सम्मान हर एक को अच्छा लगता है और तिरस्कार हर एक को बुरा ? और यह दोनों हमारे खुद के ही हाथ मैं है. सम्मान और तिरष्कार कर्म के प्रतिफल है...
सम्मान हर एक को अच्छा लगता है और तिरस्कार हर एक को बुरा ? और यह दोनों हमारे खुद के ही हाथ मैं है. सम्मान और तिरष्कार कर्म के प्रतिफल है. आप जैसा कर्म करेंगे वैसा ही नतीजा आएगा.
इस समाज मैं मिलने वाला सम्मान और तिरस्कार दो के दो अलग अलग प्रकार हैं. एक सम्मान वो होता है जो आप के अच्छे काम ,मेहनत और लगन के नतीजे मैं मिलता है और यह स्थाई हुआ करता है. दूसरा सम्मान वो होता है जो आप को दिया जाता है आप मैं काबलियत ना होने के बाद भी ,केवल आप को खुश करने के लिए या आप से अपना काम निकालने के लिए. यह सम्मान अस्थायी हुआ करता है.
इसी प्रकार तिरस्कार के भी दो प्रकार हुआ करते हैं. एक वो जो आप को आप के बुरे काम के नतीजे मैं मिलता है और यह भी उस समय तक स्थाई हुआ करता है जब तक आप खुद को पूरी तरह से ना बदल लें. और दूसरा तिरस्कार राजनितिक कारणों से हुआ करता है या आप कि अच्छाइयों के डर से कुछ बुरे लोग किया करते हैं. यह अस्थाई हुआ करता है क्यों कि सत्य को अधिक दिनों तक छिपाना संभव नहीं होता.
यदि आप ब्लॉगर हैं और लिखते दिल से हैं तो यकीनन अच्छा ही लिखेंगे. और अच्छा लिखते हैं तो सम्मान आप को देर से ही सही लेकिन खुद लोग देंगे. आप को अपने लेख़ इधर उधर किसी नयी अखबार या पत्रिका में भेजने कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी. दूसरे तो आप का लेख़ छाप कर अपनी ना चलने वाली पत्रिका या अखबार चला लेंगे, पैसा भी बना लेंगे, लेकिन आप के हाथ क्या लगा ? कुछ समय कि शान कि इस पत्रिका या अखबार जिसको आपके ब्लॉग से भी कम लोग पढ़ते हैं, उसमें आप का लेख़ छपा? क्या आपने यह कभी सोंचा कि कुछ समय कि झूटी शान के नाम पे आप इस्तेमाल हो रहे हैं?
कल मैंने अपने लेख़ "जब किसी ब्लोगर का लेख़ अखबारों मैं छपता है. : में लिखा था कि बिना पारश्रमिक पाए ब्लॉगर अपने लेख़ अखबार या पत्रिका मैं छपने पे क्यों खुश हो जाता है?
किसी ब्लॉगर से बात चीत के दौरान उन्होंने बताया कि ब्लॉगजगत मैं अधिकतर वो लोग लिखते हैं ,जिनकी लेखनी को जीवन मैं कोई पहचान नहीं मिल सकी. किसी ने उनको नहीं पढ़ा? इस लिए जब उनके लेख़ किसी छोटी भी पत्रिका या अखबार मैं छप जाता है तो वो खुश हो जाते हैं. मैं अपने इन ब्लॉगर कि बात से सहमत भी हूँ और यह भी मानता हूँ कि यकीनन यह इन ब्लॉगर के लिए यह ख़ुशी कि बात है.
मैं इस बात से भी इनकार नहीं करता कि इंसान शान और नाम के लिए बहुत कुछ खोने को भी तैयार रहता है. लेकिन अक़लमंद इस्तेमाल हो कर नाम और शोहरत नहीं कमाता क्यों कि यह जल्द ही भुला दिया जाता है
लेकिन यह सलाह भी देना चाहूँगा कि ..
यदि आप कि लेखनी को अच्छा लिखने के बाद भी अभी तक कोई पहचान नहीं मिली और ब्लॉगजगत का हिस्सा बन गए हैं. तो थोडा और सब्र करें, सम्मान स्वम चल के आप के पास आएगा. और आपके लेखों को बड़ी पत्रिकाओं और अख़बारों मैं पारश्रमिक के साथ स्थान अवश्य मिलेगा.
बड़े अखबार या पत्रिका को केवल लेख़ नहीं बल्कि अच्छे लेखों कि आवश्यकता हुआ करती है और सही लेखक मिलने पे पारश्रमिक भी दिया जाता है. यहाँ तक कि विषय दे के लिखने को भी कहा जाता है.
अब यह आप के ऊपर है कि आप स्थाई सम्मान पाना चाहते हैं या अस्थाई.
इस समाज मैं मिलने वाला सम्मान और तिरस्कार दो के दो अलग अलग प्रकार हैं. एक सम्मान वो होता है जो आप के अच्छे काम ,मेहनत और लगन के नतीजे मैं मिलता है और यह स्थाई हुआ करता है. दूसरा सम्मान वो होता है जो आप को दिया जाता है आप मैं काबलियत ना होने के बाद भी ,केवल आप को खुश करने के लिए या आप से अपना काम निकालने के लिए. यह सम्मान अस्थायी हुआ करता है.
इसी प्रकार तिरस्कार के भी दो प्रकार हुआ करते हैं. एक वो जो आप को आप के बुरे काम के नतीजे मैं मिलता है और यह भी उस समय तक स्थाई हुआ करता है जब तक आप खुद को पूरी तरह से ना बदल लें. और दूसरा तिरस्कार राजनितिक कारणों से हुआ करता है या आप कि अच्छाइयों के डर से कुछ बुरे लोग किया करते हैं. यह अस्थाई हुआ करता है क्यों कि सत्य को अधिक दिनों तक छिपाना संभव नहीं होता.
यदि आप ब्लॉगर हैं और लिखते दिल से हैं तो यकीनन अच्छा ही लिखेंगे. और अच्छा लिखते हैं तो सम्मान आप को देर से ही सही लेकिन खुद लोग देंगे. आप को अपने लेख़ इधर उधर किसी नयी अखबार या पत्रिका में भेजने कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी. दूसरे तो आप का लेख़ छाप कर अपनी ना चलने वाली पत्रिका या अखबार चला लेंगे, पैसा भी बना लेंगे, लेकिन आप के हाथ क्या लगा ? कुछ समय कि शान कि इस पत्रिका या अखबार जिसको आपके ब्लॉग से भी कम लोग पढ़ते हैं, उसमें आप का लेख़ छपा? क्या आपने यह कभी सोंचा कि कुछ समय कि झूटी शान के नाम पे आप इस्तेमाल हो रहे हैं?
कल मैंने अपने लेख़ "जब किसी ब्लोगर का लेख़ अखबारों मैं छपता है. : में लिखा था कि बिना पारश्रमिक पाए ब्लॉगर अपने लेख़ अखबार या पत्रिका मैं छपने पे क्यों खुश हो जाता है?
किसी ब्लॉगर से बात चीत के दौरान उन्होंने बताया कि ब्लॉगजगत मैं अधिकतर वो लोग लिखते हैं ,जिनकी लेखनी को जीवन मैं कोई पहचान नहीं मिल सकी. किसी ने उनको नहीं पढ़ा? इस लिए जब उनके लेख़ किसी छोटी भी पत्रिका या अखबार मैं छप जाता है तो वो खुश हो जाते हैं. मैं अपने इन ब्लॉगर कि बात से सहमत भी हूँ और यह भी मानता हूँ कि यकीनन यह इन ब्लॉगर के लिए यह ख़ुशी कि बात है.
मैं इस बात से भी इनकार नहीं करता कि इंसान शान और नाम के लिए बहुत कुछ खोने को भी तैयार रहता है. लेकिन अक़लमंद इस्तेमाल हो कर नाम और शोहरत नहीं कमाता क्यों कि यह जल्द ही भुला दिया जाता है
लेकिन यह सलाह भी देना चाहूँगा कि ..
यदि आप कि लेखनी को अच्छा लिखने के बाद भी अभी तक कोई पहचान नहीं मिली और ब्लॉगजगत का हिस्सा बन गए हैं. तो थोडा और सब्र करें, सम्मान स्वम चल के आप के पास आएगा. और आपके लेखों को बड़ी पत्रिकाओं और अख़बारों मैं पारश्रमिक के साथ स्थान अवश्य मिलेगा.
बड़े अखबार या पत्रिका को केवल लेख़ नहीं बल्कि अच्छे लेखों कि आवश्यकता हुआ करती है और सही लेखक मिलने पे पारश्रमिक भी दिया जाता है. यहाँ तक कि विषय दे के लिखने को भी कहा जाता है.
हाँ यदि आप स्वम जानते हैं कि आप अच्छा नहीं लिखते तो आप के लिए यही सही होगा कि किसी भी नयी या गुमनाम या १-२ महीने मैं बंद हो जाने वाली पत्रिका या अखबार मैं अपने लेख़ अवश्य भेजें. हो सकता है आप को प्रमाण पत्र भी मिल जाए और तस्वीर भी खीच जाए प्रमाण पत्र लेते हुए. .आप का नहीं तो उस बिचारे अखबार या पत्रिका वाले का तो भला होगा और १-२ महीने कि शान भी आप के हाथ लगेगी.
उचित तो यही है कि अच्छे से अच्छा लिखने कि कोशिश करें और स्थाई सम्मान को पाने कि कोशिश करें. इसी मैं आप की भी और ब्लॉगजगत की भी उन्नति है.
अब यह आप के ऊपर है कि आप स्थाई सम्मान पाना चाहते हैं या अस्थाई.