आज एक चर्चा के जवाबात पढ़ रहा था और उसमें हमारे एक मित्र ने यह लिखा की "मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने क लिए साथ काम कर सकते हैं। यह हो...
आज एक चर्चा के जवाबात पढ़ रहा था और उसमें हमारे एक मित्र ने यह लिखा की "मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने क लिए साथ काम कर सकते हैं। यह हो सकता है और होगा। जो इस के आड़े आएंगे, वे नहीं रहेंगे। न उन के जीवन रहेंगे और न ही उन के जीवन की कोई सुस्मृति।"
मुझे इसमें ना उनके जीवन रहेंगे समझ मैं नहीं आया क्यों कि जीवन तो किसी का भी हमेशा नहीं रहने वाला ,लेकिन हाँ बुरे लोगों की सुस्मृति नहीं रहेगी यह बात पक्की है.
बुरे लोगों की सुस्मृति नहीं रहेगी .. एस एम् मासूम
"बुरे लोगों की सुस्मृति नहीं रहेगी" शब्दों को पढने के बाद ना जाने कितने प्रसंग हक और बातिल की जंग के नज़रों के सामने घूमने लगे. हक वही है जो मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम करे. इंसान वही है जिसका किरदार ऐसा हो की उससे किसी इंसान को, समाज को फायदा पहुंचे. लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है यह समझना की हक़ किसे कहते हैं और बातिल (गलत) कौन है?सत्य की राह पे ,अच्छाई की राह पे कौन है और बुराई की राह पे ,या बातिल कौन है?
बातिल उसे नहीं कहते जिनके विचार, धर्म ,सभ्यता ,खाने पीने और जीने का अंदाज़ आप से अलग हो बल्कि बातिल उसे कहते हैं जो हमेशा अपने फाएदे की बात करता है और अपने फायदे के लिए अपने जैसे इंसानों पे ज़ुल्म भी करता है, नफरत भी फैलाता है और बेक़सूर उसपे इल्ज़ामात भी लगाता है.
किसी इंसान पे जब्र करना या दबाव डालना कि जो मैं मानता हूँ वही मानो, जो मैं कहता हूँ वही करो ज़ुल्म कहलाता है और यह ज़ुल्म दो इंसानों के बीच नफरत पैदा करता है. पति पत्नी और दोस्तों के रिश्तों मैं भी ऐसी ज़बरदस्ती से दरार पड जाया करती है.यह बातिल का और ज़ालिम का काम हुआ करता है.
जो हक पर होते हैं और यदि उनको को लगता है सामने वाला किसी गलत काम को अंजाम दे रहा है, तो वो अपना फ़र्ज़ समझ के एक बार सामने वाले को नसीहत करते हैं और यदि वो ना माने ,ना समझे तो उसपे दबाव नहीं डालते.क्योंकि किसी तरह की ज़ोर ज़बरदस्ती करना ज़ुल्म कहलाता है और नफरत को बढाता है.
यह सत्य है की इंसानियत के दुश्मन जालिमो की कोई सुस्मृति नहीं रहती और मज़लूमो को,जिनपे ज़ुल्म हुआ उनको हमेशा याद किया जाता है और यदि कोई शख्स हक के लिए लड़ते हुए ,किसी ज़ालिम का शिकार हो गया हो तो उसे इंसान और इंसानियत कभी नहीं भूल पाती और केवल इतना ही नहीं ऐसी शक्सियत के नक्शे क़दम पे सारी दुनिया चलने की कोशिश किया करती है. हिटलर , इदी अमीन, नादिर शाह ,यजीद हो या आज का बुश और ओसामा , इनके नाम को कोई भी अच्छे से याद नहीं करेगा क्योंकि इनके फैसलों के नतीजे मैं हजारों लाखों बेगुनाहों की जानें गयी हैं.
दुनिया काएम होने से लेकर हर युग मैं हमेशा न्याय -अन्याय, सत्य -असत्य ,नेकी-बड़ी ,अच्छाई-बुराई एव हक और बातिल के दरमियान जंग होतो रही है. जिसमें जीत हमेशा न्याय, सत्य ,नेकी, अच्छाई ,एवं हक की ही हुई है. चाहे उसे ताक़त से जीता गया हो या कुर्बानियां दी गयी हों.जिसके लिए इतिहास गवाह है.
हर साल हमारे हिन्दुस्तान मैं दसहरे पे रावण को जलाते और मुहर्रम मैं इमाम हुसैन (ए.स) की इंसानियत को बचाने के लिए दी गयी क़ुरबानी पे मातम करते इंसान दिखाई देते हैं जबकि यह सभी कई सौ साल पुरानी बातें हो चुकी हैं.यजीद और रावण के जीवन की सुस्मृति कोई बयान नहीं करता लेकिन राम और इमाम हुसैन (ए.स) के नक्शे क़दम पे चलने वाली लाखों और करोड़ों मैं मिलते हैं.
इसलिए हम सबको चाहिए की अपने इतिहास से सीखते हुए अच्छे इंसान बनें , इंसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए मिल कर काम करें और अमर रहें.