आज पाबला जी ने सुबह सुबह खबर दी की अमन का पैग़ाम का एक लेख़ पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में छपा. मैं तो खु...
आज पाबला जी ने सुबह सुबह खबर दी की अमन का पैग़ाम का एक लेख़ पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में छपा. मैं तो खुश हो गया सबसे पहले तो लगा तलाशने की कहीं ब्लॉग के साइड बार मैं कोई जगह हो तो इसे मेडल की तरह लगा दूं. और क्यों ना लगाऊं लेख तो भी असग़र अली इंजीनिअर के दाहिना हाथ के एक हिस्से ब्लॉग राग मैं छापा था. फिर ख्याल आया अरे अभी ३-४ दिन पहले मैं ही तो लेखक से पूछे बिना लेख़ लेने वालों और अपना लेख़ छपा देख खुश होने वालों को नसीहत दे रहा था और आज मेडल की तरह लगाने की बात सोंच रहा हूँ.
यह लेख़ जिन्होंने ने भी छापा है उसपे मुझे कोई एतराज़ नहीं क्योंकि मैं ने ही कहा है की यदि कोई लेख़ "समाज सुधार पे लिखा है तो उसे कोई भी ले के छाप दे एक सहयोग ही होगा"
लेकिन भाई जब आप कोई लेख़ लेते हैं तो उसके लेखक को खबर करना भी आवश्यक है और अधिक सही तो यह है की आप इजाज़त ले लें. यदि पाबला जी की खबर ना आती तो मुझे पता ही नहीं चलता की आपने मेरे नाम से क्या छापा और कब छापा.. दूसरे लेख़ को कहां से लिया गया यह बताना भी आवश्यक है. लेख़ लिया गया अमन का पैग़ाम से और लिखा गया हमारा जौनपुर. क्यों? यह बात समझ में नहीं आयी क्यों की यह लेख़ हमारा जौनपुर पे मौजूद नहीं. किसी लेखक का कोई भी लेख़ कहीं से भी उसकी शर्तों पे ही लेना चाहिए. मुझे आशा है की आगे से इन बातों का ध्यान रखा जाएगा.
और अब एक सवाल ब्लॉगर भाई बहनों से. ऐसा माना जाता है की अच्छे लेखों पे टिप्पणी अधिक आती है,क्योंकि वो अधिक पसंद किया जाता है. और ऐसा होना भी चाहिए अच्छा लिखने वाले के उत्साह को अवश्य बढ़ाना चाहिए. लेकिन यह बात समझ मैं नहीं ई की यह लेख़ यदि इतना अच्छा था तो मेरे पिछले लेख़ (हिंदी ब्लॉगजगत को निम्नस्तरीय ब्लोगिंग का लगा नशा ५४ टिप्पणी ) के मुकाबले इस पे केवल १९ टिप्पणी ही क्यों आयी?
और यदि सच मैं खराब था तो डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट ने क्यों छापा? इसका जवाब केवल आप सब को ही नहीं मुझे भी तलाशना है.
डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में छपे उस लेख़ को यहाँ पे देखा जा सकता है एस एम् मासूम और हमारा जौनपुर के नाम से.