जब किसी ब्लॉगर का लेख़ अखबारों मैं छपता है, तो वो कितना खुश होता है इसका अंदाज़ा आप ऐसी बहुत सी पोस्ट को पढ़ कर लगा सकते हैं जहाँ ब्लॉ...
जब किसी ब्लॉगर का लेख़ अखबारों मैं छपता है, तो वो कितना खुश होता है इसका अंदाज़ा आप ऐसी बहुत सी पोस्ट को पढ़ कर लगा सकते हैं जहाँ ब्लॉगर ने अपने लेखों की किसी समाचार पत्र मैं छपने पे ख़ुशी ज़ाहिर की है. कुछ ने तो अपने साइड बार मैं ही अख़बार की कटिंग लगा रखी है जैसे उसका लेख़ ना छपा कोई मेडल मिला है.
लेकिन ऐसा क्यों है ?
एक समय था जब अंतरजाल पे ब्लोगिंग जैसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी लोगों के पास अपनी लेखन की प्रतिभा को लोगों तक पहुँचाने का केवल एक ही माध्यम हुआ करता था ,अखबार. उस समय लोग अख़बारों के दफ्तर के चक्कर लगाया करते थे अपने लेख़ और कविताएँ ले कर.
आज समय बदल गया है और आज अखबार से तेज़ भी तेज़ रफ़्तार का ब्लोगिंग नामक हथियार आप के पास है ,फिर भी हम अख़बार और पत्रिकाओं मैं बिना पारश्रमिक मिले अपने छपे लेख़ पे खुश होते हैं हम ?
एक अखबार वाला घर बैठे इसी ब्लॉगजगत से कुछ लेख़ चुनता है, आज्ञा भी नहीं लेता, पारश्रमिक भी नहीं देता, उस लेख़ मैं कही बातों की ज़िम्मेदारी भी नहीं लेता, क्यों की उसको अपने अखबार के लिए कुछ मसाला चाहिए और वो भी ब्लॉगर की जिमेदारी पर. और ब्लॉगर यह पूछने की जगह कि आपने मुझ से पुछा क्यों नहीं अखबार मैं छापने के पहले ,या मुझे कोई पारश्रमिक क्यों नहीं दिया गया, खुश हो जाता है ?
क्या यह इस बात कि ओर इशारा नहीं करता कि आज ब्लॉगर स्वम यह एलान कर रहा है कि अख़बारों कि अहमियत उसके ब्लॉग से अधिक है. जबकि आप के ब्लॉग मैं छपे लेख़ पूरे विश्व मैं पढ़े जाते हैं और अखबार केवल एक इलाके मैं. बहुत बार तो ऐसे ऐसे अख़बारों मैं अपने ब्लॉग के लेख़ देख ब्लॉगर खुश होते हैं जो ५००-६०० प्रति कि निकालता है और इलाकाई अखबार है.
कितनी बार तो ऐसा भी देखने मैं आया है कि किसी ब्लॉगर का लेख़ या कविता ,किसी अखबार या पत्रिका मैं काट छांट के साथ प्रस्तुत कर दी जाती है. यह अखबार वाले , पत्रिका वाले आप के लेखों और कविताओं को छाप के पैसे कमाते हैं. यह बात हर ब्लॉगर जानता है. तो उसके ब्लॉग से चुराए लेखों को अख़बारों मैं देख खुश क्यों होता है? अरे पैसे ही कमाने हैं किसी अखबार या पत्रिका वाले को किसी ब्लॉगर कि मेहनत को पेश करके तो मिल के कमाओ , खुद भी कमाओ और ब्लॉगर को भी उसका हक दो. लेकिन संभव तभी है जब ब्लॉगर अपनी अहमियत को समझेगा ?
कोई भी अखबार या पत्रिका वाला अपनी ब्लॉग चर्चा मैं किसी ब्लॉग या ब्लॉगर कि चर्चा तो कर सकता है लेकिन उसको लेख़ या कविता छापने के लिए ब्लॉगर कि इजाज़त लेनी चाहिए और पारश्रमिक कि भी बात पूछनी चाहिए और यह तब होगा जब हिंदी ब्लॉगजगत जागरूक होगा और अपनी अहमियत को समझेगा.