इस बार गर्मी की छुट्टीयों मैं सोंचा अपने वतन जौनपुर चला जाए और वहाँ के लोगों से संपर्क बढाया जाए और ज़मीनी स्तर पे कुछ काम किया जाए. ज...
इस बार गर्मी की छुट्टीयों मैं सोंचा अपने वतन जौनपुर चला जाए और वहाँ के लोगों से संपर्क बढाया जाए और ज़मीनी स्तर पे कुछ काम किया जाए. जौनपुर के लोगों ने मुझे बहुत ही प्यार दिया और मेरे विचारों का स्वागत भी किया. कई नए मित्र बने नए अच्छे लोग संपर्क मैं आये ,जिनके बारे मैं जल्द ही लिखूंगा.
जब मैं मुंबई आने लगा तो कह दिया कि अपना पासवर्ड बदल लें और उन्होंने वैसा ही किया और ख़ुशी ख़ुशी मुझे धन्यवाद् के साथ विदा भी किया.मुंबई आने के बाद भी बड़ा फ़ोन उनका आता रहा , सभी से मेरी तारीफ भी करते रहे.
अभी ४-५ दिन पहले ब्लॉगर महाराज ने अपना खेल दिखाया, १-२ दिन तक लोगिन नहीं हुआ, और हुआ भी तो किसी कि नयी पोस्ट ग़ायब, किसी कि टिप्पणी ग़ायब ,किसी को डैशबोर्ड कि प्रॉब्लम. यह सब ३-४ दिनों तक चलता रहा . जिनको मैं ब्लोगिंग सीखा के आया था वो भी परेशान, बार बार फ़ोन करते थे और मैं समझा देता था.
कल जब सब कुछ ठीक हो गया तो वो सज्जन बोले मासूम भाई लगता है आप ने ही कुछ खराब कर दिया था और मेरा ब्लॉग बंद करवा दिया था. मैंने कहा भाई यह आभासी दुनिया हैं, यहाँ ऐसा होता रहता है ख़ास तौर पे ब्लॉगर के साथ तो कुछ भी हो सकता है. मैंने उनको याद भी दिलाया कि इसी कारण से आप को आपका ब्लॉग कैसे सेव करें आप को सीखाया था. .
वो कहने लगे आप ने सिखाने का पैसा नहीं लिया और शायद आप परेशान कर के अब पैसा लेना चाह रहे हैं. मैं सोंच रहा था क्या किसी को बिना पैसे ज्ञान बाँट देने कि यह सजा थी. या उनके शक का कारण उनकी ब्लागस्पाट मैं होने वाली गड़बड़ी से अज्ञानता थी. या कुछ और.......
कारण कुछ भी रहा हो लेकिन मेरा यह अनुभव बहुत कि कड़वा अनुभव था जिसे भुला देने मैं समय लग सकता है. कुछ समय मन अशांत रहा लेकिन फिर याद आया कि अशांत बनाने वाली स्थितियों से निपटने का एक आसान उपाय है क्षमा करना.
जैसे ही मैं इस बार जौनपुर पंहुचा हमारे एक मित्र जो मेरे ब्लॉग अमन का पैग़ाम को हमेशा पढ़ा करते थे मेरे पास आये और बोले भाई हमारे एक मित्र को भी ब्लॉग बनाना बता दें.मैंने स्वीकार कर लिया. ५-७ दिन उनके मित्र को ब्लॉग बना ना सिखाया और कम से कम १५ दिन उन मित्र महोदय ने समय असमय मुझे फ़ोन कर के , जब जब उनके ब्लॉग पे कोई मुश्किल आती ,कैसे उसे सही किया जाए पूछते रहे. जब भी फ़ोन करते या मिलते बहुत खुश होते वो सज्जन और धन्यवाद् कहते. उनका कहना था मैं वो पहला इंसान हूँ जिसने उनको दुनिया से जुड़ना सिखाया . मैंने भी उनको यू ट्यूब से ले कर ब्लॉगर तक सभी sikha डाला जिस से की वो स्वम ब्लॉग चला सकें और दूसरों को भी सीखाएं. मुझे भी बात चीत से वो साहब एक अच्छे इंसान लगे.
जब मैं मुंबई आने लगा तो कह दिया कि अपना पासवर्ड बदल लें और उन्होंने वैसा ही किया और ख़ुशी ख़ुशी मुझे धन्यवाद् के साथ विदा भी किया.मुंबई आने के बाद भी बड़ा फ़ोन उनका आता रहा , सभी से मेरी तारीफ भी करते रहे.
अभी ४-५ दिन पहले ब्लॉगर महाराज ने अपना खेल दिखाया, १-२ दिन तक लोगिन नहीं हुआ, और हुआ भी तो किसी कि नयी पोस्ट ग़ायब, किसी कि टिप्पणी ग़ायब ,किसी को डैशबोर्ड कि प्रॉब्लम. यह सब ३-४ दिनों तक चलता रहा . जिनको मैं ब्लोगिंग सीखा के आया था वो भी परेशान, बार बार फ़ोन करते थे और मैं समझा देता था.
कल जब सब कुछ ठीक हो गया तो वो सज्जन बोले मासूम भाई लगता है आप ने ही कुछ खराब कर दिया था और मेरा ब्लॉग बंद करवा दिया था. मैंने कहा भाई यह आभासी दुनिया हैं, यहाँ ऐसा होता रहता है ख़ास तौर पे ब्लॉगर के साथ तो कुछ भी हो सकता है. मैंने उनको याद भी दिलाया कि इसी कारण से आप को आपका ब्लॉग कैसे सेव करें आप को सीखाया था. .
वो कहने लगे आप ने सिखाने का पैसा नहीं लिया और शायद आप परेशान कर के अब पैसा लेना चाह रहे हैं. मैं सोंच रहा था क्या किसी को बिना पैसे ज्ञान बाँट देने कि यह सजा थी. या उनके शक का कारण उनकी ब्लागस्पाट मैं होने वाली गड़बड़ी से अज्ञानता थी. या कुछ और.......
कारण कुछ भी रहा हो लेकिन मेरा यह अनुभव बहुत कि कड़वा अनुभव था जिसे भुला देने मैं समय लग सकता है. कुछ समय मन अशांत रहा लेकिन फिर याद आया कि अशांत बनाने वाली स्थितियों से निपटने का एक आसान उपाय है क्षमा करना.
उन सज्जन के दिमाग मैं शक का कारण आज भी तलाश रहा हूँ लेकिन असफलता ही हाथ लग रही है. क्या कोई ब्लॉगर इस पे प्रकाश डाल सकता है?