कहीं आप इस ब्लॉगजगत मैं भीड़ का हिस्सा भर बन के तो नहीं रह गए हैं? हर इंसान कि अपनी एक पहचान हुआ करती है और उसी पहचान के कारण समाज को द...
कहीं आप इस ब्लॉगजगत मैं भीड़ का हिस्सा भर बन के तो नहीं रह गए हैं?
हर इंसान कि अपनी एक पहचान हुआ करती है और उसी पहचान के कारण समाज को दुसरे लोग उस के करीब आते हैं या उस से दूर चले जाते हैं.
आप हर दिन कई बार यह सुनते होंगे कि वह मराठी है, वह हिन्दुस्तानी है ,अमेरिका उसका जन्मस्थल है,वह मुसलमान है ,यह ईसाई है, वह स्त्री है, वह कट्टरवादी है, वह उदारवादी है, वह समलिंगी है , वह नारी आन्दोलन का समर्थक है, वह स्कूल में पढ़ाता है, उपन्यास लिखता है,संगीत का दीवाना है, उसका मानना है कि हिंदी भाषा का ही चलन हिंदुस्तान मैं होना चाहिए , उसका कहना है कि अमरीका आतंकवादी है.
हम मराठी है,हिन्दुस्तानी है,हमारा जन्मस्थल कोटा है, हम हिन्दू है, मुसलमान हैं, स्त्री हैं या पुरुष हैं ,हम उनकी संतान हैं इत्यादि पहचान जो जन्म के साथ खुद हमारे साथ जुड़ जाती हैं, इनपे हम फक्र तो कर सकते हैं लेकिन इस अलग पहचान रखने वाले अपने जैसे दुसरे इंसान से नफरत नहीं कर सकते. क्यूं कि यदि आप कि यह पहचान बन गयी कि आप अपने से ज़रा सा फर्क रखने वाले दुसरे इंसान को पसंद नहीं करते तो समाज मैं आप को वास्तविक इज्ज़त नहीं मिल सकेगी. आप अज्ञानता कि पहचान बन के रह जाएंगे.
इस से पहले कि आप कि अपनी सही पहचान इस ब्लॉगजगत कि भूलभुलैया मैं कहीं खो जाए, आप अपने लेखों के ज़रिये अपनी सही पहचान बना ने कि कोशश करें. अपने लेख लोगों कि पसंद के देखते हुए अधिक टिप्पणी पाने के लिए ना लिख के अपनी पहचान बनाते हुए वो लिखें जो आप को सही लगता है, जो आप के अपने विचार है, जो आप की खुद कि पसंद है. फिर देखिये आप को संतुष्टि भी मिलेगी, आप कि पहचान भी बनेगी और आप से कुछ ऐसे लोग अवश्य जुड़ जाएंगे जो हमेशा आज के साथ रहेंगे. ध्यान रहे कि जन-साधारण सदैव भीड़ के अंग बने रहकर सुरक्षित अनुभव करते हैं जब कि विशिष्ट व्यक्ति वही सिद्ध हो पाते हैं जो भीड़ तथा एकांत में भी सामान्य व्यवहार बनाये रखते हैं.
हर इंसान कि अपनी एक पहचान हुआ करती है और उसी पहचान के कारण समाज को दुसरे लोग उस के करीब आते हैं या उस से दूर चले जाते हैं.
आप हर दिन कई बार यह सुनते होंगे कि वह मराठी है, वह हिन्दुस्तानी है ,अमेरिका उसका जन्मस्थल है,वह मुसलमान है ,यह ईसाई है, वह स्त्री है, वह कट्टरवादी है, वह उदारवादी है, वह समलिंगी है , वह नारी आन्दोलन का समर्थक है, वह स्कूल में पढ़ाता है, उपन्यास लिखता है,संगीत का दीवाना है, उसका मानना है कि हिंदी भाषा का ही चलन हिंदुस्तान मैं होना चाहिए , उसका कहना है कि अमरीका आतंकवादी है.
इनमें से कुछ पहचान तो जन्म साथ साथ स्वम हमसे जुड़ जाती है और कुछ हम खुद इस समाज मैं रहते हुए बनाया करते हैं. हर समझदार इंसान को अकेले मैं बैठ के यह अवश्य सोचना चाहिए कि उसकी इस समाज मैं क्या पहचान है और क्या वो पहचान सही है या उसमें किसी तरह के बदलाव कि आवश्यकता है. क्योंकि आप ने यह भी सुना होगा कि वो साहब पहले बहुत झूट बोला करते थे, झगडे किया करते थे , अब वैसे नहीं हैं. यह एक ज्ञानी कि पहचान है.
हम मराठी है,हिन्दुस्तानी है,हमारा जन्मस्थल कोटा है, हम हिन्दू है, मुसलमान हैं, स्त्री हैं या पुरुष हैं ,हम उनकी संतान हैं इत्यादि पहचान जो जन्म के साथ खुद हमारे साथ जुड़ जाती हैं, इनपे हम फक्र तो कर सकते हैं लेकिन इस अलग पहचान रखने वाले अपने जैसे दुसरे इंसान से नफरत नहीं कर सकते. क्यूं कि यदि आप कि यह पहचान बन गयी कि आप अपने से ज़रा सा फर्क रखने वाले दुसरे इंसान को पसंद नहीं करते तो समाज मैं आप को वास्तविक इज्ज़त नहीं मिल सकेगी. आप अज्ञानता कि पहचान बन के रह जाएंगे.
इस ब्लॉगजगत मैं भी हर एक ब्लोगर कि एक पहचान बनी हुई है. कुछ पहचान औरों ने दी है कुछ हमने खुद ही बनवाई है. आश्चर्य कि बात यह है कि मैंने ऐसे ब्लोगर देखे हैं, जिनकी ब्लॉग जगत मैं पहचान कुछ और है और आम ज़िन्दगी मैं पहचान कुछ और. कभी कभी तो इर्श्यावश कुछ लोग छवि ख़राब करने के लिए किसी ब्लोगर कि ग़लत पहचान बनवा देते हैं और कभी कभी हम खुद नाम और शोहरत के चक्कर मैं यह काम किया करते हैं. अमन का पैगाम की भी एक पहचान है लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो किसी करणवश खुद को इस से जोड़ के या इसका नाम विवादों मैं ले के इसके नाम को बदनाम करने की नाकाम कोशिश किया करते हैं.
अमन का पैगाम समाज मैं अमन और शांति फैलाने का काम करता है, विवादों से इसका कोई रिश्ता नहीं और यही इसकी सही पहचान है.
इस से पहले कि आप कि अपनी सही पहचान इस ब्लॉगजगत कि भूलभुलैया मैं कहीं खो जाए, आप अपने लेखों के ज़रिये अपनी सही पहचान बना ने कि कोशश करें. अपने लेख लोगों कि पसंद के देखते हुए अधिक टिप्पणी पाने के लिए ना लिख के अपनी पहचान बनाते हुए वो लिखें जो आप को सही लगता है, जो आप के अपने विचार है, जो आप की खुद कि पसंद है. फिर देखिये आप को संतुष्टि भी मिलेगी, आप कि पहचान भी बनेगी और आप से कुछ ऐसे लोग अवश्य जुड़ जाएंगे जो हमेशा आज के साथ रहेंगे. ध्यान रहे कि जन-साधारण सदैव भीड़ के अंग बने रहकर सुरक्षित अनुभव करते हैं जब कि विशिष्ट व्यक्ति वही सिद्ध हो पाते हैं जो भीड़ तथा एकांत में भी सामान्य व्यवहार बनाये रखते हैं.