हिंदी ब्लॉगजगत और साहित्य विषय पे बहुत कुछ बहस हुआ करती है. मुझे तो आज तक यह समझ नहीं आया कि क्यों जबरन इन भोले भाले ब्लोगर को सा...
हिंदी ब्लॉगजगत और साहित्य विषय पे बहुत कुछ बहस हुआ करती है. मुझे तो आज तक यह समझ नहीं आया कि क्यों जबरन इन भोले भाले ब्लोगर को साहित्य पढवाने ले पीछे पड़े हैं. सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ब्लोगिंग है क्या? हकीकत मैं यह डायरी लिखना है. डायरी लिखने की आदत से सभी वाकिफ हैं और वर्षों से पढ़े लिखे अपनी डायरी के माध्यम से अपने विचारों को, पेश करते रहे हैं और आगे आने वाली उनकी नस्ल उसका फ़ाएदा भी लेती रही है. फर्क इतना है की पहले की डायरी सार्वजनिक डायरी नहीं हुआ करती थी और ब्लोगिंग कहते है सार्वजनिक डायरी लेखन को जिसका सही इस्तेमाल समाज को अपनी विचारों, तजुर्बों के ज़रिये तुरंत फ़ाएदा पहुँचाया कर किया जा सकता है.
साहित्यकार तो अपनी वेबसाइट बना कर अपना सारा ज्ञान वहाँ रख दें, सभी साहित्य का शौक रखने वाले वहां जा के पढ़ लेंगे, यह रोज़ रोज़ ब्लॉग लिखना साहित्यकार का काम तो मुझे नहीं लगता. फिर यह बहस क्यों?
कल मुझे अपने खानदानी किताबघर मैं रखी किताबों कि उलट पलट करते वक़्त अपने दादा और पर दादा दोनों कि लिखी कशकोल (डायरी) मिली. और बस क्या था लगा देखने वो क्या लिखते थे, क्या सोंचते थे, जिस से उनके रहन सहन, इत्यादि के बारे कुछ और पता लगे. कहीं पे मुझे मधुमेह के इलाज के यूनानी नुस्खे मिले, कहीं पे सितारों कि गर्दिश और उसका इंसानों पे असरात के बारे मैं लिखा मिला, कहीं पे हम कहाँ से आये हैं और हमारी पहचान क्या है ,इसके बारे मैं लिखा मिला, कहीं पे अपनी ही ग़लती से नसीहत लेती हुई बातें मिलीं, कहीं पे जौनपुर और आर्य हिंदुस्तान कैसे आये यह पढने को मिला,कहीं नियमित प्रार्थना करने के तरीके मिले और कहीं उस समाज के कपड़ों कि पसंद और उनको पहनने का सही अवसर के बारे मैं पढने को मिला, कहीं नस्लनामा और कहीं पर आने वाली पीढ़ी के लिए वसीयत के अंदाज़ मैं नसीहत लिखी मिली. उस समय के अच्छे साहित्यकारों का विश्लेषण भी पढने को मिला.
उसे पढ़ के अपने पे शर्म भी आयी और यह भी समझने को मिला कि एक बेहतरीन ब्लॉग किसे कहते हैं. सोंचने लगा क्या मैं भी कभी ऐसे ही अलग अलग विषयों का चुनाव करके समाज को ब्लॉग के माध्यम से कुछ दे सकूंगा ?
मैंने अंग्रेजी ब्लोगिंग को भी १२ वर्ष दिया हैं, और अब तो इस हिंदी ब्लोगिंग की आयु भी ६-७ वर्ष की हो चुकी है. दोनों मैं अंतर यही मिला की अंग्रेजी ब्लोगिंग मैं लोग वो लिखते हैं जो उनको सही लगता है, हिंदी ब्लोगिंग मैं अक्सर वो लिखने की कोशिश हुआ करती है जो दूसरों को अच्छा लगे और अक्सर इसी कारण बहुत से ब्लोगर अपने विचारों को कम प्रकट करते हैं और दूसरों के विचारों को अपने लेख का विषय बना लेते हैं और बहुत बार व्यक्ति विशेष को ही निशाना बना लिया जाता है.
मेरे ब्लॉग अमन का पैग़ाम का तो मकसद समाज मैं अमन और शांति काएम करने कि राह मैं सहयोग देना है और आज से इस ब्लॉग पे यह भी कोशिश करूँगा कि अन्य ऐसे विषयों पे भी लिखूं जिसका फ़ाएदा समाज को पहुंचे और इस के साथ साथ ब्लॉगजगत पे वो पढूं जिस से मैं खुद कुछ सीख सकूँ. इस ब्लॉग जगत मैं बहुत सी नायाब हीरे भरे पड़े हैं, जो केवल अपनी लेखनी पे ही ध्यान देते हैं. उनको सामने लाने की भी कोशिश करूँगा.
मेरी यह कोशिश शायद उन ब्लोगर को भी अमन के पैग़ाम तक बार बार ले ए जो यह सोंच के बार बार नहीं आते, कि कुछ नया तो होगा नहीं, वही अमन और शांति कि बातें, उपदेश और नसीहतें ही होंगी. हाँ ऐसे ब्लोगर अधिक हैं जिनको यह पूछते भी मैंने देखा है, मासूम भाई अगला लेख कब है?
अब से अमन का पैग़ाम पे और दुसरे अलग अलग विषयों पे भी लेख आप के सामने पेश किए जाएंगे. इस से हर बार आप सभी को कुछ ना कुछ नया अवश्य मिलेगा. आशा है हमेशा कि तरह ही सहयोग मिलेगा.