घबराएं नहीं ,मैं कोई गाना या कविता सुनाने नहीं जा रहा. बस एक ख्याल सा आया दिल मैं जो आप सब के साथ बाँटने जा रहा हूँ. इस बार गर्मियों की...
घबराएं नहीं ,मैं कोई गाना या कविता सुनाने नहीं जा रहा. बस एक ख्याल सा आया दिल मैं जो आप सब के साथ बाँटने जा रहा हूँ. इस बार गर्मियों की छुट्टी अपने वतन मैं बिताने गया. खुद को सभी कामों से मुक्त कर के ,पूरा एक महीना अपने वतन के नाम किया. कहने को तो जौनपुर मेरा वतन है लेकिन मैं कभी अपने वतन मैं २ महीने से अधिक एक साथ नहीं रहा जबकि जाता हर वर्ष कई बार था. . पूरी ज़िंदगी सफ़र मैं ही गुज़र गयी .
वाराणसी, लखनऊ ,प्रतापगढ़, इत्यादि छोटे बड़े शहरों से होता हुआ पिछले २५ साल से मुंबई को कर्म भूमि बना रखा है. इसी कारण मैं अपने वतन जौनपुर से मुहब्बत तो करता हूँ, वहाँ के बारे मैं बहुत कुछ जानता भी हूँ लेकिन वहाँ के लोगों की ज़हनियत और ताज़ा राजनीती, जोड़ तोड़ से बहुत अधिक वाकिफ नहीं. अब २५ साल मुंबई मैं गुजरने के बाद मेरी सोंच और वहाँ के लोगों की सोंच मैं एक बड़ा अंतर नज़र आता है. ज़मींदार परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वहाँ के लोग मुझे जानते हैं इस कारण जब मैं इस बार उनके बीच पहुंचा तो उन्होंने इतना प्यार दिया जिसको पा के मैं धन्य हो गया. शायद मैं उनके प्यार का क़र्ज़ चाहते हुए भी कभी ना उतार पाऊँ.
वतन से लौटे १० दिन गुज़र गए लेकिन अभी भी लोगों के फ़ोन आते रहते हैं ,हाल चाल जानने के लिए. पूछते हैं फिर कब आना होगा? सच तो यही है की अब आना जाना लगा ही रहेगा क्यूँ की इस बार मुझे यह एहसास हुआ की " हज़ार सामाँ हो कैस लेकिन, सफ़र सफ़र है वतन वतन है."
बावजूद अपने वतन के लोगों से मिली इतनी मुहब्बत के ,मुझे एक बात ने हमेशा परेशान किया और वो था मेरा वहाँ के सभी समूह, धर्म , और इलाके के लोगों से एक जैसा प्यार से मिलना जुलना . जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए ,की आदत ने मुझे ब्लॉगजगत मैं भी शुरू के दौर मैं बहुत परेशान किया था और अब अपने जौनपुरिओं की हरकतें परेशान करती हैं.
यदि आप यह नहीं जानते किसी समाज मैं , कौन सा इंसान किस गुट का है, किस का साथी है, किसकी की से बनती है, किस से किसकी दोस्ती है, किस से दुश्मनी है और आप उस समाज मैं उठने बैठने लगें तो यकीन जानिए ,लोगों के बदलते मिजाज़ आप के साथ आपकी समझ मैं नहीं आएंगे .
लोग आप से मिलना तो चाहते हैं लेकिन साथ साथ यह भी चाहते है की उन्हें जो लोग ना पसंद हैं आप उनसे दूरी बना के रखें.
मुझे भी इस परेशानी का सामना करना पड़ा और पूरे समय पड़ा रहामैं दुविधा में पड़ा रहा ,क्या किया जाए, मुझसे सभी अच्छे से मिलते हैं तब क्यों और कैसे किसी एक गुट से बेवजह दूरी बना ली जाए?
इस लेख़ के ज़रिये मैं अपने सभी चाहने वालों को एक पैग़ाम देना चाहता हूँ कि हो सकता है आप लोगों की आपसी रंजिश, के कारण सही हों और आप की नाराज़गी भी एक दूसरे से सही हो. हो सकता है उनमें से कुछ मुझे इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हों लेकिन अभी तक तो सभी का प्रेम मेरे साथ एक समान है. मैं कैसे किसी एक के साथ अपने रिश्ते, उनका प्यार भूलते हुए तोड़ सकता हूँ. मेरे लिए सभी अपने हैं.
वक़्त खुद यह तै कर देगा कि कौन मेरा हमदर्द है और कौन मेरे हक मैं अच्छा नहीं. आशा है कि आप सभी मेरे व्यवहार को ,मेरे प्रेम को देखते हुए मेरे साथ रिश्ते बताएंगे ना कि मुझसे मिलने वालों को देख कर मुझसे कुर्बत या दूरी बनाएंगे. हमारे ब्लॉगजगत के लोगों को अब एक वर्ष पूरा होने पे मेरा मिजाज़ "जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए" सभी ब्लोगर्स की समझ मैं अब आने लगा है. आशा है हमारे जौनपुरी भाइयों को भी कुछ दिन मैं इसका यकीन होने लगेगा.
महावीर शर्मा जी की कुछ पंकियां याद आ रही हैं और इनके साथ ही अपनी बात को आज के लिए यंही पे विराम देता हूँ.
जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए
खो गई वो सौंधि सौंधी देश की मिट्टी कहां ?
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए
वतन से जुडी अपने पुरानी यादों को समेटते हुए, अपने वतन मैं एक महीना कैसे गुज़रा अगली कड़ी मैं...
वाराणसी, लखनऊ ,प्रतापगढ़, इत्यादि छोटे बड़े शहरों से होता हुआ पिछले २५ साल से मुंबई को कर्म भूमि बना रखा है. इसी कारण मैं अपने वतन जौनपुर से मुहब्बत तो करता हूँ, वहाँ के बारे मैं बहुत कुछ जानता भी हूँ लेकिन वहाँ के लोगों की ज़हनियत और ताज़ा राजनीती, जोड़ तोड़ से बहुत अधिक वाकिफ नहीं. अब २५ साल मुंबई मैं गुजरने के बाद मेरी सोंच और वहाँ के लोगों की सोंच मैं एक बड़ा अंतर नज़र आता है. ज़मींदार परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वहाँ के लोग मुझे जानते हैं इस कारण जब मैं इस बार उनके बीच पहुंचा तो उन्होंने इतना प्यार दिया जिसको पा के मैं धन्य हो गया. शायद मैं उनके प्यार का क़र्ज़ चाहते हुए भी कभी ना उतार पाऊँ.
वतन से लौटे १० दिन गुज़र गए लेकिन अभी भी लोगों के फ़ोन आते रहते हैं ,हाल चाल जानने के लिए. पूछते हैं फिर कब आना होगा? सच तो यही है की अब आना जाना लगा ही रहेगा क्यूँ की इस बार मुझे यह एहसास हुआ की " हज़ार सामाँ हो कैस लेकिन, सफ़र सफ़र है वतन वतन है."
बावजूद अपने वतन के लोगों से मिली इतनी मुहब्बत के ,मुझे एक बात ने हमेशा परेशान किया और वो था मेरा वहाँ के सभी समूह, धर्म , और इलाके के लोगों से एक जैसा प्यार से मिलना जुलना . जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए ,की आदत ने मुझे ब्लॉगजगत मैं भी शुरू के दौर मैं बहुत परेशान किया था और अब अपने जौनपुरिओं की हरकतें परेशान करती हैं.
यदि आप यह नहीं जानते किसी समाज मैं , कौन सा इंसान किस गुट का है, किस का साथी है, किसकी की से बनती है, किस से किसकी दोस्ती है, किस से दुश्मनी है और आप उस समाज मैं उठने बैठने लगें तो यकीन जानिए ,लोगों के बदलते मिजाज़ आप के साथ आपकी समझ मैं नहीं आएंगे .
लोग आप से मिलना तो चाहते हैं लेकिन साथ साथ यह भी चाहते है की उन्हें जो लोग ना पसंद हैं आप उनसे दूरी बना के रखें.
मुझे भी इस परेशानी का सामना करना पड़ा और पूरे समय पड़ा रहामैं दुविधा में पड़ा रहा ,क्या किया जाए, मुझसे सभी अच्छे से मिलते हैं तब क्यों और कैसे किसी एक गुट से बेवजह दूरी बना ली जाए?
इस लेख़ के ज़रिये मैं अपने सभी चाहने वालों को एक पैग़ाम देना चाहता हूँ कि हो सकता है आप लोगों की आपसी रंजिश, के कारण सही हों और आप की नाराज़गी भी एक दूसरे से सही हो. हो सकता है उनमें से कुछ मुझे इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हों लेकिन अभी तक तो सभी का प्रेम मेरे साथ एक समान है. मैं कैसे किसी एक के साथ अपने रिश्ते, उनका प्यार भूलते हुए तोड़ सकता हूँ. मेरे लिए सभी अपने हैं.
वक़्त खुद यह तै कर देगा कि कौन मेरा हमदर्द है और कौन मेरे हक मैं अच्छा नहीं. आशा है कि आप सभी मेरे व्यवहार को ,मेरे प्रेम को देखते हुए मेरे साथ रिश्ते बताएंगे ना कि मुझसे मिलने वालों को देख कर मुझसे कुर्बत या दूरी बनाएंगे. हमारे ब्लॉगजगत के लोगों को अब एक वर्ष पूरा होने पे मेरा मिजाज़ "जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए" सभी ब्लोगर्स की समझ मैं अब आने लगा है. आशा है हमारे जौनपुरी भाइयों को भी कुछ दिन मैं इसका यकीन होने लगेगा.
महावीर शर्मा जी की कुछ पंकियां याद आ रही हैं और इनके साथ ही अपनी बात को आज के लिए यंही पे विराम देता हूँ.
जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए
खो गई वो सौंधि सौंधी देश की मिट्टी कहां ?
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए
वतन से जुडी अपने पुरानी यादों को समेटते हुए, अपने वतन मैं एक महीना कैसे गुज़रा अगली कड़ी मैं...