किसी व्यक्ति पर ऐसी बुराई का आरोप लगाए जो उसमें न पाई जाती हो दोषारोपण कहलाता है. जो कोई किसी दूसरे पर दोषारोपण करता है अर्थात किसी को आरो...
किसी व्यक्ति पर ऐसी बुराई का आरोप लगाए जो उसमें न पाई जाती हो दोषारोपण कहलाता है. जो कोई किसी दूसरे पर दोषारोपण करता है अर्थात किसी को आरोपित करता है वह जहां एक ओर दूसरों को क्षति पहुंचाता है वहीं वह अपना भी बुरा करता है. ऐसा व्यक्ति अपनी आत्मा को भी पापों से दूषित करता है.
आज के समय मैं दोषारोपण एक आम सी बात है और खासतौर पे नेताओं का तो यह रोजाना का काम है. तोहमत या दोषारोपण शीघ्र या विलंब से सामाजिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाता है. यह कृत्य समाजिक न्याय को समाप्त कर देता है. असत्य को सत्य और सत्य को असत्य दर्शाता है. जिस समाज में दोषारोपण सार्वजनिक हो जाए उस समाज में किसी के प्रति अच्छे विचार या सदभावना, भ्रांति में परिवर्तित हो जाते हैं और ऐसे समाज में एक-दूसरे के प्रति विश्वास भी समाप्त हो जाता है और वहां पर निरंकुशता के वातावरण की भूमिका प्रशस्त होने लगती है. इस प्रकार के समाज में प्रत्येक व्यक्ति में दूसरों पर बड़ी सरलता से दोषारोपण या झूठा आरोप लगाने का साहस उत्पन्न हो जाता है. ऐसा समाज जिसके भीतर झूठा आरोप लगाना आम सी बात हो वहां पर मित्रता का स्थान द्वेष और शत्रुता ले लेती है और इस प्रकार के समाज में लोग अलग-थलग और एक-दूसरे से बिना संपर्क के जीवन व्यतीत करते हैं. इसका कारण यह है कि उनके बीच प्रेम समाप्त हो जाता है और हर व्यक्ति में यह चिंता पाई जाती है कि कहीं वह किसी झूठे आरोप का शिकार न बन जाए.
दोषारोपण या झूठा आरोप लगाना दो प्रकार का होता है. कभी तो ऐसा होता कि एक व्यक्ति पूरी जानकारी के साथ किसी व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाता है. इसका अर्थ यह है कि उसे भलि भांति यह ज्ञात होता कि अमुक व्यक्ति में वह बुराई या कमी नहीं पाई जाती जिसे वह उससे संबन्धित कर रहा है इसके बावजूद वह उस कमी या पाप को उस व्यक्ति से संबन्धित बताता है और कभी इससे भी बुरी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
होता यह है कि झूठा आरोप लगाने वाला व्यक्ति कोई पाप करता है और उस पाप के दण्ड से स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए वह उस पाप का दोष किसी अन्य पर मढ़ देता है.
कभी ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति केवल अज्ञानता या शंका के आधार पर किसी दूसरे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाता है। दोषारोपण की जड़ या इसका मूल कारण दूसरों के प्रति भ्रांति ही है जिसके कारण कुछ लोग दूसरों के प्रत्येक कार्य को बुरी नज़र से देखते हैं। अधिक्तर तोहमत या दोषारोपण का कारण अज्ञानता या भ्रांति होती है.
इसी संबन्ध में ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है कि हे ईमान वालों बहुत सी भ्रांतियों से बचो क्योंकि कुछ भ्रांतियां पाप होती हैं। सूरए होजोरात-आयत १२
यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि मन में शंका या संशय का उत्पन्न होना व्यक्ति के अपने अधिकार में नहीं है. इसलिए हर इंसान के लिए यह भी आवश्यक है वो बदनामी के स्थान, बुरे लोगों कि संगत से बचे और किसी तरह के शक का शिकार होने पे ईमानदारी से सामने वाले के शक को दूर करने कि कोशिश भी करे.
इस प्रकार यह बात सामने आती है कि यदि समाज मैं असंतुलन नहीं पैदा करना है, नफरतों कि दीवारें नहीं उठानी हैं तो किसी पे झूठे इलज़ाम लगाने से बचें और यह भी आवश्यक है कि जो शख्स यह चाहता है कि उसके बारे मैं लोगों को शक ना पैदा हो ऐसे इंसान को बुरे लोगों और पापियों की संगति से बचना चाहिए और किसी का उसके गलत कामो मैं साथ नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के साथ संबन्ध रखने की स्थिति में लोगों में उनके प्रति भ्रांतियां उत्पन्न होंगी जिसके परिणाम स्वरूप उनपर झूठ आरोप लग सकते हैं.
जो स्वयं को गलत संगत मैं रखेगा उसे उस व्यक्ति को बुरा नहीं कहना चाहिए जो उसके बारे में किसी भ्रांति में ग्रस्त हो जाए.
आज के समय मैं दोषारोपण एक आम सी बात है और खासतौर पे नेताओं का तो यह रोजाना का काम है. तोहमत या दोषारोपण शीघ्र या विलंब से सामाजिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाता है. यह कृत्य समाजिक न्याय को समाप्त कर देता है. असत्य को सत्य और सत्य को असत्य दर्शाता है. जिस समाज में दोषारोपण सार्वजनिक हो जाए उस समाज में किसी के प्रति अच्छे विचार या सदभावना, भ्रांति में परिवर्तित हो जाते हैं और ऐसे समाज में एक-दूसरे के प्रति विश्वास भी समाप्त हो जाता है और वहां पर निरंकुशता के वातावरण की भूमिका प्रशस्त होने लगती है. इस प्रकार के समाज में प्रत्येक व्यक्ति में दूसरों पर बड़ी सरलता से दोषारोपण या झूठा आरोप लगाने का साहस उत्पन्न हो जाता है. ऐसा समाज जिसके भीतर झूठा आरोप लगाना आम सी बात हो वहां पर मित्रता का स्थान द्वेष और शत्रुता ले लेती है और इस प्रकार के समाज में लोग अलग-थलग और एक-दूसरे से बिना संपर्क के जीवन व्यतीत करते हैं. इसका कारण यह है कि उनके बीच प्रेम समाप्त हो जाता है और हर व्यक्ति में यह चिंता पाई जाती है कि कहीं वह किसी झूठे आरोप का शिकार न बन जाए.
दोषारोपण या झूठा आरोप लगाना दो प्रकार का होता है. कभी तो ऐसा होता कि एक व्यक्ति पूरी जानकारी के साथ किसी व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाता है. इसका अर्थ यह है कि उसे भलि भांति यह ज्ञात होता कि अमुक व्यक्ति में वह बुराई या कमी नहीं पाई जाती जिसे वह उससे संबन्धित कर रहा है इसके बावजूद वह उस कमी या पाप को उस व्यक्ति से संबन्धित बताता है और कभी इससे भी बुरी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
होता यह है कि झूठा आरोप लगाने वाला व्यक्ति कोई पाप करता है और उस पाप के दण्ड से स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए वह उस पाप का दोष किसी अन्य पर मढ़ देता है.
कभी ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति केवल अज्ञानता या शंका के आधार पर किसी दूसरे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाता है। दोषारोपण की जड़ या इसका मूल कारण दूसरों के प्रति भ्रांति ही है जिसके कारण कुछ लोग दूसरों के प्रत्येक कार्य को बुरी नज़र से देखते हैं। अधिक्तर तोहमत या दोषारोपण का कारण अज्ञानता या भ्रांति होती है.
इसी संबन्ध में ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है कि हे ईमान वालों बहुत सी भ्रांतियों से बचो क्योंकि कुछ भ्रांतियां पाप होती हैं। सूरए होजोरात-आयत १२
यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि मन में शंका या संशय का उत्पन्न होना व्यक्ति के अपने अधिकार में नहीं है. इसलिए हर इंसान के लिए यह भी आवश्यक है वो बदनामी के स्थान, बुरे लोगों कि संगत से बचे और किसी तरह के शक का शिकार होने पे ईमानदारी से सामने वाले के शक को दूर करने कि कोशिश भी करे.
इस प्रकार यह बात सामने आती है कि यदि समाज मैं असंतुलन नहीं पैदा करना है, नफरतों कि दीवारें नहीं उठानी हैं तो किसी पे झूठे इलज़ाम लगाने से बचें और यह भी आवश्यक है कि जो शख्स यह चाहता है कि उसके बारे मैं लोगों को शक ना पैदा हो ऐसे इंसान को बुरे लोगों और पापियों की संगति से बचना चाहिए और किसी का उसके गलत कामो मैं साथ नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के साथ संबन्ध रखने की स्थिति में लोगों में उनके प्रति भ्रांतियां उत्पन्न होंगी जिसके परिणाम स्वरूप उनपर झूठ आरोप लग सकते हैं.
जो स्वयं को गलत संगत मैं रखेगा उसे उस व्यक्ति को बुरा नहीं कहना चाहिए जो उसके बारे में किसी भ्रांति में ग्रस्त हो जाए.