुए जीवन गुज़ारना चाहिए.
अब दूसरा सवाल है की औरत और मर्द को कैसे कपडे पहनना चाहिए? समाज मैं जब कोई मर्द या औरत एक दूसरे से सोशल कोन्टक्ट बनाये तो इसका आधार किरदार की सुन्दरता को बनाना चाहिए ना कि शरीर कि सुन्दरता को. हम इस समाज मैं लोगों पे अपनी छाप छोड़ने के लिए अधिकतर अपने शरीर कि खूबसूरती को पेश करने कि कोशिश किया करते हैं और जाने अनजाने मैं मुसीबतों मैं घिर जाते हैं. क्यों आज एक औरत भी खुद को शरीर की सुन्दरता से तराजू मैं तौलती है? क्यों वो यह नहीं कहती की मेरा जिस्म नहीं मेरा किरदार देखो?
स्वच्छ शरीर,साफ़ कपडे और अच्छा किरदार किसी भी व्यक्ति की अच्छी पहचान बनाने के लिए काफी होता है. यदि औरत या मर्द एक दूसरे को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते हैं तो शरीर की सुन्दरता का सहारा लिया जाना चाहिए और फिर एक दूसरे के शरीर कि ज़रूरतों को पूरा भी करना चाहिए. यह सही नहीं कि आप शरीर दिखा के आकर्षित तो करें सभी को और पास आने पे बुरा भला कहें. मोर भी तभी नाचता है जब मोरनी को अपनी तरफ आकर्षित करना होता है.
पुरुष का जिस्म औरत को और औरत का जिस्म मर्द को आकर्षित करता है यह कुदरत का निजाम है.कुदरत के निजाम के खिलाफ जाके अपनी जिस्म कि नुमाएश करना और जाने अनजाने मैं एक दूसरे को अपनी और बेवजह आकर्षित करना औरत और मर्द दोनों के लिए सही नहीं है.
हमारे समाज कि सबसे अजीब बात तो यह है कि हम कहते यही हैं कि शारीरिक सम्बन्ध केवल शादी के बाद बनाया जाता है लेकिन १२-१४ साल कि उमर से ही अपनी शारीरिक सुन्दरता एक दूसरे को दिखा के जाने या अनजाने मैं आकर्षित किया करते हैं और नतीजे मैं २५-३०% युवा शादी के पहले ही शारीरिक सम्बन्ध बना चुके होते हैं और ४० से ५०% शारीरिक घनिष्ठता काएम कर चुके होते हैं.
यह आवश्यक नहीं कि केवल जिस्म कि खूबसूरती का दिखाना बलात्कार,कौटुम्बिक व्यभिचार,समलैंगिक रिश्ते इत्यादि का एक अकेला कारण है लेकिन इसका प्रतिशत सभी कारणों मैं सब से अधिक है.
जब भी जंग हुई है लूट के नाम पे या तो धन दौलत का नाम आया है या फिर औरत का नाम लिया गया. धन कि बात तो समझ मैं आयी लेकिन यह औरत को लूट का सामान किसने बना दिया? आज भी यही होता आ रहा है कि यदि कहीं डाका पड़े, चोरी हो या दुश्मनी निकाली जाए तो ख़बरों मैं धन का लूटा जाना और बलात्कार ही सुनने मैं आता है. शायद इसी कारण से हर इंसान अपने धन दौलत और अपने घर कि औरतों को बुरी नज़रों से बचा के रखने कि कोशिश करता है.
पुरुष का स्त्री के प्रति यह लगाव शायद इस कारण से भी हो सकता है कि यह भी सत्य है कि मर्द फितरती तौर पे polygamous होता है और औरत Monogamous. कारण कुछ भी हो लेकिन औरत कि मर्ज़ी के खिलाफ उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने कि कोशिश करना निंदनीय है और एक बड़ा जुर्म है. मर्द और औरत दोनों अपनी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक दूसरे कि मर्जी के साथ भी रस्ते निकाल सकते हैं.
शर्म कि बात है इस समाज के लिए कि जो औरत माँ ,बहन और बेटी के रूप मैं इज्ज़त पाती है उसी को लूट का सामान बना लिया है. अकेले और मजबूर देखा नहीं कि कभी प्यार के फरेब से कभी ज़ोर ज़बरदस्ती से और कभी लूट के उसको बेईज्ज़त किया.
यदि पुरुष यह चाहता है कि इस समाज मैं उसकी माँ बहन और बेटियां सुरछित रहें तो उसे अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना होगा और पर नारी पे बुरी नज़र डालने से भी खुद को रोकना होगा. पुरुषों को भी अपने शरीर की नुमाईश कि आज़ादी नहीं इसलिए ऐसे कपड़ों को पहनने से बचें जिस से पर नारी आकर्षित हो सकती हो.
महिलाओं को भी यह ख्याल रखना होगा कि औरत कोई नुमाइश कि चीज़ नहीं ,इसलिए अपनी बेटियों को जिस्म कि अनावश्यक नुमाइश से खुद को रोकें और अपने बहुओं को बेटी समझें ,भ्रूण हत्या जैसे पाप मैं भागीदारी ना करें. आज़ादी नाम है समाज मैं इज्ज़त से जीने का ना कि अर्धनग्न घूमने का . यह मेरा शरीर है मैं जैसा चाहूँ वैसा रखूँ ,जो चाहूँ वो पहनू ,ना मर्द के लिए सही है और ना औरत के लिए, क्यों कि हम जंगलों मैं रहने वाले कम अक्ल जानवर नहीं समाज मैं रहने वाले अक्ल मंद इंसान हैं.
मैंने अपने ब्लॉग बेज़बान पे एक पोल किया और नतीजा बेहतरीन आया. यह जान के ख़ुशी हुई कि 80% महिलाएं और पुरुष आज भी इस समाज मैं जानते है कि औरत कि इज्ज़त किस मैं है.
मेरा सवाल था कि सोशल वेबसाइट पे महिलाओं की तसवीरें डालना
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है .
मैं इस बात से सहमत हूँ कि इस समाज मैं महिलाओं के साथ बहुत जगहों पे ज्यादती होती है, ज़ुल्म भी होता है और औरत मजबूरी की हालत मैं सब कुछ चुपचाप सहन करती है.इसका एक बड़ा कारण इस समाज मैं महिला को आत्मनिर्भर होने ना देना है. माता पिता दोनों अधिकतर घरों मैं लड़के को तो बहुत पढ़ते हैं लेकिन लड़कियों को जल्द ही किसी घर भेजने कि फ़िराक मैं लग जाते हैं. उसकी शिक्षा पे बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता.
एक बच्चा जब इस दुनिया मैं आता है तो सबसे पहले बड़ा होने पे देखता है की उसके पिता जी तो अपने घर मैं रहते हैं और माता जी अपना घर छोड के पिता जी के घर आ गयीं. वो यह भी देखता है की अमीर हो या ग़रीब बेटियां शादी के बाद घर छोड़ देती हैं. सवाल यह उठता है की बेटा क्यों नहीं शादी के बाद अपना घर छोड के अपने ससुराल जा बसता? क्यों बेटी को शादी बाद माता पिता अपना घर रहने को नहीं देते? क्यों शादी के बाद पत्नी को अपने पति का ही सर नेम लगाना होता है.
शादी ले लिए लड़की चाहिए लेकिन सभी माओं और उनके बेटों कि शर्त होती है कि लड़की कुंवारी होना चाहिए. फिर तलाक शुदा या बेवा से शादी कौन करेगा? मर्द शायद आज तक यह नहीं समझ पाया कि स्त्री की सुन्दरता उसके शरीर मैं नहीं किरदार मैं हुआ करती है. किसी की बीवी मर जाए तो भी रिश्तों की लाइन यही औरतें शादी के लिए लगा लेती हैं लेकिन किसी विधवा कि शादी आसानी से नहीं हुआ करती. क्यों?
इसी प्रकार बेटा यदि कमाऊ हो तो माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा बनता है लेकिन बेटी यदि कमाऊ भी है तो भी शादी के बाद उसकी कमाई पे उसको पढ़ने लिखाने वाले माँ बाप का अधिकार नहीं रह जाता? क्यों?
इन सबका कारण समाज का पुरुष प्रधान होना हो सकता है लेकिन जब बात औरत पे ज़ुल्म कि आती है तो यह भी सवाल उठता है कि क्या बहु पे ज़ुल्म करने वाली सास औरत नहीं होती या गर्भ मैं बेटी है इसका पता लगने पे भ्रूण हत्या के लिए उकसाने वाली सास औरत नहीं होती? क्या अपने बेटों के लिए केवल कुंवारी लड़की तलाशने वाली माँ औरत नहीं होती? कारण औरतों पे ज़ुल्म का कुछ भी हो लेकिन इसका हल निकालना आवश्यक है और जहाँ तक मैं समझता हूँ इसका हल बेटे और बेटी दोनों को एक जैसी शिक्षा देना और एक जैसा आत्मनिर्भर बनाने कि कोशिश करना है.
आश्चर्य की तो बात यह है की इस मुद्दे पे महिलाएं भी चुप या कम बोलती नज़र आती हैं, ना आज़ादी का मुद्दा उठता है और ना बराबरी की बात हुआ करती है? ऐसे बहुत से उदाहरण हैं और सभी का ज़िक्र यहाँ संभव नहीं. क्यूँ? सारी आज़ादी कुछ महिलाओं को कम वस्त्रों मैं घूमने और घर के बाहर केवल टाइम पास या ऐश ओ आराम के लिए नौकरी करने में ही नज़र आती है?
क्या अपनी ओलाद की अच्छी परवरिश करना, उसको दूध पिलाना, घर को संभालना और जब तक ज़रुरत ना हो नौकरी के बदले घर की जिम्मेदारियों को उठाना क्या ग़ुलामी कहलाती है? यह भी एक बड़ा सवाल है?
कुदरत ने मर्द और औरत को शारीरिक रूप से अलग अलग बनाया है. और उसी प्रकार समाज मैं संतुलित तरीके से रहने के लिए उनकी जिम्मेदारियां भी अलग अलग तै की गयी हैं. एक औरत यदि बच्चे को जन्म देती है तो दूध भी उसी मां को पिलाना होता है यह फैसला तो कुदरत का किया हुआ है . अब यदि यह फैसला समाज करता है की औरत बच्चों की परवरिश करे और पुरुष धन कमा के लाए तो इसमें बुराई तो मुझे नहीं दिखती. हाँ यदि किसी कारण वश औरत को नौकरी करने या व्यापार करने के लिए जाना पड़े तो इसमें भी कोई बुराई नहीं. लेकिन बच्चों को किसी और के सहारे छोड़ना , बच्चे को दूध भी ना पिलाना केवल इस लिए की बाहर नौकरी करना है आज़ादी के नाम पे कहाँ तक सही है.पुरुष और स्त्री को जैसा कुदरत ने उनका शरीर बनाया है उसके अनुसार अपना अपना फ़र्ज़ निभाते हुए एक दूसरे का साथ देते हुए जीवन गुज़ारना चाहिए.
अब दूसरा सवाल है की औरत और मर्द को कैसे कपडे पहनना चाहिए? समाज मैं जब कोई मर्द या औरत एक दूसरे से सोशल कोन्टक्ट बनाये तो इसका आधार किरदार की सुन्दरता को बनाना चाहिए ना कि शरीर कि सुन्दरता को. हम इस समाज मैं लोगों पे अपनी छाप छोड़ने के लिए अधिकतर अपने शरीर कि खूबसूरती को पेश करने कि कोशिश किया करते हैं और जाने अनजाने मैं मुसीबतों मैं घिर जाते हैं. क्यों आज एक औरत भी खुद को शरीर की सुन्दरता से तराजू मैं तौलती है? क्यों वो यह नहीं कहती की मेरा जिस्म नहीं मेरा किरदार देखो?
स्वच्छ शरीर,साफ़ कपडे और अच्छा किरदार किसी भी व्यक्ति की अच्छी पहचान बनाने के लिए काफी होता है. यदि औरत या मर्द एक दूसरे को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते हैं तो शरीर की सुन्दरता का सहारा लिया जाना चाहिए और फिर एक दूसरे के शरीर कि ज़रूरतों को पूरा भी करना चाहिए. यह सही नहीं कि आप शरीर दिखा के आकर्षित तो करें सभी को और पास आने पे बुरा भला कहें. मोर भी तभी नाचता है जब मोरनी को अपनी तरफ आकर्षित करना होता है.
पुरुष का जिस्म औरत को और औरत का जिस्म मर्द को आकर्षित करता है यह कुदरत का निजाम है.कुदरत के निजाम के खिलाफ जाके अपनी जिस्म कि नुमाएश करना और जाने अनजाने मैं एक दूसरे को अपनी और बेवजह आकर्षित करना औरत और मर्द दोनों के लिए सही नहीं है.
हमारे समाज कि सबसे अजीब बात तो यह है कि हम कहते यही हैं कि शारीरिक सम्बन्ध केवल शादी के बाद बनाया जाता है लेकिन १२-१४ साल कि उमर से ही अपनी शारीरिक सुन्दरता एक दूसरे को दिखा के जाने या अनजाने मैं आकर्षित किया करते हैं और नतीजे मैं २५-३०% युवा शादी के पहले ही शारीरिक सम्बन्ध बना चुके होते हैं और ४० से ५०% शारीरिक घनिष्ठता काएम कर चुके होते हैं.
यह आवश्यक नहीं कि केवल जिस्म कि खूबसूरती का दिखाना बलात्कार,कौटुम्बिक व्यभिचार,समलैंगिक रिश्ते इत्यादि का एक अकेला कारण है लेकिन इसका प्रतिशत सभी कारणों मैं सब से अधिक है.
जब भी जंग हुई है लूट के नाम पे या तो धन दौलत का नाम आया है या फिर औरत का नाम लिया गया. धन कि बात तो समझ मैं आयी लेकिन यह औरत को लूट का सामान किसने बना दिया? आज भी यही होता आ रहा है कि यदि कहीं डाका पड़े, चोरी हो या दुश्मनी निकाली जाए तो ख़बरों मैं धन का लूटा जाना और बलात्कार ही सुनने मैं आता है. शायद इसी कारण से हर इंसान अपने धन दौलत और अपने घर कि औरतों को बुरी नज़रों से बचा के रखने कि कोशिश करता है.
पुरुष का स्त्री के प्रति यह लगाव शायद इस कारण से भी हो सकता है कि यह भी सत्य है कि मर्द फितरती तौर पे polygamous होता है और औरत Monogamous. कारण कुछ भी हो लेकिन औरत कि मर्ज़ी के खिलाफ उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने कि कोशिश करना निंदनीय है और एक बड़ा जुर्म है. मर्द और औरत दोनों अपनी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक दूसरे कि मर्जी के साथ भी रस्ते निकाल सकते हैं.
शर्म कि बात है इस समाज के लिए कि जो औरत माँ ,बहन और बेटी के रूप मैं इज्ज़त पाती है उसी को लूट का सामान बना लिया है. अकेले और मजबूर देखा नहीं कि कभी प्यार के फरेब से कभी ज़ोर ज़बरदस्ती से और कभी लूट के उसको बेईज्ज़त किया.
यदि पुरुष यह चाहता है कि इस समाज मैं उसकी माँ बहन और बेटियां सुरछित रहें तो उसे अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना होगा और पर नारी पे बुरी नज़र डालने से भी खुद को रोकना होगा. पुरुषों को भी अपने शरीर की नुमाईश कि आज़ादी नहीं इसलिए ऐसे कपड़ों को पहनने से बचें जिस से पर नारी आकर्षित हो सकती हो.
महिलाओं को भी यह ख्याल रखना होगा कि औरत कोई नुमाइश कि चीज़ नहीं ,इसलिए अपनी बेटियों को जिस्म कि अनावश्यक नुमाइश से खुद को रोकें और अपने बहुओं को बेटी समझें ,भ्रूण हत्या जैसे पाप मैं भागीदारी ना करें. आज़ादी नाम है समाज मैं इज्ज़त से जीने का ना कि अर्धनग्न घूमने का . यह मेरा शरीर है मैं जैसा चाहूँ वैसा रखूँ ,जो चाहूँ वो पहनू ,ना मर्द के लिए सही है और ना औरत के लिए, क्यों कि हम जंगलों मैं रहने वाले कम अक्ल जानवर नहीं समाज मैं रहने वाले अक्ल मंद इंसान हैं.
मैंने अपने ब्लॉग बेज़बान पे एक पोल किया और नतीजा बेहतरीन आया. यह जान के ख़ुशी हुई कि 80% महिलाएं और पुरुष आज भी इस समाज मैं जानते है कि औरत कि इज्ज़त किस मैं है.
मेरा सवाल था कि सोशल वेबसाइट पे महिलाओं की तसवीरें डालना
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है .